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[[चित्र:Panoramic view of palaces in Kalinjar fort.jpg|180px|कालिंजर दुर्ग के महल]]</div><div style="border:none;margin: 0;">
[[चित्र:Panoramic view of palaces in Kalinjar fort.jpg|180px|right|कालिंजर दुर्ग के महल]]<div style="font-size:100%;border:none;margin: 0;padding:.1em;color:#000"> '''कालिंजर दुर्ग''', [[भारत|भारतीय]] राज्य [[उत्तर प्रदेश]] के [[बांदा जिला]] स्थित एक दुर्ग है। [[बुन्देलखण्ड]] क्षेत्र में [[विंध्य पर्वत]] पर स्थित यह दुर्ग [[विश्व धरोहर स्थल]] [[खजुराहो]] से ९७.७ किमी दूर है। इसे भारत के सबसे विशाल और अपराजेय दुर्गों में गिना जाता रहा है। इस दुर्ग में कई प्राचीन मन्दिर हैं। इनमें कई मंदिर तीसरी से पाँचवीं सदी [[गुप्त वंश|गुप्तकाल]] के हैं। यहाँ के शिव मन्दिर के बारे में मान्यता है कि सागर-मन्थन से निकले कालकूट विष को पीने के बाद भगवान शिव ने यही तपस्या कर उसकी ज्वाला शांत की थी। [[कार्तिक पूर्णिमा]] के अवसर पर लगने वाला [[कतिकी मेला]] यहाँ का प्रसिद्ध सांस्कृतिक उत्सव है। [[भारत की स्वतंत्रता]] के पश्चात इसकी पहचान एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर के रूप में की गयी है। वर्तमान में यह दुर्ग भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकार एवं अनुरक्षण में है।&nbsp;{{विस्तार से|('''[[कालिंजर दुर्ग}}</div>{{Reflist|विस्तार hide}}से पढ़ें...]]''')
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