"रानी भटियानी": अवतरणों में अंतर

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राणी भटियाणी ने प्रसन्न होकर उन दोनों को साक्षात दर्शन दिए और 'परचे के प्रमाण स्वरूप रावल कल्याणमल के नाम एक पत्र दिया जिसमें रावल की मृत्यु उसी दिन से बारहवें दिन होना लिखा और ऐसा ही हुआ। रावल कल्याणमल का स्वर्गवास ठीक बारहवें दिन हो गया। यह बात आस पास के गांवों में फैल गयी। इसके बाद तो राणी भटियाणी ने जनहित में अनेक परचे दिए। जसोल के ठाकुरों ने राणी भटियाणी के चबूतरे पर एक मंदिर बनवा दिया और उनकी विधिवत पूजा करने लगे। प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन माह के नवरात्र में वैशाख, भाद्रपद और "माघ महीनों की शुक्ल पक्ष की तेरस व चवदस को यहाँ श्रद्धालु आते हैं। मनौती पूरी होने पर जात देते है 'कांचळी', 'लूगड़ी', 'बिंदिया और चूड़ियां राणी भटियाणी के भक्त जन चढ़ाते हैं।
 
[[राजस्थान]] ही नहीं भारतवर्ष के हर कोने से यहाँ पर श्रद्धालु आते हैं। राणी भटियाणी के नाम से एक पशु मेला भी आयोजित किया जाता है जिसमें ऊंट, घोड़े, बैल आदि खरीदने और बेचने के लिए व्यापारी आते हैं।
#विशेष_सूचना
राजपूतों द्वारा लोगों को भ्रमित करने के लिए लोगों को गुलाम रखने के लिए माता रानी भटियाणी के नाम से ऐसी कथा को भी ज्ञात किया हालांकि इस कथा का चश्मदीद गवाह कोई नहीं है और नहीं था
 
== सन्दर्भ ==