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आपातकाल लागू होते ही [[आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम|आंतरिक सुरक्षा क़ानून (मीसा)]] के तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ़्तारी की गई, इनमें [[जयप्रकाश नारायण]], [[जॉर्ज फ़र्नान्डिस|जॉर्ज फ़र्नांडिस]] और [[अटल बिहारी वाजपेयी]] भी शामिल थे।u
 
== मामला ==
{{main|उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राज नारायण}}
मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें इंदिरा ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी [[राजनारायण|राज नारायण]] को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किय। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इसके बावजूद इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं। यहाँ तक कि कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।
 
==आपातकाल-विरोधी आन्दोलन==
 
===राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका===
[[राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]] को प्रतिबन्धित कर दिया गया क्योंकि माना गया कि यह संगठन विपक्षी नेताओं का करीबी है तथा इसका बड़ा संगठनात्मक आधार सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन करने की सम्भावना रखता था। पुलिस इस संगठन पर टूट पड़ी और उसके हजारों कार्यकर्ताओं को कैद कर दिया गया। आरएसएस ने प्रतिबंध को चुनौती दी और हजारों स्वयंसेवकों ने प्रतिबंध के खिलाफ और मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ [[सत्याग्रह]] में भाग लिया।