"इस्लाम": अवतरणों में अंतर
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जिहाद :
मुहम्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद से अक्सर राजनैतिक कारण अन्य धर्मों की ओर् इस्लाम का व्यवहार निर्धारित करते आये हैं। जब राशिदून खलीफाओं ने अरब से बाहर कदम रखा तो उनका सामना [[पारसी धर्म|पारसी पंथ]] से हुआ। उसको भी वैध स्वीकार कर लिया गया।<ref>[http://www.iranchamber.com/religions/zoroaster_zoroastrians_in_iran.php Zoroaster and Zoroastrians in Iran] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20051122103247/http://www.iranchamber.com/religions/zoroaster_zoroastrians_in_iran.php |date=22 नवंबर 2005 }}, by Massoume Price, ''Iran Chamber Society'', retrieved March 24, 2006</ref> इन सभी धर्मों के अनुयायीयों को धिम्मी कहा गया। मुसलमान खलीफाओं को इन्हें एक शुल्क देना होता था जिसे [[जज़िया|जिज़्या]] या [[जज़िया|जजिया]] कहते हैं। इसके बदले राज्य उन्हें हानी न पहुंचाने और सुरक्षा देने का वादा करता था। उम्मयदों के कार्यकाल में इस्लाम कबूल करने वाले को अक्सर हतोत्साहित किया जाता था। इसका कारण था कि कई लोग केवल राजनैतिक और आर्थिक लाभों के लिये ही इस्लाम कबूल करने लगे थे। इससे जिज़्या या [[जज़िया|जजिया]] कम होने लगा था।<ref>{{cite book
| last = Berkey
| first = Jonathan
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| publisher = Cambridge University Press
}}</ref>
== इन्हें भी देखें ==
* [[इस्लाम से पहले का अरब]]
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