"फ़रीदुद्दीन गंजशकर": अवतरणों में अंतर

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बाबा फरीद की अमन दायक रचना।इसका आध्यात्मिक अर्थ नीचे की व्याख्या से स्वतः ही समझ आ जाएगा।
अमृतमपत्रिका से साभार
 
वेख फरीदा मिट्टी खुल्ली, (कबर)
 
मिट्टी उत्ते मिट्टी डुली; (लाश)
 
मिट्टी हस्से मिट्टी रोवे, (इंसान)
 
अंत मिट्टी दा मिट्टी होवे (जिस्म यानि शरीर, देह)
 
ना कर बन्दया मेरी मेरी, (पैसा, धनदौलत, रुपया)
 
ना ऐह तेरी ना ऐह मेरी; (खाली जाना)
 
चार दिना दा मेला दुनिया, (उम्र)
 
फ़िर मिट्टी दी बन गयी ढेरी; (मौत)
 
ना कर एत्थे हेरा फेरी, (पैसे कारन झुठ, धोखे)
 
मिट्टी नाल ना धोखा कर तू, (लोका नाल फरेब)
 
तू वी मिट्टी मैं वी मिट्टी; (इंसान)
 
जात पात दी गल ना कर तू, (जाति, धर्म)
 
जात वी मिट्टी पात वी मिट्टी, (पाखंड)
 
जात सिर्फ खुदा दी उच्ची, (शिव ही सर्वेश्वर है )
 
शिव बिन सब कुछ मिट्टी मिट्टी। (बाक़ी सब …..!)
{{Infobox Saint
| image = Sculpture of BABA FARID.jpg
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{{सूफ़ीवाद}}
'''बाबा फरीद''' (1173-1266), हजरत ख्वाजा फरीद्दुद्दीन गंजशकर (उर्दू: حضرت بابا فرید الدین مسعود گنج شکر) [[भारतीय उपमहाद्वीप]] के पंजाब क्षेत्र के एक [[सूफ़ी संत|सूफी संत]] थे। यह एक उच्चकोटि के [[पंजाबी]] [[कवि]] भी थे। [[सिख गुरु|सिख गुरुओं]] ने इनकी रचनाओं को सम्मान सहित [[श्री गुरु ग्रंथ साहिब]] में स्थान दिया।
 
==जीवनी==