"नागरीप्रचारिणी सभा": अवतरणों में अंतर

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2 मार्च 1898 को मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में सत्रह व्यक्तियों के प्रतिनिधि मंडल ने पश्चिमोत्तर प्रांत और अवध के लेफ्टीनेंट गर्वनर एंटोनी मैकडानेल को ‘कोर्ट कैरेक्टर एण्ड प्राइमरी एजुकेशन इन नार्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेज’ सौंप दिया। नागरी प्रचारिणी सभा और महामना के नेतृत्व में चले इस आन्दोलन ने पश्चिमोत्तर प्रांत में कचहरियों और प्राइमरी स्कूलों में हिन्दी भाषा के लिए द्वार खोल दिया। 18 अप्रैल 1900 को पश्चिमोत्तर प्रांत और अवध के लेफ्टीनेंट गर्वनर एंटोनी मैकडानेल ‘बोर्ड आफ रिवेन्यु’ और हाई कोर्ट तथा ‘जुडिशियल कमिशनर अवध’ से सम्मति लेकर आज्ञापत्र जारी कर दिया।<ref>[https://samalochan.blogspot.com/2020/03/blog-post_25.html नागरी प्रचारिणी सभा और हिन्दी अस्मिता का निर्माण ]</ref>
 
‘सरस्वती’ के अप्रैल 1900 के अंक में 'पश्चिमोत्तर प्रदेश और अवध में नागरी अक्षर का प्रचार’ लेख में गर्वनर एंटोनी मैकडानेल के आदेश को अक्षरशः प्रकाशित किया गया। वह इस प्रकार है-
 
:(१) सम्पूर्ण मनुष्य प्रार्थनापत्र और अर्जीदावों को अपनी इच्छा के अनुसार नागरी या फारसी के अक्षरों में दे सकते हैं।
 
:(२) सम्पूर्ण सम्मन, सूचनापत्र और दूसरे प्रकार के पत्र जो सरकारी न्यायालयों वा प्रधान कर्मचारियों की ओर से देश भाषा में प्रकाशित किए जाते हैं, फरसी और नागरी अक्षरों में जारी होंगे और इन पत्रों की शेष भाग की खानापूरी भी हिन्दी भाषा में उतनी ही होगी जितनी फारसी अक्षरों में की जाए।
 
:(३) अंग्रेजी अफसरों को छोड़कर आज से किसी न्यायालय में कोई मनुष्य उस समय तक नहीं नियत किया जायगा जब तक वह नागरी और फारसी अक्षरों को अच्छी तरह से लिख और पढ़ न सकेगा।
 
=== आर्यभाषा पुस्तकालय ===