"सवाईभोज": अवतरणों में अंतर

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सवाईभोज अथवा रावतभोज अथवा राजाभोज, बगड़ावत गुर्जरराजपूत राजवंश के सबसे प्रतापी वीर राजा थे ।<ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=3TluAAAAMAAJ&q=%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3+%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%A4&dq=%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3+%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%A4&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwjDhqOp6qTuAhWDgUsFHRJ4DxkQ6AEwAHoECAIQAg|title=मेवाड़ का सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास|date=2006|publisher=प्रताप शोध प्रतिष्ठान, भूपाल नोबल्स संस्थाल, विद्या प्रचारिणी सभा|language=hi}}</ref> यह विष्णु के अवतार भगवान [[देवनारायण]] जी के पिताजी ही थे । बगड़ावत भाई अजमेर के चौहान राजवंश के ही राजकुमार थे। सवाई भोज के 24 भाई अलग-अलग रियासतों पर राज कर रहे थे पाटन पर तेजारावत राज्य कर रहे थे नेगड़िया पर बगड़ावत वीर नेवाजी रावत राज्य कर रहे थे 320 गढ़ की रियासत सवाई भोज के पास थी। आसींद पर आशा जी बगड़ावत राज्य कर रहे थे और बदनोर पर इनके पिता बाघ रावत चौहान जी राज्य कर रहे थे ।महाराज सवाई भोज को भगवान शिव जी द्वारा राजगद्दी प्राप्त हुई थी इनके गुरुजी का नाम बाबा रूपनाथ जी थ राजा बागरावत चौहान के पुत्र होने के कारण यह इतिहास में बगड़ावत नाम से प्रसिद्ध हुए बगड़ावत 24 भाई थे इनकी की राजधानी अजमेर के निकट बदनोर गोठा थी सवाई भोज महाराज ने कहीं बावड़ीया और मंदिर बनाए थे इनका विवाह उज्जैन के राजा दुदा जी खटाना की पुत्री साडू खटानी से हुआ था उनके पास भगवान इंद्र देव की घोड़ी बावली भगवान शिव द्वारा दी गई थी इनके पास धन खजाने की कोई कमी नहीं थी बगड़ावतों ने अनेक गरीब लोगों को गरीब से धनवान बनाया था इनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी बगड़ावत भाइयों का यश पूरे मारवाड़ मालवा और उत्तर प्रदेश तक फेल गया था उस बगड़ावत काल में किसी भी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर नजर उठाकर भी ना देखा क्षत्रिय वंश में जन्म में श्री सवाई भोज महाराज बड़े ही वीर और बलवान राजा थे पुष्कर इन का तीर्थ स्थल माना जाता था जहां बगड़ावत वीरों ने शिव मंदिर की स्थापना की थी 24 भाई बगडावत बगड़ावत भारत नामक युद्ध में अपने वचन रखते हुए मां चामुंडा को अपना सिर दान में देते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे उसके बाद ही भगवान श्री देवनारायण जी का मालासेरी डूंगरी पर अवतार हुआ था और जितने भी बगड़ावतों की दुश्मन और बेरी थे उन सब राजाओं और सामंतों से भगवान श्री देवनारायण जी ने बगड़ावतों का बेर लिया था और अपना यश पूरे भारत में फैलाया महाराज सवाई भोज की याद में आसींद नगरी में भव्य मंदिर भी बना हुआ है पुष्कर में भी इनका मंदिर स्थापित है । बिलाड़ा का शिव मंदिर का निर्माण भी महाराज सवाई भोज जी ने करवाया था । <तारागढ़ को बैठणो , चक्के राज चौहान बेटा कहिजे बाघ का नाम सवाई भोज चौहान>राणी जयमती (जैमति) को लेकर राण के राजा दुर्जनसाल से बगड़ावतों का युद्ध हुआ। युद्ध से पूर्व बगडावतों तथा दुर्जनसाल की मित्रता थी तथा वे धर्म के भाई थे। ये युद्ध खारी नदी के किनारे हुआ था। बगड़ावतों ने अपना वचन रखते हुए राणी जैमति को सिर दान में दिये थे। बगड़ावतों के वीरगति प्राप्त होने के बाद देवनारायण का अवतार हुआ तथा उन्होंने राजा दुर्जनसाल का वध किया।देवनारायण पराक्रमी योद्धा थे जिन्होंने अत्याचारी शासकों के विरूद्ध कई संघर्ष एवं युद्ध किये । वे शासक भी रहे । उन्होंने अनेक सिद्धियाँ प्राप्त की । चमत्कारों के आधार पर धीरे-धीरे वे देव स्वरूप बनते गये एवं अपने इष्टदेव के रूप में पूजे जाने लगे। देवनारायण को विष्णु के अवतार के रूप में समाज द्वारा राजस्थान व दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश में अपने लोकदेवता के रूप में पूजा की जाती है। उन्होंने लोगों के दुःख व कष्टों का निवारण किया । देवनारायण महागाथा में बगडावतों और राण भिणाय के शासक के बीच युद्ध का रोचक वर्णन है ।
 
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