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==ऐतिहासिक महत्व==
धरती पर जीवात्माओं के सृजन काल से ही सोरों जी मानव सभ्यता का प्रमुख धार्मिक आर्थिक व प्रशासनिक केंद्र रहा है, मान्यता है कि सृष्टि में सभ्यता का सर्व प्रथम उदगम यहीं से हुआ है, सोरों जी नगर ब्रह्मा जी के पुत्र मनु और मनु के पुत्र उत्तानपाद की राजधानी थी, राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव (तारा) का जन्म सोरों जी में ही हुआ था।
पहले सोरों शूकरक्षेत्र के निकट ही गंगा बहती थी, किंतु अब गंगा दूर हट गई है। पुरानी धारा के तट पर अनेक प्राचीन मन्दिर स्थित हैं। यह भूमि भगवान् विष्णु के तृतीयावतार भगवान् वाराह की मोक्षभूमि एवं श्रीरामचरितमानस के रचनाकार महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी तथा अष्टछाप के कवि [[नंददास]] जी की जन्मभूमि भी है। तुलसीदास जी ने रामायण की कथा अपने गुरु नरहरिदास जी से प्रथम बार यहीं पर सुनी थी। [[नंददास]] जी द्वारा स्थापित बलदेव का स्यामायन मन्दिर सोरों शूकरक्षेत्र का प्राचीन मन्दिर है। पौराणिक गृद्धवट यहाँ स्थित है। श्री महाप्रभु [[वल्लभाचार्य]] जी की 23 वीं बैठक है। यहाँ हरि की पौड़ी में विसर्जित की गयीं अस्थियाँ तीन दिन के अन्त में रेणु रूप धारण कर लेती हैं, ऐसा आज भी प्रत्यक्ष प्रमाण है। यहाँ भगवान् वाराह का विशाल प्राचीन मन्दिर है। मार्गशीर्ष मेला यहाँ का प्रसिद्ध मेला है।
 
सोरों सूकरक्षेत्र में प्रत्येक अमावस्या, सोमवती अमावस्या, पूर्णिमा, रामनवमी, मोक्षदा एकादशी आदि अवसरों पर तीर्थयात्रियों का बड़ी संख्या में आवागमन होता है और गंगा में स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं। यहाँ अस्थि विसर्जन का विशेष महत्त्व है। यहाँ स्थित कुण्ड में विसर्जित की गईं अस्थियाँ तीन दिन के अन्त में रेणुरूप धारण कर लेती हैं। यह महाकवि गोस्वामी तुलसीदास की जन्मभूमि है। सोरों सूकरक्षेत्र के तीर्थपुरोहित जगत-विख्यात हैं। इनके पास प्रत्येक परिवार के पूर्वजों का इतिहास हैं।
 
सोरों जी महर्षि कश्यप व दिति के पुत्र भू सम्राट हिरण्यकश्यप की राजधानी व प्रहलाद एवं होलिका का घर भी है।
 
सोरों जी महर्षि भृगु की ससुराल व दैत्य गुरु शुक्राचार्य और देव शिल्पकार विश्वकर्मा की ननिहाल है।
 
सोरों जी भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार हरिहरदास नरहरिदास नंददास तुलसीदास की जन्मस्थली है।
 
सोरों जी सोलंकी राजवंश और चालुक्य राज वंश की उदगम स्थली एवं गुप्तवंश व चंद्रवंशी राजपूत राजाओं की प्रशासनिक स्थली भी मानी जाती रही है जाती है, कहा जाता है कि सोलंकी राजवंश ने अपनी राजधानी सोरों जी को व्राह्मणों के लिए दान कर दिया था, सोलंकी वंश के अधिकर वंशज आज भी सोरों जी में जलपान नहीं करते हैं।
 
श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य जी की 23 वीं बैठक यहीं है, गुरु नानक गुरु हरगोविंद गुरु विरजानन्द स्वामी दयानन्द सरस्वती आदि अनगिनत धर्म गुरुओं की शाश्त्रार्थ स्थली यही है, हिन्दू पौराणिक सभ्यता के अनगिनत ऋषियों मुनियों की साधना स्थली यही है।
 
वृद्ध गंगा का पौराणिक मार्ग सोरों जी से होकर ही जाता है, पहले सोरों शूकरक्षेत्र के निकट ही गंगा बहती थी, किंतु अब गंगा दूर हट गई है। पुरानी धारा के तट पर अनेक प्राचीन मन्दिर स्थित हैं। यह भूमि भगवान् विष्णु के तृतीयावतार भगवान् वाराह की मोक्षभूमि एवं श्रीरामचरितमानस के रचनाकार महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी तथा अष्टछाप के कवि [[नंददास]] जी की जन्मभूमि भी है। तुलसीदास जी ने रामायण की कथा अपने गुरु नरहरिदास जी से प्रथम बार यहीं पर सुनी थी। [[नंददास]] जी द्वारा स्थापित बलदेव का स्यामायन मन्दिर सोरों शूकरक्षेत्र का प्राचीन मन्दिर है। पौराणिक गृद्धवट यहाँ स्थित है। श्री महाप्रभु [[वल्लभाचार्य]] जी की 23 वीं बैठक है। यहाँ हरि की पौड़ी में विसर्जित की गयीं अस्थियाँ तीन दिन के अन्त में रेणु रूप धारण कर लेती हैं, ऐसा आज भी प्रत्यक्ष प्रमाण है। यहाँ भगवान् वाराह का विशाल प्राचीन मन्दिर है। मार्गशीर्ष मेला यहाँ का प्रसिद्ध मेला है।
सोरों जी के बटुकनाथ मंदिर परिसर संसार के चार प्रमुख वैदिक वृक्षों में से एक गृद्ध वट आज भी अवशेष स्वरुप मौजूद है, देवी जया त्रिपुर सुंदरी की उप शक्ति पीठ भी इसी परिसर में है, इसी परिसर में आदि शंकराचार्य द्वारा अभिमंत्रित कर स्थापित देवी लक्ष्मी कुबेर और सौभाग्य का प्रतीक श्रीयंत्र भी है,
यहाँ हरि की पौड़ी में विसर्जित की गयीं अस्थियाँ तीन दिन के अन्त में रेणु रूप धारण कर लेती हैं, ऐसा आज भी प्रत्यक्ष प्रमाण है। यहाँ भगवान् वाराह का विशाल प्राचीन मन्दिर है। मार्गशीर्ष मेला यहाँ का प्रसिद्ध मेला है।
 
==पुरावशेष==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/सोरों" से प्राप्त