"छायावाद": अवतरणों में अंतर
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** इनके प्रेम की तीसरी विशेषता है- सूक्ष्मता। इन कवियों का श्रृंगार-वर्णन स्थूल नहीं, परंतु इन्होंने सूक्ष्म भाव-दशाओं का वर्णन किया है। चौथी विशेषता यह है कि इनकी प्रणय-गाथा का अंत असफलता में पर्यवसित होता है। अतः इनके वर्णनों में विरह का रुदन अधिक है। ह्रृदय की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावनाओं को साकार रूप में प्रस्तुत करना छायावादी कविता का सबसे बड़ा कार्य है।
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प्रकृति सौंदर्य का सरसतम वर्णन और उससे प्रेम का वर्णन भी छायावादी कवियों की उल्लेखनीय विशेषता है।
** छायावाद के प्रकृतिप्रेम की पहली विशेषता है कि वे प्रकृति के भीतर नारी का रूप देखते हैं, उसकी छवि में किसी प्रेयसी के सौंदर्य-वैभव का साक्षात्कार करते हैं। प्रकृति की चाल-ढाल में किसी नवयौवना की चेष्टाओं का प्रतिबिंब देखते हैं। उसके पत्ते के मर्मर में किसी बाला-किशोरी का मधुर आलाप सुनते हैं। प्रकृति में चेतना का आरोपण सर्व प्रथम छायावादी कवियों ने ही किया है। जैसे,
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=== रहस्यवाद ===
आध्यात्मिक प्रेम-भावना या अलौकिक प्रेम-भावना का स्वरूप अधिकांश महादेवी जी की कविता में मिलता है। वे अपने को प्रेम के उस स्थान पर बताती हैं जहाँ प्रेमी और उसमें कोई अंतर नहीं। जैसे, तुममुझमें प्रिय फिर परिचय क्या ?
=== स्वच्छन्दतावाद ===
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