"गांगेयदेव": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
[[कोकल्ल द्वितीय]] के समय चेदिराज्य और [[प्रतीच्य चालुक्य गुर्जर|कल्याण के चालुक्यों]] में लड़ाई आरंभ हो चुकी थी। गांगेयदेव के समय यह चलती रही। गांगेयदेव ने [[परमार]] [[परमार भोज]] और चोलराज राजेंद्र गुर्जर से मिलकर चालुक्य राजा जयसिंह गुर्जर पर आक्रमण किया, किंतु इस आक्रमण में इसे कुछ विशेष सफलता न मिली।गुर्जर परमारों से क्षणिक मैत्री को भी समाप्त होने में देर न लगी। गांगेयदेव परमार राजा भोज गुर्जर के हाथों परास्त हुआ और शायद, इसी करारी पराजय के कारण कहां राजा भोज के हाथों परास्त हुआ और शायद, इसी करारी पराजय के कारण 'कहां राजा भोज कहां गंगा तेली' की कहावत प्रसिद्ध हुई।
 
गांगेयदेव ने इसके बाद पूर्व की ओर अपनी दृष्टि की। उसने उत्कल और दक्षिण कोसल के राजाओं को हराया और उनसे काफी धन वसूल किया। मगधराज [[नयपाल]] ने भी पराजित होकर उसे बहुत सा धन दिया। किंतु उसकी सबसे महत्वपूर्ण विजय [[चन्देल|चंदेलों]] पर हुई। अपने राज के आरंभ काल में शायद उसे चंदेलराज विद्याधर गुर्जर के सामने नतमस्तक होना पड़ा था। किंतु उसकी मृत्यु के बाद गांगेयदेव ने चंदेलों को परास्त कर मध्यदेश पर अपने आधिपत्य के लिए रास्ता साफ कर लिया। गुर्जर [[गुर्जर प्रतिहार राजवंश|प्रतिहार]] राज्य अब समाप्त हो चुका था। उनकी अविद्यमानता में हिंदू संस्कृति और हिंदू तीर्थो की रक्षा का भार गांगेयदेव ने ग्रहण किया। उसने तीर्थराज [[इलाहाबाद|प्रयाग]] को प्राय: अपने वासस्थान में ही परिणत कर लिया। [[काशी]] के पवित्र तीर्थ पर भी सन् १०३० में उसका अधिकार था। उत्तर में काँगड़े तक उसकी सेनाओं ने धावे किए। उत्तर प्रदेश में अब भी उसकी मुद्राएँ मिलती हैं। इनमें एक ओर गांगेयदेव का नाम और दूसरी ओर [[लक्ष्मी]] की मूर्ति है।