"आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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गद्य के विकास में इस युग का विशेष महत्त्व है। पं रामचंद्र शुक्ल (1884-1941) ने निबंध, हिन्दी साहित्य के इतिहास और समालोचना के क्षेत्र में गंभीर लेखन किया। उन्होंने मनोविकारों पर हिंदी में पहली बार निबंध लेखन किया। साहित्य समीक्षा से संबंधित निबंधों की भी रचना की. उनके निबंधों में भाव और विचार अर्थात् बुद्धि और हृदय दोनों का समन्वय है। हिंदी शब्दसागर की भूमिका के रूप में लिखा गया उनका इतिहास आज भी अपनी सार्थकता बनाए हुए है। [[मलिक मोहम्मद जायसी|जायसी]], [[तुलसीदास]] और [[सूरदास]] पर लिखी गयी उनकी आलोचनाओं ने भावी आलोचकों का मार्गदर्शन किया। इस काल के अन्य निबंधकारों में [[जैनेन्द्र कुमार|जैनेन्द्र कुमार जैन]], [[सियारामशरण गुप्त]], [[पदुमलाल पन्नालाल बख्शी|पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] और जयशंकर प्रसाद आदि उल्लेखनीय हैं।
 
[[कपोलकल्पना|कथा साहित्य]] के क्षेत्र में [[प्रेमचंद]] ने क्रांति ही कर डाली। सेवा सदन, रंगभूमि, निर्मला, गबन एवं गोदान आदि उपन्यासों की रचना की। उनकी तीन सौ से अधिक कहानियां मानसरोवर के आठ भागों में तथा गुप्तधन के दो भागों में संग्रहित हैं। पूस की रात, कफनकफ़न, शतरंज के खिलाडी, पंच परमेश्वर, नमक का दरोगा तथा ईदगाह आदि उनकी कहानियां खूब लोकप्रिय हुई। इसकाल के अन्य कथाकारों में [[विश्वंभर शर्मा कौशिक]], [[वृंदावनलाल वर्मा]], [[राहुल सांकृत्यायन]], [[पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'|पांडेय बेचन शर्मा उग्र]], [[उपेन्द्रनाथ अश्क]], [[जयशंकर प्रसाद]], [[भगवती चरण वर्मा|भगवतीचरण वर्मा]] आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
 
नाटक के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद का विशेष स्थान है। इनके चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी जैसे ऐतिहासिक नाटकों में इतिहास और कल्पना तथा भारतीय और पाश्चात्य नाट्य पद्धतियों का समन्वय हुआ है। [[लक्ष्मीनारायण मिश्र]], [[हरिकृष्ण प्रेमी]], [[जगदीशचंद्र माथुर]] आदि इस काल के उल्लेखनीय नाटककार हैं।