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परेशानियों के कोष्टक  ने महामारी काल में आम जनमानस को चारों ओर से  घेर कर रख लिया ।हम भारतीय मजबूत संकल्पता के साथ जिम्मेदारियों के वृत्त से सूर्य के प्रकाश की भांति एक अनन्त ऊर्जा मयी घोर तमस को मिटाने वाली किरण की तलाश करने में जुटे है।
 
लफ्जो में हुंकार बिठा
 
  लहजो में खुद्दारी रख
 
  जीने की ख्वाहिश है तो
 
  मरने की तैयारी रख ।
 
सबके सुख में शामिल हो ,
 
दुःख में साझेदारी रख ,
 
श्री मदभागवत गीता पढ़
 
युद्ध निरंतर जारी रख।
 
देश मे कोरोना काल के समय राष्ट्रीय कवि   डॉक्टर शिवओम अम्बर की  इन पंक्तियों से  विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति मिलती है जो कि आध्यत्मिक दृष्टि से जीवन का एक सच है ।
 
दुनिया में  विश्व युद्ध के दौरान भी देश में ऐसा  संकट नही छाया था, जैसा कि चीन देश से उतपन्न हुई कोरोना बीमारी  में आया । कोरोना बीमारी ने देखते -देखते रौद्र रूप धारण कर लिया,कारणवश देश में भयाभय स्थिति उतपन्न हो गई।
 
देश मे कोरोना मरीजों का आंकड़ा नित दिन नई उचाईयों को छू रहा है ,1.30करोड़ आवादी वाले भारत में  करीब 36 लाख से अधिक लोग  संक्रमित हुए है। जिसमें लगभग 77 फीसदी से अधिक ठीक भी हुए है । आये दिन  हो रही
 
देश मे हजारों की संख्या में लोग  महामारी की चपेट में आ रहे है । इसमें मरने वालो को संख्या 65 हज़ार से भी अधिक हो गई  जो कि अभी जारी है ।  
 
अगर इसे विश्व पटल के नजरिये से देखें तो
 
संक्रमण की जद में 2.33 से अधिक लोग आए है।8.08लाख लोगों की मौत हुई है ।66.65 लाख लोग ठीक हुए है ।जबकि पैमानें के अनुसार अमेरिका प्रथम ब्राज़ील द्वितीय ,भारत तृतीय स्थान पर पहुँच गया है।
 
अकेले अमेरिका में 59 लाख से अधिक लोग संक्रामित पाए गए है जिसमें 1.80 लाख मरीजों की मृत्यु हुई है ।
 
आर्यावर्त कहे जाने वाले  भारत  देश में  इस महामारी ने  आर्थिक  सामाजिक सांस्कृतिक राजनैतिक और शैक्षिक रूप से  ग्रहण लगा दिया ।
 
वैश्विक स्तर पर इस महामारी की  चपेट भारत  ही नही अपितु  सैकड़ो देश आ गए  ।
 
भयक्रांत महामारी का असर  प्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति के अस्तित्व पर पड़ता दिखाई दिया ।
 
कौन जानता  था? क्या होगा?कोरोना बीमारी से भारत को इतनी भारी क्षति पहुँची है। जिसकी भरपाई कर पाना बहुत मुश्किल है। इस महामारी ने देश को आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया।
 
कोरोना संकट से  विश्व के  बड़े बड़े  शशक्त देशों को गुजरना पड़ रहा है ।
 
वैश्विक महामारी कोरोना  ने  चीन से जन्म लिया इसके बाद  वह पूरे विश्व में फैली ।
 
धीरे -धीरे  इस  बीमारी ने विकराल रूप धारण कर लिया  ।  चीन सहित  ब्रेटन अमेरिका   रूस जापान जर्मनी इग्लैंड  स्पेन इत्यादि देशों की हालत खराब  हो गई । करोङो की आवादी वाले  शक्तिशाली देशो में  लाखों लोगों की  संक्रमण से जाने  चली गई ।
 
महामारी ने  हमारी  देश की एकता अखण्डता प्रभुता को रौंदकर ,देश को अशक्त कर दिया ।
 
भारत में  जब इस महामारी ने  अपने पैर पसारे भी नही थे,तब  सरकार ने  अपनी कमर कस ली थी । सरकार  द्वारा लोगों को लगातार इसके प्रति  चेतावनी देकर  जागरूक किया जा रहा था और आज भी किया जा रहा है ।
 
11 मार्च को कोरोनावायरस या कोविड-19 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक महामारी घोषित कर दिया था। इसके दो दिन बाद भारत में कोरोनावायरस के संक्रमण से पहली मौत की खबर सामने  आई।
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐलान कर दिया था कि समाजिक दूरी ही इस बीमारी को फैलने से रोकने का  उपाय है।
 
11 मार्च से काफी पहले, 4 मार्च को ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कह दिया था कि कोरोना को फैलने से रोकने के लिए वह किसी पर्व के कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे।
 
  22मार्च को सरकार  के  द्वारा  एक दिवसीय विशाल जनता कर्फ्यू घोषित किया गया । लोग प्रधानमंत्री मोदी के [[Ok|निर्देशों कोविड 19]] का पालन करते हुए अपने  घरो में कैद रहे।
 
इसके  ठीक दो दिन बाद महामारी को रोकने के उद्देश्य से  केंद्र सरकार ने  24 मार्च को  देश में सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की, ताकि  देश में संक्रमण  अधिक न फैल सके ।
 
कोरोना महामारी ने मानव सम्पदा को नष्ट कर   आम जन जीवन अस्त व्यस्त  कर दिया ।
 
बड़ी  संख्या में जनहानि हुई है जिसकी भरपाई कर पाना बेहद  मुश्किल होगा ।
 
न जाने इस बिमारी ने कितने घरो को नष्ट कर दिया।  अनेकों परिवारों के मुखिया को काल के व्याल में समा लिया । वर्तमान परिवेश को ऐसे  बदला जो की अकल्पनीय था ।
 
हर व्यक्ति अब यही सोच रहा है कि कोरोना महामारी से न  जाने कब विमुक्ति मिलेंगी
 
जन -जन के लिए अब  यह पीड़ा असहनीय होती चली जा रही  है ।
 
देश में  जब इस बीमारी के बारे में  लोगो ने समाचार पत्रों /टीवी चैनलों के माध्यम से जाना तो उनके लिए इस बीमारी के प्रति  भय  उतपन्न हुआ ।  
 
विदेशो से पलायन कर भारत आये  असंख्य संक्रामित  लोगो ने इस बीमारी  को  देश मे फैला दिया ।
 
  फरबरी माह   के अंत तक सब कुछ ठीक था लेकिन   जब  महामारी ने  बिकराल रूप लिया तो  सरकार की जिम्मेदारी थी कि वह अपने देश के प्रत्येक व्यक्ति  को सुरक्षित रख सकें । शायद इसलिये  देश मे  सम्पूर्ण लॉक डाउन लगाया  गया ।
 
रोज-मर्रा की जिंदगी जीने वाला  व्यक्ति भी इसकी  जद में आया फिर चाहे वह  बड़े घरो में कैद लोग हो अथवा सड़क का कोई गरीब  इस बीमारी  ने सबको एक सी सजा दी ।
 
कोरोना काल में ओछी मानसिकता के राजनैतिक  दल के लोग  राजनीति करने से भी बाज नहीं आये फिर चाहे वह दिल्ली के शाहीन बाग का धरना हो या  दिल्ली में  सरकार द्वारा  श्रमिकों  को गुमराह कर उनके घर तक पहुँचाने की अफवाह ।यही नहीं   दिल्ली में झूठी अफवाह  के चलते हजारों  लोग आनन्द बिहार  बस स्टेशन पर  पहुँच गए  ।
 
जहां सोशल  डिस्टेंसिंग  से लेकर लॉक डाउन के नारे नियमों की धच्चियाँ साफ उड़ती   दिखाई दी ।
 
कोरोना काल में अनेकों लोगो ने सैकड़ो किलों मीटर का सफर तय कर  पैदल अपने घरों तक पहुँचे ।
 
लॉकडाउन के दौरान  स्थनीय राज्य सरकारों व जिला प्रशासन की अनदेखी के कारण देश के  विभिन्न हिस्सों में  वीभत्स  दुर्घटनाये  घटी जिनमें कई लोगो की जाने चली  गई ।
 
कोरोनाकाल में  कुछ धर्म  विशेष के  व्यक्तियों  द्वारा सरकार की मनाही के बाबजूद भी धार्मिक  कार्यक्रम किये गए ।जिसमें  कई विदेशी व अन्य राज्यो से लोगो ने  भाग लिया और महामारी को बढ़ाबा दिया।
 
यही नहीं इस दौरान उन लोगो को चिन्हित कर     उपचार किया गया उपचार के दौरान इन लोगों  ने  स्वास्थ्य केंद्रों में  डॉक्टर व   नर्स के  साथ जो दुर्व्यहार  किया था  वह अमानवीय और निंदनीय था ।
 
देश मे सबसे बड़े असंगठित  मजदूर बर्ग की बात की जाए तो ,कुछ सपनों और अरमानों  को पूरा करने के लिए घर से  बाहर अन्य प्रदेशों में रोजी- रोटी की  आस लिए वक्त और हालात ने प्रवासी श्रमिकों को मजबूर किया होगा बरना अपना घर  कौन छोड़ता है,??
 
वैश्विक महामारी  की आग में इनके अरमानों  की अर्थी कुछ ऐसे जली  जिसको यह बया भी नही कर पाए।
 
युवा कवि
 
<nowiki>*</nowiki>दिलीप कश्यप  कलमकार* ने  गरीबी और बेबसी के बीच  जीवन काटने वाले मजदूरो के दर्द को पंक्तियों में कुछ यूँ कहा है ।
 
गरीबो के मुह में जाता जो बेबसी का निवाला है,
 
क्या किसी को दिया इन्होंने इस बात का हवाला है।
 
करते है  मेहनत रातों दिन घरों के  चलाने के लिए,
 
ऐसा लगता है जैसे किस्मत ने इन्हें अपने घर से निकाला है।
 
पापी पेट की भूख मिटाने और  बच्चों  को पालने की जींद ने इनको अपना घर छोड़कर  जाने के लिए  मजबूर किया होगा ।
 
शायद वह  नही जानते थे कि जब सब कुछ ठीक था तब  किस्मत और  कुदरत उन पर कहर बनकर बरपेगी मुफ़लिसी का आलम तो देखिए जिन मजदूरो ने  मजबूरी में अपनी  तंगी  हालात ठीक करने और  अच्छे भविष्य की कल्पना को साकार करने के  उद्देश्य से परदेश का सफर तय कर अपना घर छोड़ा था ।
 
उन्हें अंत मे मजबूरन खाली हाथ ज़िंदगी लिए  अपने शहर अपने घर को ही लौटना पड़ा ।
 
कोरोना महामारी काल बनकर उनके सामने खड़ी हो गई । जिसके चलते  देश की सारी  गतिविधियों को रोक दिया गया ।  
 
देश में  लॉकडाउन  लगने से सारे काम जहाँ के तहाँ रुक गए । ऐसे में इस मजदूर वर्ग की तो  कमर ही टूट गई ।
 
रोजना  काम कर अपना भरण पोषण करने वाले गरीब प्रवासी मजदूरों  के पास परदेश में छत तो पहले से ही नही थी ।जहाँ काम करते वही सो, खा कर गुजारा करते ।  
 
ऊपर से  कुदरत और किस्मत दोनों  ने इनसे ऐसे मुह मोड़ा की इन्हें  दो जून की रोटी जुटाने के भी  लाले पड़ गए  बस बची थी तो एक उम्मीद की शायद कोई तो ऐसा रास्ता या जरिया होगा जो इन्हें इनके घर तक सुरक्षित  पहुँचा सके ।
 
मजदूरों की पीड़ा  को व्यक्त करते हुए शायर  
 
<nowiki>*</nowiki>हफ़ीज़ जालंधरी*  ने लिखा है
 
  आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए'
 
    आदमी मज़दूर है राहें बनाने के लिए ।
 
सैंकड़ो की संख्या  में आये  इन प्रवासी मजदूरों को देखकर  लगा कि ये कई रात सोए तक नही है आंखों में पानी  चहरे पर चिंता की लकीर बता रही थी ,
 
तब शायर *मुनव्वर राना* का यह शेर सच्चाई  को  बया करने  लगा " *सो जाता है फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर* *मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाता*।
 
कई दिनों से  घरों को जाने के लिए परेशान
 
सर पर बोझा उठाये  बच्चों और पत्नी को साथ लिए पूरे परिवार सहित प्रवासी मजदूरों  की  तश्वीरें खुद का दर्द बयां कर रही  थी ।
 
सभी की थर्मल स्केनिंग कर डॉक्टरी परीक्षण किया गया ।
 
प्रवासी श्रमिकों के अनुसार उन्होंने  बताया कि वह लोग बिभिन्न राज्यो में   मजदूरी का काम करते है काम बंद होने की बजह से बेहसरा हो गए। ,परदेश में किस के भरोसे रहते । कई दिन तो जो  पास में पैसे तो उससे कट गए लेकिन  चिंता तब बढ़ गई जब दोबारा काम शुरू होने की उम्मीद ही खत्म हो गई ।
 
ऐसे में वह क्या करते क्या न करते कुछ  समझ नही  पाए  कई  रात तो  जागते और भटकते रहे ।  खुद से ज्यादा बच्चों और परिवार की चिंता थी  अंत मे कुदरत और  किस्मत को कोसते  दिखाई दिए ।
 
हमारा   दायित्व
 
सब मिलकर हो जाइये, चतुर चपल चालाक,
 
कोरोना घातक बड़ा , इसको कम ना आक ।
 
देश में  कोरोना महामारी आफत बनकर बरसी जिससे आम जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस महामारी से लड़ने का एक ही  उपाय है वो है सामाजिक दूरी डॉक्टरों और विशेषग्यो का मानना है कि  इस बीमारी  से सावधानी ही बचाव है । इसके लिये  सामाजिक दूरी  समय -समय पर  सेनेटाइजर का प्रयोग अथवा साबुन से हाथ धुलना  भीड़  आदि की जगहों पर जाने से खुद को रोकना आदि के नियमों का अनुपालन करना ही  है ।
 
सबसे बड़ी बात यह कि अगर हमें  इस महामारी को मात देनी है तो खुद में सर्तक रहना होगा ।इस बीमारी को कम नहीं आंकना है ।
 
कोरोना काल में देश के  उन कर्मठ शहीदों की भी अहम भूमिका रही है जिन्होंने  हसते-हसते अपने प्राणों  की परवाह न करते हुए  अपनी जान न्योछावर कर दी ।
 
वैश्विक महामारी ने हमारे देश के  न जाने कितने     सच्चे सपूतों को काल के व्याल में समा लिया।
 
देश के हर जिम्मेदार व्यक्ति  ने अपने तरिके से   बिमारी से लड़ने में योगदान  दिया ।
 
शुरुआती  समय में  प्रशासन को  इससे निपटने के लिए  काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा, और आज भी कर  रहा है।
 
सम्पूर्ण देश की राज्य सरकारों ने केन्द्रीय नेतृत्व की सहायता से  अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया ।
 
देश में  वर्तमान समय ने कोरोना मरीजों की संख्या 20 लाख पहुँचती जा  रही है   ऐसे में    भारत  जैसे   बहुसंख्यक, विकशित  और विकाश शील देश  में संक्रमित   मरीजों के ठीक होने  का आकड़ा  एक- एक  व्यक्ति द्वारा किये गए परिश्रम का फल है ।
 
जिससे यह साबित हो रहा  है कि हम इस महामारी  से निपटने में कितने सार्थक सिद्ध हुए है।
 
अगर  आकड़ो के अनुसार देखा  जाये तो
 
चीन,फ्रांस जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया  अमेरिका जापान  इत्यादि देशों के मुक़ाबले भारत में कोरोना से मरने वालो की संख्या सबसे  कम रही है।
 
देश में  जब यह  बिमारी अपने प्रथम पड़ाब  पर थी तब हमारे देश की  सरकार ने  इससे निपटने के सारे प्रबंध कर डाले थे।
 
अब तक के समय में सरकार द्वारा इतनी बेहतर स्वास्थ्य  सेवाय कभी भी उपलब्ध नही कराई गई ।
 
देश में हर जगह  जिला प्रशासन की मुस्तैद नजर   वारियर्स  की पर्याप्त  टीम ।
 
बाहर  से  आने  वाले प्रवासियों पर नज़र  सभी की जाँच कराकर उन्हें कोरेंनटीन  करना और  ठीक मात्रा में उन्हें करीब 3 हफ्तों का राशन देकर विदा करना  सरकार का सराहनीय कार्य  रहा है।
 
 
 
इसी के  साथ  जब पूर्ण लाकडाउन चल रहा  था  और बाज़ार  बंद थे ऐसे में लोगो को उनके घर तक सुबिधा अनुसार   हर वस्तु उपलब्ध कराई  गई।
 
कुछ  दृश्य ऐसे भी थे और जो देखते नही बन रहे थे  कुछ परिवारों की हालत बद  से बद्तर  होती जा रही थी उनके आगे मुखमरी  की समस्या आई  तो   समाज के जिम्मेदारों ने भी अपनी अहम भूमिका निभाई इस कड़ी में उन्होंने  ऐसे परिवारों को सामर्थ  अनुसार कच्चा व् पक्का भोजन उपलब्ध कराया।
 
प्रशासनिक  अमले द्वारा   गरीबो के खाने के लिए  जगह-जगह  सामुदायिक रसोई  खोली गई, जिनमें  प्रति दिन हजारों की संख्या में  भूखें लोग  अपना पेट भर पाए ।
 
पलायन से फूटा कोरोना बम
 
 
पूंजीपति और उधमियों द्वारा लॉक में उनका दोहरा चरित्र भी सामने आया है ।लॉकडाउन  में   देश के सबसे बड़े श्रमिक वर्ग  की ओर  से जब इन  लोगो ने ध्यान हटा लिया ।तब  सरकार  द्वारा उन्हें उनके घर सुरक्षित  पहुचाने के लिए  व्यवस्था की गई । साथ ही हर जिले में आने  जाने वाले  व्यक्ति पर नजर रखी गई । लेकिन  पलायन करने वाले कुछ श्रमिकों ने  सरकार और प्रशासन की आंखों में धूल झोंकने में भी कोई कसर नही छोड़ी, वह  चोरी छिपे  अपने घरो को  चले दिए   बिना किसी स्वास्थ्य परीक्षण के अपने  गाँव ,शहर को चले आये  जिनके सम्पर्क में आने से अनगिनत लोग  संक्रमित होते चले गए ।
 
लॉक डाउन के नियमो  का पालन
 
विश्वस्वास्थ्य  संगठन ने जब  कोरोना को महामारी  घोषित किया था तब कहा गया था कि  इससे बचने का एक मात्र पहला उपाय सामाजिक दूरी है ।
 
कोरोना  का संक्रमण    एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के सम्पर्क में आने से फैलता है इसके लिए  संक्रमित व्यक्ति से मिलते वक्त  महामारी से बचाव के सारे उपयो का निर्वहन करे ।
 
कोरोना काल मे   राम वाण साबित हुआ सेनेटाइजर   और साबुन से बार बार  हाथो को साफ करना चहेरे पर  मास्क लगाए रखना है भीड़ भाड़ वाली  जगहों पर जाने से बचना है ।
 
घर पर  रहना है ।    लॉक डाउन के नियमो का पालन करना है ।  
 
कोरोना को मात  देता भारत
 
अन्य देश की अपेक्षा  भारत में  भले ही कोरोना  महामारी ने तीव्र गति पकड़ी हो लेकिन हमारा  देश  महामारी से लड़ने में  सफल रहा है ।  भारत जैसे बहुसंख्यक देश मे ठीक होने वाले मरीजों की संख्या  सर्वाधिक रही है ।
 
6 में छीन ली देश की रौनक़
 
भारत में कोरोना वायरस महामारी के चलते लगे लॉकडाउन को पांच महीने पूरे हो रहे हैं। इस देशव्यापी लॉकडाउन का देश की जनता, अर्थव्यवस्था, रोजगार, बाजार आदि सभी क्षेत्रों पर व्यापक असर पड़ा है। भले ही अब देश में क्रमवार अनलॉक किया जा रहा हो लेकिन बाजारों से लेकर मंदिरों, चौराहों से लेकर पार्कों तक की इस बीमारी ने रौनक छीन ली ,अब भी वैसी स्थिति  नहीं हुई है जो पांच महीने पहले थी
 
 
 
सीख दे रही है  महामारी
 
काम कितना किया ?क्यों किया? कैसे किया? क्या कमाया ?क्या बचाया ? इन सभी  सबालों के बीच साधारण मनुष्य का जीवन उलझ कर  रह गया ।  कोई  घर पर  काम के चक्कर मे व्यस्तता के चलते परिवार को  समय नही दे पा रहा था , तो कोई पापी पेट की खातिर परदेश में कमाने चला गया ।
 
  कोरोना  महामारी ने  हमसे भले की  कुछ न कुछ छीना  हो ,किन्तु यह महामारी हमे असल   जिदगी के अनुभव बतला  रही है ।
 
महामारी के दौर में उन लोगो में भी अपने कार्य के प्रति समर्पण देखने को मिला जिनसे कभी अपेक्षा  नही की जा  सकती थी ।
 
वर्तमान समय मे पुलिस के प्रति जनता की जो नकारात्मक सोच  थी कोरोना जैसी इस विभीषिका महामारी ने उसे बदल कर रख दिया और  सम्मान  स्थापित किया  ।
 
यह वही पुलिस विभाग था  जिसके प्रति लोग दबी जुबान में कहा करते है , पुलिस बगैर पैसे के काम नही करती यह वही पुलिस है जो जनता की सेवा में लॉक डाउन के समय  कड़ी  धूप हो या  काली रात्रि  हो अपनी जिम्मेदारी को महत्वपूर्ण ढंग से निभाती नजर आई ।और सम्पूर्ण लॉक डाउन को सफल बनाने में  सरकार की मदद की ।
 
वैदिक भारत --
 
ऐसा माना जाता है कि आयुर्वेद और ज्योतिष में  संसार की समस्त  बीमारिया का निदान  छिपा है ।  देश इस समय  महामारी के संकट से जूझ रहा है ऐसे में इस बीमारी से लड़ने में देशी जड़ी -बूटियों और  आयुर्वेद के  जरिये  निपटने में काफी हद तक सफल  साबित हुआ  है  दैनिक दिनचर्या योग व्यायाम और अच्छे खान पान से बीमारी को  मात दी जा रही है ।
 
सरकाए की विफलता आई सामने
 
किसी भी मशीनरी में कहा और कितनी कमी है यह तो तब पता चलता है जब उसका  उपयोग किया जाए ठीक  वैसे ही  कोरोना  महामारी से निपटने के लिए कोई दवा या वैक्सीन तैयार न होने पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है । अब लोग  सरकार के इस  धुलमूल रवैया से नाखुश नजर आ रहे है। लोग सरकार की विफलता  पर तंज कस रहे है ।
 
अनलॉक होते ही बड़ी जिम्मेदारी
 
लॉक डाउन  के बाद   देश मे  अनलॉक की प्रक्रिया  के तहत  काफी हद तक   सभी जरूरी सेवाओ  को सुचारु रूप से पुनः कर  दिया गया है ऐसे में  हमारी जिम्मेदारी अब पहले से अधिक बढ़ गई है । इस समय सभी को  सावधनी बरतने की जरूरत है ।
 
नोट :- उपरोक्त लेख अध्ययनरत छात्र -छात्रराओं हेतु प्रेषित है लेख में दिए गए आकड़े वर्ष 2020  अगस्त माह के अनुसार है ।
 
                          दिलीप कश्यप क़लमकार
 
                           फर्रुखाबाद उत्तर प्रदेश
 
                               9026692199