"प्रतिहार राजपूत": अवतरणों में अंतर
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[[गुर्जर]] [[गुर्जर प्रतिहार राजवंश|प्रतिहार]] वंश एक ऐसा वंश है जिसकी उत्पत्ति पर कई महान इतिहासकारों ने शोध किए जिनमे से कुछ अंग्रेज भी थे और वे अपनी सीमित मानसिक क्षमताओं तथा [[भारतीय समाज और संस्कृति|भारतीय समाज]] के ढांचे को न समझने के कारण इस वंश की उतपत्ति पर कई तरह के विरोधाभास उतपन्न कर गए।
[[File:Statue of Gurjar Samraat Mihir Bhoj Mahaan in Bharat Upvan ofAkshardham Mandir New Delhi.jpg|thumb|
==इतिहास==
===उत्पत्ति===
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८३३ ई० में नागभट्ट के जलसमाधी लेने के बाद<ref>चन्द्रपभसूरि कृत प्रभावकचरित्र, पृ० १७७, ७२५वाँ श्लोक</ref>, उसका पुत्र [[रामभद्र]] या राम प्रतिहार साम्राज्य का अगला राजा बना। रामभद्र ने सर्वोत्तम घोड़ो से सुसज्जित अपने सामन्तो के घुड़सवार सैना के बल पर अपने सारे विरोधियो को रोके रखा। हलांकि उसे [[पाल साम्राज्य]] के [[देवपाल]] से कड़ी चुनौतिया मिल रही थी। और वह प्रतीहारों से [[कलिंजर]] क्षेत्र लेने मे सफल रहा।
===गुर्जर प्रतिहार वंश का चरमोत्कर्ष===
[[रामभद्र]] के बाद उसका पुत्र [[मिहिरभोज]] या भोज प्रथम ने गुर्जर
दक्षिण की ओर मिहिरभोज के समय [[अमोघवर्ष नृपतुंग|अमोघवर्ष]] और [[कृष्ण द्वितीय]] राष्ट्रकूट शासन कर रहे थे। अतः इस दौर में प्रतिहार-राष्ट्रकूट के बीच शान्ति ही रही, हालांकि वारतो संग्रहालय के एक खण्डित लेख से ज्ञात होता है कि अवन्ति पर अधिकार के लिये भोज और राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वितीय (878-911 ई०) के बीच [[नर्मदा नदी]] के पास युद्ध हुआ था। जिसमें राष्ट्रकुटों को वापस लौटना पड़ा था।<ref>एपिक इण्डिया खण्ड़ १९, पृ० १७६ पं० ११-१२</ref> अवन्ति पर प्रतिहारों का शासन भोज के कार्यकाल से [[महेन्द्रपाल प्रथम|महेन्द्रपाल द्वितीय]] के शासनकाल तक चलता रहा। [[मिहिर भोज]] के बाद उसका पुत्र [[महेन्द्रपाल प्रथम]] ई॰) नया राजा बना, इस दौर में साम्राज्य विस्तार तो रुक गया लेकिन उसके सभी क्षेत्र अधिकार में ही रहे। इस दौर में कला और साहित्य का बहुत विस्तार हुआ। महेन्द्रपाल ने [[राजशेखर]] को अपना राजकवि नियुक्त किया था। इसी दौरान "[[कर्पूरमंजरी]]" तथा संस्कृत नाटक "बालरामायण" का अभिनीत किया गया। प्रतिहार साम्राज्य अब अपने उच्च शिखर को प्राप्त हो चुका था।
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