"देवदार": अवतरणों में अंतर
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'''देवदार''' ( [[वैज्ञानिक नाम]]:सेडरस डेओडारा, [[अंग्रेज़ी]]: डेओडार, [[उर्दु]]: ديودار ''देओदार''; [[संस्कृत]]: देवदारु) एक सीधे तने वाला ऊँचा पेड़ है, जिसके पत्ते लंबे और कुछ गोलाई लिये
यह पहाड़ी क्षेत्रों की संस्कृति का एक अंग बन चुका है। इस पर अनेक कवियों ने कविताएं और लेखकों ने लेख लिखे हैं।<ref>[http://www.anubhuti-hindi.org/kavi/purnima/devdar.htm पूर्णिमा वर्मन की रचना पर्वत के देवदार]</ref><ref>[http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0_/_%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A5%80 कविताकोश पर देवदार]</ref> देवदार के पत्ते हरे रंग के और कुछ लाली लिए हुए होते है। देवदार तीखा तेज स्वाद और कर्कश सुगंन्ध वाला होता है। देवदार की तासीर गर्म होती है। देवदार का अधिक मात्रा में उपयोग फ़ेफ़ड़ों के लिए हानिकारक होता है। देवदार के दोषों को कतीरा और बादाम का तेल नष्ट करता है। देवदार की तुलना अधाख से की जा सकती है। देवदार दोषों को नष्ट करता है। सूजनों को पचाता है। सर्दी से उत्पन्न होने वाली पीड़ा को शांत करता है, पथरी को तोड़ता है। इसकी लकड़ी के गुनगुने काढ़े में बैठने से गुदा के सभी प्रकार के घाव नष्ट हो जाते है।<ref>[http://www.healthandtherapeutic.com/readarticle.php?article_id=1453 देवदार - हैल्थ एंड थेराप्यूटिक]</ref>
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