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'''नन्ददास''' (वि ० सं ० १५९० - ) [[ब्रजभाषा]] के एक सन्त कवि थे। वे [[पुष्टिमार्ग|वल्लभ संप्रदाय]] ([[पुष्टिमार्ग]]) के आठ कवियों ([[अष्टछाप]] कवि) में से एक प्रमुख कवि थे। ये [[गोस्वामी विट्ठलनाथ]] के शिष्य थे।
==परिचय==
नन्ददास
एक बार ये [[द्वारका]] की यात्रा पर गए और वहाँ से लौटते समय ये एक क्षत्राणी के रूप पर मोहित हो गये। लोक निन्दा की तनिक भी परवाह न करके ये नित्य
▲नन्ददास, [[गोस्वामी विट्ठलनाथ]] के शिष्य थे। इनका जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल में वि ० सं ० १५९० में (अष्टछाप और वल्लभ :डा ० दीनदयाल गुप्त :पृष्ठ २५६-२६१ ) अन्तर्वेदी रामपुर (वर्तमान श्यामपुर) में हुआ जो वर्तमान समय में [[उत्तर प्रदेश]] के [[कासग्ंज जिला|कासगंज जिले]] में है। ये [[संस्कृत]] और [[बृजभाषा]] के अच्छे विद्वान थे। [[भागवत]] की रासपंचाध्यायी का भाषानुवाद इस बात की पुष्टि करता है। वैषणवों की वार्ता से पता चलता है कि ये रसिक किन्तु दृढ़ संकल्प से युक्त थे।
▲एक बार ये द्वारका की यात्रा पर गए और वहाँ से लौटते समय ये एक क्षत्राणी के रूप पर मोहित हो गये। लोक निन्दा की तनिक भी परवाह न करके ये नित्य उसके दर्शनों के लिए जाते थे। एक दिन उसी क्षत्राणी के पीछे-पीछे आप गोकुल पहुँचे। इसी बीच वि० सं० १६१६ में आपने गोस्वामी विट्ठलनाथ दीक्षा ग्रहण की और तदुपरान्त वहीं रहने लगे। डा० दीनदयाल गुप्त के अनुसार इनका मृत्यु-संवत १६३९ है।
चौरासी वैष्णवन की वार्ता के अनुसार नन्ददास, गोस्वामी तुलसीदास के छोटे भाई थे।<ref>{{Cite web |url=http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8 |title=संग्रहीत प्रति |access-date=15 जून 2020 |archive-url=https://web.archive.org/web/20190415162424/http://www.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8 |archive-date=15 अप्रैल 2019 |url-status=dead }}</ref> विद्वानों के अनुसार वार्ताएं बहुत बाद में लिखी गई हैं। ( हिन्दी साहित्य का इतिहास : [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] :पृष्ठ १७४ ) अतः इनके आधार पर सर्वसम्मत निर्णय नहीं हो सकता। पर इतना निश्चित है कि जिस समय वार्ताएं लिखी गई होंगी उस समय यह जनश्रुति रही होगी कि नन्ददास [[तुलसीदास]] भाई हैं, चाहे चचेरे हों ( हिन्दी साहित्य : डा० [[हजारीप्रसाद द्विवेदी|हजारी प्रसाद द्विवेदी]] : पृष्ठ१८८) या गुरुभाई (हिन्दी सा० का इति० : रामचंद्र शुक्ल :पृष्ठ १२४ ) बहुत प्रचलित रही होगी।
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