"पिट का भारत अधिनियम": अवतरणों में अंतर

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सन् 1773 ई. के [[रेग्युलेटिंग एक्ट]] की कमियों को दूर करने और ईस्ट इंडिया कंपनी के भारतीय क्षेत्रों के प्रशासन को अधिक सक्षम और उत्तरदायित्वपूर्ण बनाने के लिये अगले एक दशक के दौरान जाँच के कई दौर चले और ब्रिटिश संसद द्वारा अनेक कदम उठाये गए। इनमें सबसे महत्पूर्ण कदम 1784 ई. में '''पिट के भारत अधिनियम''' (पिट्स इंडिया एक्ट) को पारित किया जाना था, जिसका नाम ब्रिटेन के तत्कालीन युवा [[प्रधानमंत्री]] [[विलियम पिट]] के नाम पर रखा गया था। इस अधिनियम द्वारा ब्रिटेन में '''बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल''' की स्थापना की गयी जिसके माध्यम से ब्रिटिश सरकार भारत में कंपनी के नागरिक, सैन्य और राजस्व सम्बन्धी कार्यों पर पूर्ण नियंत्रण रखती थी।
 
अभी भी भारत के साथ व्यापार पर कंपनी का एकाधिकार बना रहा और उसे कंपनी के अधिकारियों को नियुक्त करने या हटाने का अधिकार प्राप्त था। अतः ब्रिटिश भारत पर ब्रिटिश सरकार और कंपनी दोनों के शासन अर्थात द्वैध शासन की स्थापना की गयी।
 
गवर्नर जनरल को महत्वपूर्ण मुद्दों पर परिषद् के निर्णय को न मानने की शक्ति प्रदान की गयी। मद्रास व बम्बई प्रेसीडेन्सी को उसके अधीन कर दिया गया और उसे भारत में ब्रिटिश सेना, कंपनी और ब्रिटिश सरकार दोनों की सेना, का सेनापति बना दिया गया।
ब्रिटिश संसद द्वारा एक 6 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल का गठन किया गया।जिसके सदस्यों की नियुक्ति था पदमुक्ति का अधिकार ब्रिटेन के राजा को था।
 
==इन्हें भी देखें==