"जर्मनी का एकीकरण": अवतरणों में अंतर
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*2. जर्मन-राज्यों को प्रशा के नेतृत्व में संगठित करना।
[[बिस्मार्क|ऑटो एडवर्ड लियोपोल्ड बिस्मार्क]] का जन्म 1815 ई. में ब्रेडनबर्ग के एक कुलीन परिवार में हुआ था। बिस्मार्क की शिक्षा [[बर्लिन]] में हुई थी। 1847 ई. में ही वह प्रशा की प्रतिनिधि-सभा का सदस्य चुना गया। वह जर्मन राज्यों की संसद में प्रशा का प्रतिनिधित्व करता था। वह नवीन विचारों का प्रबल विरोधी था। 1859 ई. में वह [[रूस]] में जर्मनी के [[राजनयिक दूत|राजदूत]] के रूप में नियुक्त हुआ। 1862 ई. में वह [[पेरिस]] का राजदूत बनाकर भेजा गया। इन पदों पर रहकर वह अनेक लोगों के संपर्क में आया। उसे यूरोप की राजनीतिक स्थिति को भी समझने का अवसर मिला। 1862 ई. में प्रशा के शासक [[विलियम द कॉङ्करर|विलियम प्रथम]] ने उसे देश का चाँसलर (प्रधान मंत्री) नियुक्त किया।
बिस्मार्क ‘रक्त और लोहे की नीति' का समर्थक था। उसकी रुचि लोकतंत्र ओर संसदीय पद्धति में नहीं थी। वह सेना और राजनीति के कार्य में विशेष रुचि रखता था। इन्हीं पर आश्रित हो, वह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहता था। वह प्रशा को सैनिक दृष्टि से मजबूत कर यूरोप की राजनीति में उसके वर्चस्व को कायम करना चाहता था। वह आस्ट्रिया को जर्मन संघ से निकाल बाहर कर प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण करना चाहता था। वह सभाओं और भाषणों में विश्वास नहीं करता था। वह सेना और शस्त्र द्वारा देश की समस्याओं का सुलझाना चाहता था। वह अवैधानिक कार्य करने से भी नहीं हिचकता था।
प्रशा की सैनिक शक्ति में वृद्धि कर तथा कूटनीति का सहारा लेकर उसने जर्मन राज्यों के एकीकरण के कार्य को पूरा किया। इस कार्य को पूरा करने के लिए उसने तीन प्रमुख युद्ध लड़े। इन सभी युद्धों में सफल होकर उसने जर्मन-राज्यों के एकीकरण के कार्य को पूरा किया। इससे यूरोपीय इतिहास का स्वरूप ही बदल गया।
===डेनमार्क से युद्ध (1864 ई.)===
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