"गोगाजी": अवतरणों में अंतर

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'''गोगाजी चौहान''' [[राजस्थान]] के लोक देवता हैं जिन्हे जाहरपीर के नाम से भी जाना जाता है। [[राजस्थान]] के [[हनुमानगढ़]] जिले का एक [[शहर]] '''[[गोगामेड़ी]]''' है। यहां [[भाद्रपद|भादों]] कृष्णपक्ष की नवमी को [[गोगाजी]] देवता का मेला भरता है। इन्हें [[हिन्दू]] और [[मुसलमान]] दोनो पूजते हैं। [[गुजरात]] मे रबारी जाती के लोग गोगाजी को गोगा महाराज केे [[गोरखनाथ|नाम]] सेे बुलाते है।
 
[[गोरखनाथ|गुरुगोरखनाथ]] के परमशिष्य थे। उनका जन्म विक्रम संवत 1003 में [[चूरू|चुरू]] जिले के [[ददरेवा]] गाँव में हुआ था। सिद्ध वीर गोगादेव के जन्मस्थान राजस्थान के चुरू जिले के दत्तखेड़ा [[ददरेवा]] में स्थित है जहाँ पर सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं। कायम खानी मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्‍था टेकने और मन्नत माँगने आते हैं। इस तरह यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है। मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए। गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के राजपूत शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादो सुदी नवमी को हुआ था। चौहान वंश केमें राजपूत राजा [[पृथ्वीराज चौहान]] के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज सें [[हांसी]] (हरियाणा) तक था।<ref>Rajasthan [district Gazetteers].: Ganganagar (1972) </ref>
 
लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को [[साँप]]ों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी, गुग्गा वीर, जाहिर वीर,राजा मण्डलिक व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है।