"वसन्त पञ्चमी": अवतरणों में अंतर
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'''वसंत पञ्चमी''' या '''श्रीपंचमी''' एक [[हिन्दू]] का त्योहार है। इस दिन [[विद्या]] की [[देवी]] [[सरस्वती]] की [[पूजा]] की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर [[बांग्लादेश]], [[नेपाल]] और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन [[पीला|पीले]] वस्त्र धारण करते हैं।
प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें [[वसंत]] लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में [[सरसों]] का फूल मानो
== वसन्त पंचमी कथा ==
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यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं।
कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
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=== पौराणिक महत्व ===
इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें [[त्रेता युग]] से जोड़ती है। [[रावण]] द्वारा [[सीता]] के हरण के बाद [[श्रीराम]] उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें [[दण्डकारण्य]] भी था। यहीं [[शबरी]] नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे [[बेर]] राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे जूठे बेरों वाली इस घटना को [[रामकथा]] के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया।
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