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'''नन्ददास () [[ब्रजभाषा]] के एक सन्त कवि थे। वे [[पुष्टिमार्ग|वल्लभ संप्रदाय]] ([[पुष्टिमार्ग]]) के आठ कवियों ([[अष्टछाप]] कवि) में से एक प्रमुख कवि थे।
{{Underlinked|date=जनवरी 2017}}
 
==परिचय==
 
 
भक्तिकाल में पुष्टिमार्गीय अष्टछाप के कवि '''नंददास''' जी का जन्म जनपद- [[कासगंज]] के [[सोरों|सोरों शूकरक्षेत्र]] अन्तर्वेदी रामपुर (वर्त्तमान- श्यामपुर) गाँव निवासी भरद्वाज गोत्रीय सनाढ्य ब्राह्मण पं० सच्चिदानंद शुक्ल के पुत्र पं० जीवाराम शुक्ल की पत्नी चंपा के गर्भ से सम्वत्- 1572 विक्रमी में हुआ था। पं० सच्चिदानंद के दो पुत्र थे, पं० आत्माराम शुक्ल और पं० जीवाराम शुक्ल। पं० आत्माराम शुक्ल एवं हुलसी के पुत्र का नाम महाकवि गोस्वामी तुलसीदास था, जिन्होंने श्रीरामचरितमानस महाग्रंथ की रचना की थी। '''नंददास''' जी के छोटे भाई का नाम चँदहास था। '''नंददास''' जी, तुलसीदास जी के सगे चचेरे भाई थे। '''नंददास''' जी के पुत्र का नाम कृष्णदास था। '''नंददास''' ने कई रचनाएँ- रसमंजरी, अनेकार्थमंजरी, भागवत्-दशम स्कंध, श्याम सगाई, गोवर्द्धन लीला, सुदामा चरित, विरहमंजरी, रूप मंजरी, रुक्मिणी मंगल, रासपंचाध्यायी, भँवर गीत, सिद्धांत पंचाध्यायी, नंददास पदावली हैं।
 
 
नन्ददास, [[गोस्वामी विट्ठलनाथ]] के शिष्य थे। इनका जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल में वि ० सं ० १५९० में (अष्टछाप और वल्लभ :डा ० दीनदयाल गुप्त :पृष्ठ २५६-२६१ ) अन्तर्वेदी रामपुर (वर्तमान श्यामपुर) में हुआ जो वर्तमान समय में [[उत्तर प्रदेश]] के [[कासग्ंज जिला|कासगंज जिले]] में है। ये [[संस्कृत]] और [[बृजभाषा]] के अच्छे विद्वान थे। [[भागवत]] की रासपंचाध्यायी का भाषानुवाद इस बात की पुष्टि करता है। वैषणवों की वार्ता से पता चलता है कि ये रसिक किन्तु दृढ़ संकल्प से युक्त थे।
 
एक बार ये द्वारका की यात्रा पर गए और वहाँ से लौटते समय ये एक क्षत्राणी के रूप पर मोहित हो गये। लोक निन्दा की तनिक भी परवाह न करके ये नित्य उसके दर्शनों के लिए जाते थे। एक दिन उसी क्षत्राणी के पीछे-पीछे आप गोकुल पहुँचे। इसी बीच वि० सं० १६१६ में आपने गोस्वामी विट्ठलनाथ दीक्षा ग्रहण की और तदुपरान्त वहीं रहने लगे। डा० दीनदयाल गुप्त के अनुसार इनका मृत्यु-संवत १६३९ है।
 
चौरासी वैष्णवन की वार्ता के अनुसार नन्ददास, गोस्वामी तुलसीदास के छोटे भाई थे।<ref>{{Cite web |url=http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8 |title=संग्रहीत प्रति |access-date=15 जून 2020 |archive-url=https://web.archive.org/web/20190415162424/http://www.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8 |archive-date=15 अप्रैल 2019 |url-status=dead }}</ref> विद्वानों के अनुसार वार्ताएं बहुत बाद में लिखी गई हैं। ( हिन्दी साहित्य का इतिहास : [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] :पृष्ठ १७४ ) अतः इनके आधार पर सर्वसम्मत निर्णय नहीं हो सकता। पर इतना निश्चित है कि जिस समय वार्ताएं लिखी गई होंगी उस समय यह जनश्रुति रही होगी कि नन्ददास [[तुलसीदास]] भाई हैं, चाहे चचेरे हों ( हिन्दी साहित्य : डा० [[हजारीप्रसाद द्विवेदी|हजारी प्रसाद द्विवेदी]] : पृष्ठ१८८) या गुरुभाई (हिन्दी सा० का इति० : रामचंद्र शुक्ल :पृष्ठ १२४ ) बहुत प्रचलित रही होगी।
 
==रचनाएँ==
*रास पंचाध्यायी
*सिद्धान्त पंचाध्यायी
*अनेकार्थ मंजरी
*मान मंजरी
*रूप मंजरी
*रस मंजरी
*विरह मंजरी
*भँवर गीत
*गोवर्धन लीला
*स्याम सगाई
*रुक्मिणी मंगल
*सुदामा चरित
*भाषा दशमस्कन्ध
*पदावली
 
==माधुर्य भक्ति का वर्णन==
नन्ददास के कृष्ण सर्वात्मा हैं,सब एक मात्र गति हैं अतः प्रत्येक व्यक्ति उन्हीं से प्रेम सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है। यह वही ब्रह्म है जिसके विषय में वेद नेति नेति कहते हैं और इस प्रकार उन्हें अगम बताने की चेष्टा करते हैं। परन्तु इनकी विशेषतः यह है कि यह अगम होते हुए भी प्रेम से सुगम हैं:
;जदपि अगम ते अगम अति ,निगम कहत है जाहि।
;तदपि रंगीले प्रेम ते, निपट निकट प्रभु आहि।। : (रूप मंजरी :पद ५१४ )
 
इसीलिए कवि इनकी अगम, अनादि, अनन्त , अबोध आदि नकार अथच नीरस शब्दों में स्तुति नहीं करता , वरन उसके लिए कृष्ण सुन्दर आनन्दघन , रसमय ,रसकारण और स्वयं रसिक हैं। ऐसे ही कृष्ण उसके आराध्य हैं और उसकी प्रेमाभक्ति के आलम्बन हैं। राधा इन्हीं रसमय कृष्ण की प्रिया हैं। कवि के शब्दों में:
;दूलह गिरधर लाल छबीलो दुलहिन राधा गोरी।
;जिन देखी मन में अति लाजी ऐसी बनी यह जोड़ी।।:(पदावली :पद ६० )
 
राधा और कृष्ण एकान्त में ही स्वयं दूल्हा-दुलहिन नहीं हैं। नन्ददास ने स्याम सगाई नामक ग्रन्थ में वर-वधू दोनों पक्षों की सम्मति दिखाकर राधा के साथ कृष्ण की सगाई कराई है। सगाई के बाद जो उत्सव की धूम हिन्दू घरों की एक विशेषता है ,उसका भी सुन्दर परिचय कवि ने दिया है:
;सुनत सगाई श्याम ग्वाल सब अंगनि फूले,
;नाचत गावत चले ,प्रेम रस में अनुकूले।
;जसुमति रानी घर सज्यो ,मोतिन चौक पुराइ,
;बजति बधाई नन्द के नन्ददास बलि जाइ।।: (स्याम सगाई : पृष्ठ २७ )
 
राधा के अतिरिक्त कृष्ण अपने सौन्दर्य और रसिकता के कारण गोपियों के भी प्रियतम बन जाते हैं। श्यामसुन्दर के सुन्दर मुख को देखकर वे मुग्ध हो जाती हैं और कभी-कभी सतत दर्शनों में बाधा -रूप अपनी पलकों को कोसती हैं:
;देखन दे मेरी बैरन पलकें।
;नंदनंदन मुख तें आलि बीच परत मानों बज्र की सल्काइन।।
;बन तें आवत बेनु बजावत गो -रज मंडित राजत अलकैं।
;कानन कुंडल चलत अंगुरि दल ललित कपोलन में कछु झलकें।।
;ऐसी मुख `निरखन को आली कौन रची बिच पूत कमल कैं।
;'नन्ददास 'सब जड़न की इहि गति मीन मरत भायें नहिं जलकेँ।।: (नन्ददास ग्रन्थावली :सं० ब्रजरत्नदास :पदावली ७९)
 
==बाह्य स्रोत==
*ब्रजभाषा के कृष्ण-काव्य में माधुर्य भक्ति :डॉ रूपनारायण :हिन्दी अनुसन्धान परिषद् दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के निमित्त :नवयुग प्रकाशन दिल्ली -७ (1962)
*हिंदी साहित्य का इतिहास:आचार्य रामचन्द्र शुक्ल्
*हिंदी साहित्य:आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
*अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय:डा० दीनदयाल गुप्त
 
==सन्दर्भ==
{{Reflist}}
 
{{अष्टछाप के कवि}}
 
[[श्रेणी:कवि]]
[[श्रेणी:महाकवि]]
[[श्रेणी:भारत]]
[[श्रेणी:हिन्दी]]
[[श्रेणी:भक्त कवि]]
[[श्रेणी:भाषा]]
[[श्रेणी:हिन्दी साहित्य]]