"अंजीर": अवतरणों में अंतर
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अंजीर की खेती भिन्न-भिन्न [[जलवायु]] वाले स्थानों में की जाती है, परंतु भूमध्यसागरीय जलवायु इसके लिए अत्यंत उपयुक्त है। फल के विकास तथा परिपक्वता के समय वायुमंडल का शुष्क रहना अत्यंत आवश्यक है। पर्णपाती वृक्ष होने के कारण पाले का प्रभाव इस पर कम पड़ता है। यों तो सभी प्रकार की मिट्टी में इसका वृक्ष उपजाया जा सकता है, परंतु दोमट अथवा मटियार दोमट, जिसमें उत्तम जल निकास (ड्रेनेज) हो, इसके लिए सबसे श्रेष्ठ मिट्टी है। इसमें प्राय खाद नहीं दी जाती; तो भी अच्छी फसल के लिए प्रति वर्ष प्रति वृक्ष २०-३० सेर सड़े हुए गोबर की खाद या कंपोस्ट जनवरी-फरवरी में देना लाभदायक है। इसे अधिक सिंचाई की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। ग्रीष्म ऋतु में फल की पूर्ण वृद्धि के लिए एक या दो सिंचाई कर देना अत्यंत लाभप्रद है।
अंजीर के नए पौधे मुख्यत कृत्तों (कटिंग) द्वारा प्राप्त होते हैं। एक वर्ष की अवस्था की डाल का इस कार्य के लिए प्रयोग किया जाता है। कृत्त जनवरी में लगाए जाते हैं और एक वर्ष बाद इस प्रकार तैयार हुए पौधों को स्थायी स्थान पर पंद्रह-पंद्रह फुट की दूरी पर रोपते हैं। प्रति वर्ष सुषुप्ति काल में इसकी कटाई-छँटाई करनी चाहिए क्योंकि अच्छे फल पर्याप्त मात्रा में नई डालियों पर ही आते हैं। फल अप्रैल से जून तक प्राप्त होते हैं। लगाने के तीन वर्ष बाद वृक्ष फल देने लगता है और एक स्वस्थ, प्रौढ़ वृक्ष से लगभग ४०० फल मिलते हैं। पत्तियों के निचले भाग में एक प्रकार का रोग लगता है जिसे मंडूर (रस्ट) कहते हैं, परंतु यह रोग विशेष हानिकारक नहीं
==चित्रदीर्घा==
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