"प्रतिहार राजपूत": अवतरणों में अंतर
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गुर्जर प्रतिहार वंश एक ऐसा वंश है जिसकी उत्पत्ति पर कई महान इतिहासकारों ने शोध किए जिनमे से कुछ अंग्रेज भी थे और वे अपनी सीमित मानसिक क्षमताओं तथा [[भारतीय समाज और संस्कृति|भारतीय समाज]] के ढांचे को न समझने के कारण इस वंश की उतपत्ति पर कई तरह के विरोधाभास उतपन्न कर गए।
▲प्रतिहार वंश एक ऐसा वंश है जिसकी उत्पत्ति पर कई महान इतिहासकारों ने शोध किए जिनमे से कुछ अंग्रेज भी थे और वे अपनी सीमित मानसिक क्षमताओं तथा [[भारतीय समाज और संस्कृति|भारतीय समाज]] के ढांचे को न समझने के कारण इस वंश की उतपत्ति पर कई तरह के विरोधाभास उतपन्न कर गए। प्रतिहार एक शुद्ध [[क्षत्रिय|क्षत्रिय वंश]] है जिसने गुर्जरादेश से गुज्जरों को खदेड़ने व राज करने के कारण गुर्जरा सम्राट की भी उपाधि पाई।
[https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF मनुस्मृति] में प्रतिहार,परिहार, पढ़ियार तीनों शब्दों का प्रयोग हुआ हैं। परिहार एक तरह से [[क्षत्रिय]] शब्द का पर्यायवाची है। क्षत्रिय वंश की इस शाखा के मूल पुरूष [[राम|भगवान राम]] के भाई [[लक्ष्मण]] माने जाते हैं। लक्ष्मण का उपनाम, प्रतिहार, होने के कारण उनके वंशज प्रतिहार, कालांतर में परिहार कहलाएं। कुछ जगहों पर इन्हें [[अग्निवंशी]] बताया गया है, पर ये मूलतः [https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6 सूर्यवंशी] हैं। [[पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यम्|पृथ्वीराज विजय,]] [[हरकेलि नाटक]], [[ललित विग्रह नाटक]], [[हम्मीर महाकाव्य पर्व]] (एक) [[मिहिर भोज]] की ग्वालियर प्रशस्ति में परिहार वंश को [https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6 सूर्यवंशी] ही लिखा गया है| लक्ष्मण के पुत्र [[अंगद]] जो कि कारापथ ([[राजस्थान]] एवं [[पंजाब (भारत)|पंजाब]]) के शासक थे, उन्ही के वंशज परिहार है। इस वंश की 126वीं पीढ़ी में [https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%AD%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A5%E0%A4%AE राजा हरिश्चन्द्र प्रतिहार] का उल्लेख मिलता है। इनकी दूसरी पत्नी भद्रा से चार पुत्र थे। जिन्होंने कुछ धनसंचय और एक सेना का संगठन कर अपने पूर्वजों का राज्य माडव्यपुर को जीत लिया और मंडोर राज्य का निर्माण किया, जिसका राजा रज्जिल बना। इसी का पौत्र [[नागभट्ट प्रथम|नागभट्ट प्रतिहार]] था, जो अदम्य साहसी,महात्वाकांक्षी और असाधारण योद्धा था। इस वंश में आगे चलकर कक्कुक राजा हुआ, जिसका राज्य [[पश्चिमी भारत|पश्चिम भारत]] में सबल रूप से उभरकर सामने आया। पर इस वंश में प्रथम उल्लेखनीय [https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%AD%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A5%E0%A4%AE राजा नागभट्ट प्रथम] है, जिसका राज्यकाल 730 से 760 माना जाता है। उसने जालौर को अपनी राजधानी बनाकर एक शक्तिशाली परिहार राज्य की नींव डाली। इसी समय अरबों ने सिंध प्रांत जीत लिया और मालवा और गुर्जरात्रा राज्यों पर आक्रमण कर दिया। नागभट्ट ने इन्हें सिर्फ रोका ही नहीं, इनके हाथ से सैंनधन,सुराष्ट्र, उज्जैन, मालवा भड़ौच आदि राज्यों को मुक्त करा लिया। 750 में अरबों ने पुनः संगठित होकर भारत पर हमला किया और भारत की पश्चिमी सीमा पर त्राहि-त्राहि मचा दी।
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मिहिर भोज परम देश भक्त था उसने प्रण किया था कि उसके जीते जी कोई विदेशी शत्रु भारत भूमि को अपावन न कर पायेगा। इसके लिए उसने सबसे पहले आक्रमण कर उन राजाओं को ठीक किया जो कायरतावश यवनों को अपने राज्य में शरण लेने देते थे।
इस प्रकार
सुलेमान अरब में लिखा है, कि [[मिहिर भोज]] अरब लोगों का सभी अन्य राजाओं की अपेक्षा अधिक घोर शत्रु है।
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