"हिंदी साहित्य": अवतरणों में अंतर

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{{भारतीय साहित्य}}
[[चित्र:Chandrakanta.jpg|right|100px|thumb|चंद्रकांता का मुखपृष्ठ]]
'''हिंदी (हिन्दी)''' [[भारत]] और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] भाषा में तलाशी जा सकती हैं। परंतु [[हिंदी साहित्य|हिन्दी साहित्य]] की जड़ें मध्ययुगीन भारत की [[अवधी]], [[मगही|मागधी]] , [[अर्धमागधी]] तथा [[मारवाड़ी]] जैसी भाषाओं के [[साहित्य]] में पायी जाती हैं। हिंदी में [[गद्य]] का विकास बहुत बाद में हुआहुआ। औरहिंदी इसनेने अपनी शुरुआत लोकभाषा [[काव्य|कविता]] के माध्यम से जो कि ज्यादातर [[लोकभाषा]] के साथ प्रयोग कर विकसित कीकी। गई।हिंदीहिंदी का आरंभिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है। हिंदी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है-[[गद्य]],[[काव्य|पद्य]] और [[चंपू|चम्पू]]। हिन्दी की पहली रचना कौन सी है इस विषय में विवाद है लेकिन ज़्यादातर साहित्यकार [[लाला श्रीनिवास दास|लाला श्रीनिवासदास]] द्वारा लिखे गये उपन्यास [[परीक्षा गुरु]] को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं।
जो गद्य और पद्य दोनों में हो उसे [[चंपू]] कहते है
 
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{{main|भक्ति काल }}
 
[[हिंदी साहित्य|हिन्दी साहित्य]] का [[भक्ति काल]] 1375 वि0 से 1700 वि0 तक माना जाता है। यह काल प्रमुख रूप से [[भक्ति]] भावना से ओतप्रोत काल है। इस काल को समृद्ध बनाने वाली दो काव्य-धाराएं हैं -1.निर्गुण भक्तिधारा तथा 2.सगुण भक्तिधारा।
[[निर्गुण ब्रह्म|निर्गुण]] भक्तिधारा को आगे दो हिस्सों में बांटा जागया सकताहै। एक है, [[संत काव्य]] (जिसे ज्ञानाश्रयी शाखा के रूप में भी जाना जाता है,इस शाखा के प्रमुख कवि , [[कबीर]], [[गुरु नानक|नानक]], [[दादूदयाल]], [[रविदास|रैदास]], [[मलूकदास]], [[सुंदरदास|सुन्दरदास]], [[धर्मदास]]<ref>{{cite book |last1=आचार्य रामचन्द्र |first1=शुक्ल |title=हिंदी साहित्य का इतिहास |date=2013 |publisher=लोकभारती प्रकाशन |location=इलाहाबाद |page=54}}</ref> आदि हैं।
 
निर्गुण भक्तिधारा का दूसरा हिस्सा [[सूफ़ीवाद|सूफी]] [[काव्य]] का है। इसे प्रेमाश्रयी शाखा भी कहा जाता है। इस शाखा के प्रमुख कवि हैं- [[मलिक मोहम्मद जायसी]], [[कुतुबन]], [[मंझन]], [[शेख नबी]], [[कासिम शाह]], [[नूर मोहम्मद]] आदि।
 
भक्तिकाल की दूसरी धारा को [[सगुण]] भक्ति धारा के रूप में जानाकहा जाता है। सगुण भक्तिधारा दो शाखाओं में विभक्त है- [[भक्ति काल#रामाश्रयी शाखा|रामाश्रयी शाखा]], तथा [[भक्ति काव्य|कृष्णाश्रयी शाखा]]।
रामाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि हैं- [[तुलसीदास]], [[अग्रदास]], [[नाभादास]], [[केशव]]दास, [[हृदयराम]], [[प्राणचंद चौहान]], [[महाराज विश्वनाथ सिंह]], [[रघुनाथ सिंह]]।
 
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{{main|रीति काल}}
 
[[हिन्दी|हिंदी]] साहित्य का [[रीति काल]] संवत 1700 से 1900 तक माना जाता है यानी 1643ई० से 1843ई० तक। रीति का अर्थ है बना बनाया रास्ता या बंधी-बंधाई परिपाटी। इस काल को [[रीति काल|रीतिकाल]] कहा गया क्योंकि इस काल में अधिकांश कवियों ने [[शृंगार रस|श्रृंगार]] वर्णन, अलंकार प्रयोग, छंद बद्धता आदि के बंधे रास्ते की ही कविता की। हालांकि [[घनानन्द|घनानंद]], [[बोधा]], [[ठाकुर]], गोबिंद सिंह जैसे रीति-मुक्त कवियों ने अपनी रचना के विषय मुक्त रखे। इस काल को रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त तीन भागों में बांटा गया है।
 
[[केशव]] ([[१५४६]]-[[१६१८]]), [[बिहारी (साहित्यकार)|बिहारी]] (१६०३-१६६४), [[भूषण (हिन्दी कवि)|भूषण]] (१६१३-१७०५), [[मतिराम]], [[घनानन्द]] , [[सेनापति]] आदि इस युग के प्रमुख रचनाकार रहे।