"छायावाद": अवतरणों में अंतर
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=== रहस्यवाद ===
आध्यात्मिक प्रेम-भावना या अलौकिक प्रेम-भावना का स्वरूप अधिकांश महादेवी जी की कविता में मिलता है। वे अपने को प्रेम के उस स्थान पर बताती हैं जहाँ प्रेमी और उसमें कोई अंतर नहीं। जैसे, तुममुझमें प्रिय फिर परिचय क्या ?
'''[[रहस्यवाद]]''' के अंतर्गत प्रेम के कई स्तर होते हैं। प्रथम स्तर है अलौकिक सत्ता के प्रति आकर्षण। द्वितीय स्तर है- उस अलौकिक सत्ता के प्रति दृढ अनुराग। तृतीय स्तर है विरहानुभूति। चौथा स्तर है- मिलन का मधुर आनंद। महादेवी और निराला में आध्यात्मिक प्रेम का मार्मिक अंकन मिलता है। यद्यपि छायावाद और रहस्यवाद में विषय की दृष्टि से अंतर है। जहाँ रहस्यवाद का विषय - आलंबन अमूर्त, निराकार ब्रह्म है, जो सर्व व्यापक है, वहाँ छायावाद का विषय लौकिक ही होता है।
=== स्वच्छन्दतावाद ===
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