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रामकुमार वर्मा ([[१५ सितंबर]] [[१९०५]]-[[१९९०]]) हिंदी की लघु नाट्य परंपरा को एक नया मोड़ देने वाले डॉ रामकुमार वर्मा आधुनिक हिन्दी साहित्य में 'एकांकी सम्राट' के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने हिन्दी नाटक को एक नया संरचनात्मक आदर्श सौंपा और नाट्य कला के विकास की संभावनाओं के नए पाठ खोलते हुए नाट्य साहित्य को जन- जीवन के निकट पहुँचा दिया। नाटककार और कवि के साथ-साथ उन्होंने समीक्षक, अध्यापक तथा हिन्दी-साहित्येतिहास-लेखक के रूप में भी हिन्दी साहित्य-सर्जन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नाटककार के रूप में उन्होंने मनोविज्ञान के अनेकानेक स्तरों पर मानव जीवन की विविध संवेदनाओं को स्वर दिया तो [[छायावाद]] आदि कवियों की कतार में खडे़ होकर रहस्य और अध्यात्म की पृष्ठभूमि में अपने काव्यात्मक संस्कारों को विकसित कर रहस्ययी जगत के स्वपनों में सह्रदय को प्रवेश कराया।
==जीवन परिचय==
हिंदी एकांकी के जनक कहे जानेवाले डा.वर्मा का जन्म [[मध्य प्रदेश]] के [[सागर]] जिले में तथा निधन [[उत्तर प्रदेश]] के [[इलाहाबाद]] जिले में हुआ। पिता की राजकीय वृत्ति के कारण वे विभिन्न नगरों में स्थानान्तरित होते रहे उनकी प्रारंभिक शिक्षा मध्य प्रदेश के विभिन्न स्थानों में हुई इस प्रकार विभिन्न स्थानों पर घूमते हुए उनकी अनुभव संपदा बढती रही। शौक्षिक जीवन में ही उनके भीतर साहित्यिक और रंगमंचीय अभिरुचि पैदा हो गई थी। साथ ही तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक और मानवीय सरोकारों ने भी उन्हें अपने व्यक्तित्व को गढ़ने में सहयोग दिया। मात्र १६ वर्ष की आयु में [[महात्मा गांधी]] के राष्ट्रव्यापी असहयोग आंदोलन का उन पर इतना अधिक प्रभाव पडा कि उनहोंने शैक्षिक प्रांगण से बाहर निकलकर खादी पीठ पर लादकर बेची तथा प्रभात फेरी में राष्ट्रीय चेतना से संपन्न स्वरचित गीत गाए और ओजस्वी भाषण दिए। कुछ समय पश्चात वे फिर विद्यालय में प्रविष्ट हुए। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वे [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] गए। स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के बाद वे वहीं हिंदी विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए और विभागाध्यक्ष के पद पर पहुँचे। जीवन की विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य और संतुलन तथा निराशा व अवसाद के क्षणों में भी स्मित मुस्कान एवं गंभीरता के साथ विनम्रता उनके व्यक्तित्व के खास रंग थे,जिन्होंने उनके कलात्मक स्वरूप को भी एक विशिष्ट सज्जा दी। डाँ वर्मा के साहित्यिक व्यक्तित्व को नाटककार और कवि के रुप में अधिक प्रसिद्धि मिली। सन १९३० में रचित 'बादल की म्रत्यु'उनका पहला एकांकी है, जो फैंटेसी के रूप में अत्यन्त लोकप्रिय हुआ।
 
==प्रमुख कृतियाँ==