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अपने यौनांगों को स्वयं उत्तेजित करना युवा लड़कों तथा लड़कियों के लिये उस समय आवश्यक हो जाता है जब उनकी किसी कारण वश शादी नहीं हो पाती या वे असामान्य रूप से सेक्सुअली स्ट्रांग होते हैं। अब तो विज्ञान द्वारा भी यह सिद्ध किया जा चुका है कि इससे कोई हानि नहीं होती। पुरुषों की तरह महिलाएँ भी अपने यौनांगों को स्वयं उत्तेजित करने के तरीके खोज लेती हैं जो उन्हें बेहद संवेदनशील अनुभव और प्रबल उत्तेजना प्रदान करते हैं। फिर चाहें वे अकेली हों या अपनी महिला पार्टनर के साथ। महिलाएँ यदि अपने यौनांगों को स्वयं उत्तेजित न करें तो इस बात की भी सम्भावना बनी रहती है कि विवाह के बाद सेक्स क्रिया के दौरान उन्हें पर्याप्त उत्तेजना से वंचित रहना पड़े। औसत तौर पर पुरुष 12-13 वर्ष की उम्र में ही हस्तमैथुन शुरू कर देते हैं जबकि महिलाएँ तरुणाई (13 से 19 वर्ष) के अन्तिम दौर में हस्तमैथुन का आनन्द लेना शुरू करती हैं, लेकिन उनमें यह मामला इतना ढँका और छिपा हुआ रहता है कि कभी किसी चर्चा में भी सामने नहीं आ पाता। पूर्ण तरुण होने पर हस्तमैथुन का मामला खुले रहस्य की ओर झुकाव तो लेने लगता है पर ज्यादातर लोग इस मामले पर पर्दा ही पड़े रहना देना बेहतर समझते हैं। लेकिन अब जमाना बिल्कुल बदल गया है। अब कुछ ऐसे युवा तैयार हो रहे हैं जो इन वर्जनाओं को तोड़ कर हस्तमैथुन के तरीकों पर चर्चा में खुलकर हिस्सा ले रहे हैं।
 
==दुष्प्रभाव==
'''शंकरानन्द''' के अनुसार—
 
जिस प्रकार अतिसार सभी तेज को हर लेता है, उसी प्रकार वीर्य का निर्गम बल और वीर्य का अपहरण करता है। जैसे गन्ने का डंठल निचोड़ने से वह खोखला बन जाता है, वैसे ही वर्य निकलने से पुरुष खोखला बन जाता है।<ref>पन्ना ५५, બ્રહ્મ Easy, प्रियम, अहो श्रुतम </ref>
 
सात धातु के बाद ओज निर्माण होता है।
 
सायण कहते है - ओज यह शरीर को टिकाने रूप आठमा धातु है।
 
[[अष्टांगसंग्रह]] के अनुसार ओज की वृद्धि होती है तो शरीर की तुष्टि, पुष्टि और बल का उदय होता है वह हृदय में होने के बावजूद भी देह व्यापक है।जीवन का उसके जैसा कोई आधार दूसरा कोई नहीं।<ref>पन्ना ५६, બ્રહ્મ Easy, प्रियम, अहो श्रुतम </ref>
 
[[आयुर्वेद]] कहता है —
{{Blockquote
| text = ब्रह्मचर्यरतेगृाम्य-सुखनिःस्पृहचेतसः।
निद्रा संतोष तृप्तस्य, स्वं कालं नातीवर्तते।।<ref>पन्ना ५६, બ્રહ્મ Easy, प्रियम, अहो श्रुतम </ref>
| author = [[आयुर्वेद]]
| title = [[आयुर्वेद]]
}}
जिसे ब्रह्मचर्य में रति है,
जिसे मैथुन में कोई रस नहीं और जो संतोष से तृप्त है,
उसे निद्रा उसके समय आ ही जाती है।
 
[[योगशास्त्र]] के अनुसार वीर्य क्षय के शारीरिक नुकसान इस प्रकार है —
 
कम्पन, पसीना, श्रम, मूर्च्छा, बेभानी, चक्कर, थकान, बल क्षय और टी.बी. जैसे रोग मैथुन से होते है। <ref>पन्ना ५६,६९ "Heart to Heart series", पुस्तक नाम: બ્રહ્મ Easy, लेखक— प्रियम, प्रकाशक: अहो श्रुतम </ref>
 
[[चाणक्य नीति]] कहती है—
 
"नराणां मैथुनं जरा।"
 
मैथुन यह नरो का बुढ़ापा है।<ref>पन्ना ७०, બ્રહ્મ Easy, प्रियम, अहो श्रुतम </ref>
 
== पुरुष कैसे करते हैं ==