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{{Infobox former country
|conventional_long_name = गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य
|common_name = प्रतिहारगुर्जर
|continent = एशिआ
|region = दक्षिण एशिया
|country = भारत
|era = [[मध्यकालीन भारत]]
|religion = [[हिंदुहिंदुत्व]]
|status = साम्राज्य
|government_type = [[राजतंत्र]]
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|s5 = चावडा राजवंश
|s6 = चौहान वंश
|image_map =Indian Kanauj triangle mapGurjaradesa.svg png
|image_map_alt =
|image_map_caption = गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य अपने स्वर्णकाल में।
|capital = [[कन्नौज]]
|common_languages = [[संस्कृत]], प्राक्रित
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{{गुर्जर प्रतिहार राजवंश}}
'''गुर्जर प्रतिहार वंश''' [[मध्यकालीन भारत|मध्यकाल]] के दौरान [[मध्य भारत|मध्य]]-[[उत्तर भारत]] के बड़े हिस्से में राज्य करने वाले भारतीय
[[सूर्यवंशी]] और [[अग्निवंशी]] [[राजपूत]] वंश थे<ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=oaE9AAAAMAAJ&q=pratihara+rajput&dq=pratihara+rajput&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwjIrrHeu6fuAhVRWX0KHa4WBLIQ6AEwBHoECAUQAg|title=Aspects of Rajput State and Society|last=Banerjee|first=Anil Chandra|date=1983|publisher=Rajesh Publications|language=en}}</ref>, <ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=FV49AAAAMAAJ&q=pratihara+rajput&dq=pratihara+rajput&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwjIrrHeu6fuAhVRWX0KHa4WBLIQ6AEwBXoECAYQAg|title=Lectures on Rajput History|last=Banerjee|first=Anil Chandra|date=1962|publisher=Firma K.L. Mukhopadhyay|isbn=978-0-8426-1136-7|language=en}}</ref><ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=ZYHSDwAAQBAJ&pg=SL4-PA8&dq=prithviraj+raso+pratihara&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwiT3LKEu6fuAhWNc30KHQmKC9sQ6AEwBXoECAYQAg#v=onepage&q=%20pratihara%20rajput&f=false|title=UPSC EPFO (Enforcement Officers/ Accounts Officers) Exam 2020 Guide|last=Experts|first=Disha|date=2020-02-29|publisher=Disha Publications|isbn=978-93-89986-29-7|language=en}}</ref>जिसकी स्थापना [[नागभट्ट प्रथम]] नामक ने ७२५ ई॰ में की थी। जिनमें से ६ वीं से ९ वीं शताब्दी के दौरान, आमतौर पर सामंती स्थिति के कारण, [[मंडोर]], [[मारवाड़]] ([[जोधपुर]], [[राजस्थान]]) में हरिश्चंद्र की शासन प्रणाली चलती थी। वहीं दूसरी तरफ ८ वीं से ११ वीं शताब्दी के दौरान [[नागभट्ट]] की रेखा ने पहले [[उज्जैन]] और बाद में [[कन्नौज]] में शासन किया। अन्य [[गुर्जर]] लाइनें भी मौजूद थीं, लेकिन उन्होंने उपनाम प्रतिहार नहीं लिया जैसे कि [[चालुक्य]], [[चौहान]] आदि।<ref>https://www.britannica.com/topic/Gurjara-Pratihara-dynasty#:~:text=Gurjara-Pratihara%20dynasty%2C%20either%20of,the%208th%20to%2011th%20centuries. |title=गुर्जर वंश के दो साम्राज्यौं से संबंधित अंग्रेजी में</ref><ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=LPsvytmN3mUC&lpg=PA182&dq=chhokar%20clan&pg=PA309#v=onepage&q=chhokar%20clan&f=false|title= अन्य गुर्जर वंशौ से संबंधित page 310 to 311: A.-K|date=1997|publisher=Atlantic [Publishers & Dist|isbn=978-81-85297-69-9|language=en}}</ref>
 
गुर्जर प्रतिहारों द्वारा बनाया गया साम्राज्य विस्तार में बड़ा और अधिक संगठित था। गुर्जर प्रतिहार कालिन मंदिरो की विशेषता और मूर्तियों की कारीगरी से उस समय की गुर्जर प्रतिहार शैली की संपन्नता का बोध होता है। <ref> Romila Thapar, A History of India, Vol. I., U.K. 1966 </ref>
[[File:Indian Kanauj triangle map.svg|thumb| गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य की सीमा दर्शाता हुआ नक्शा]]
 
==इतिहास==
नागभट्ट नामक नवयुवक ने इस नये साम्राज्य की नींव रखी। संभवत है ये भडौच के गुर्जर प्रतिहार शासको का ही राजकुंवर था, जयभट्ट का पुत्र। भारत पर आक्रमण केवल पश्चिमोत्तर भूमि से किया जा सकता है। युद्धो की पूरी लम्बी श्रंखला थी जो सैकडो वर्षो तक गुर्जर प्रतिहारो और अरब आक्रान्ताओ के बीच चली। <ref>B.N. Puri, History of the Gurjara Pratiharas, Bombay, 1957</ref> <ref> P C Bagchi, India and Central Asia, Calcutta, 1965 </ref>
===उत्पत्ति===
{{Main|प्रतिहार राजवंश की उत्पत्ति}}
प्रतिहारों के साथ-साथ [[मंडोर के प्रतिहारों]] ने स्व-पदनाम "प्रतिहार" का उपयोग किया। उन्होंने महान नायक [[लक्ष्मण]] से वंश का दावा किया, जिन्हें [[संस्कृत]] महाकाव्य '' [[रामायण]] 'में राजा [[राम]] के भाई के रूप में वर्णित किया गया है। मंडोर प्रतिहार शासक बाकुका के 837 सीई जोधपुर शिलालेख में कहा गया है कि रामभद्र (राम) के छोटे भाई ने अपने बड़े भाई को 'प्रतिहारी' (द्वारपाल) के रूप में सेवा दी, जिसकी वजह से इस कबीले को प्रतिहार के नाम से जाना जाने लगा. सागर-ताल (ग्वालियर) प्रतिहार राजा का शिलालेख [[मिहिर भोज]] कहता है उस सौमित्रि ("[[सुमित्रा]] का पुत्र", यानी लक्ष्मण) ने अपने बड़े भाई के लिए एक द्वारपाल के रूप में काम किया क्योंकि उसने [[मेघनाद]] के साथ युद्ध में दुश्मनों को हराया था।{{sfn|Rama Shankar Tripathi|1959|p=223}}{{sfn|Baij Nath Puri|1957|p=7}}
 
[[अग्निवंश]] के अनुसार [[पृथ्वीराज रासो]] की पांडुलिपियों में दी गई कथा', प्रतिहार राजपूत और तीन अन्य [[राजपूत]] राजवंशों की उत्पत्ति [[माउंट आबू]] में एक बलि अग्नि-कुंड (अग्निकुंड) से हुई थी।
तथापि वार्मलता चावड़ा का वसंतगढ़ शिलालेख दिनांक 682 (625 ईस्वी), प्रतिहार वंश का सबसे प्राचीन है .वसंतगढ़ गाँव (पिंडवाड़ा तहसील, सिरोही) के इस शिलालेख में राजजिला और उनके पिता वज्रभट्ट सत्यश्रया(हरिचंद्र प्रतिहार) का वर्णन है, वे वर्मलता [[चावडा राजवंश|चावड़ा]] के जागीरदार थे और अरुणा-देसा से शासित थे <ref> Epigraphia Indica ,XVI ,pp. 183</ref> <ref> B.N. Puri,The History of the Gurjara-Pratiharas, p. 20 </ref>
 
[[क। ए। नीलकंठ शास्त्री]] ने सिद्ध किया कि प्रतिहारों के पूर्वजों ने [[राष्ट्रकूट]] एस की सेवा की, और "प्रतिहार" शब्द राष्ट्रकूट दरबार में उनके कार्यालय के शीर्षक से निकला है।<ref>{{cite book |author=Kallidaikurichi Aiyah Nilakanta Sastri |title=History of India |url=https://books.google.com/books?id=oychAAAAMAAJ |year=1953 |publisher=S. Viswanathan |page=194 }}</ref>
 
===प्रारंभिक शासक===
नागभट्ट नामक नवयुवक ने इस नये साम्राज्य की नींव रखी। संभवत है ये भडौच के प्रतिहार शासको का ही राजकुंवर था, जयभट्ट का पुत्र। भारत पर आक्रमण केवल पश्चिमोत्तर भूमि से किया जा सकता है। युद्धो की पूरी लम्बी श्रंखला थी जो सैकडो वर्षो तक गुर्जर प्रतिहारो और अरब आक्रान्ताओ के बीच चली। <ref>B.N. Puri, History of the Gurjara Pratiharas, Bombay, 1957</ref> <ref> P C Bagchi, India and Central Asia, Calcutta, 1965 </ref>
[[नागभट्ट प्रथम]] (७३०-७५६ ई॰) को इस राजवंश का पहला राजा माना गया है। [[आठवीं शताब्दी]] में भारत में [[अरबों का सिन्ध पर आक्रमण|अरबों का आक्रमण]] शुरू हो चुका था। <ref> K. M. Munshi, The Glory That Was Gurjara Desha (A.D. 550-1300), Bombay, 1955 </ref> सिन्ध और मुल्तान पर उनका अधिकार हो चुका था। फिर [[सिंध]] के राज्यपाल जुनैद के नेतृत्व में सेना आगे [[मालवा]], जुर्ज और [[अवंती]] पर हमले के लिये बढ़ी, जहां जुर्ज पर उसका कब्जा हो गया। परन्तु आगे अवंती पर नागभट्ट ने उन्हैं खदैड़ दिया। अजेय अरबों कि सेना को हराने से नागभट्ट का यश चारो ओर फैल गया। <ref>V. A. Smith, The Gurjaras of Rajputana and Kanauj, Journal of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland, (Jan., 1909), pp.53-75</ref> <ref> V A Smith, The Oford History of India, IV Edition, Delhi, 1990 </ref> अरबों को खदेड़ने के बाद नागभट्ट वहीं न रुकते हुए आगे बढ़ते गये। और उन्होंने अपना नियंत्रण पूर्व और दक्षिण में मंडोर, [[ग्वालियर]], मालवा और गुजरात में [[भरूच जिला|भरूच]] के बंदरगाह तक फैला दिया। उन्होंने [[मालवा]] में [[अवंती]] ([[उज्जैन]]) में अपनी राजधानी की स्थापना की, और अरबों के विस्तार को रोके रखा, जो सिंध में स्वयं को स्थापित कर चुके थे। अरबों से हुए इस युद्ध (७३८ ई॰) में नागभट्ट ने गुर्जर-प्रतिहारों का एक संघीय का नेतृत्व किया।<ref>एपिक इण्डिया खण्ड १२, पेज १९७ से</ref><ref>इलियट और डाउसन, हिस्ट्री ऑफ इण्डिया पृ० १ से १२६</ref> <ref> Dirk H A Kolff, Naukar Rajput Aur Sepoy, CUP, Cambridge, 1990 </ref>
 
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* [[पाल राजवंश]]
* [[राष्ट्रकूट साम्राज्य]]
* [[चपराणा राजवंश]]
 
==सन्दर्भ==