"वल्लभीपुर": अवतरणों में अंतर

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वल्लभी ज्ञान का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था और यहाँ कई बौद्ध मठ भी थे। यहाँ सातवीं सदी के मध्य में चीनी यात्री [[ह्वेन त्सांग]] और अन्त में आईचिन आए थे। जिन्होंने इसकी तुलना [[बिहार]] के [[नालन्दा महाविहार|नालन्दा]] से की थी। एक [[जैन धर्म|जैन परम्परा]] के अनुसार पाँचवीं या छठी शताब्दी में दूसरी जैन परिषद् वल्लभी में आयोजित की गई थी। इसी परिषद् में जैन ग्रन्थों ने वर्तमान स्वरूप ग्रहण किया था। यह नगर अब लुप्त हो चुका है, लेकिन वल नामक गाँव से इसकी पहचान की गई है, जहाँ मैत्रकों के ताँबे के [[अभिलेख]] और मुद्राएँ पाई गई हैं।
 
प्राचीन काल में यह राज्य गुजरात के प्रायद्वीपीय भाग में स्थित था। वर्तमान समय में इसका नाम '''वला''' नामक भूतपूर्व रियासत तथा उसके मुख्य स्थान वलभीवल्लभी के नाम में सुरक्षित रह गया है। 770 ई. के पूर्व यह देश भारत में विख्यात था। यहाँ की प्रसिद्धि का कारण [[वल्लभी विश्वविद्यालय]] था जो [[तक्षशिला]] तथा [[नालन्दा महाविहार|नालन्दा]] की परम्परा में था। वल्लभीपुर या वलभिवल्लभी से यहाँ के शासकों के उत्तरगुप्तकालीन अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं। बुंदेलों के परम्परागत इतिहास से सूचित होता है कि वल्लभीपुर की स्थापना उनके पूर्वपुरुष कनकसेन ने की थी जो श्री रामचन्द्र के पुत्र लव का वंशज था। इसका समय 144 ई. कहा जाता है।
 
== अनुश्रुति के अनुसार ==