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यह स्तंभ लोकभाषा में खाम बाबा के रूप में जाना जाता है। एक ही पत्थर को काटकर बनाया गया, यह स्तंभ ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। स्तंभ पर पाली भाषा में [[ब्राह्मी लिपि|ब्राम्ही लिपि]] का प्रयोग करते हुए एक [[अभिलेख]] मिलता है। यह अभिलेख स्तंभ इतिहास बताता है। नवें शुंग शासक महाराज [[भागभद्र]] के दरबार में [[तक्षशिला]] के यवन राजा [[अंतलिखित]] की ओर से दूसरी सदी ई. पू. [[हेलिओडोरस]] नाम का [[राजनयिक दूत|राजदूत]] नियुक्त हुआ। इस राजदूत ने [[वैदिक धर्म]] की व्यापकता से प्रभावित होकर भागवत धर्म स्वीकार कर लिया। उसी ने भक्तिभाव से एक [[विष्णु]] [[मन्दिर|मंदिर]] का निर्माण करवाया तथा उसके सामने [[गरुड़]] [[ध्वज]] स्तंभ बनवाया। इस स्तंभ से प्राप्त अभिलेख इस प्रकार है :-
 
: ''देव देवस वासुदेवस गरुड़ध्वजे अयं
: ''कारिते इष्य हेलियो दरेण भाग
: ''वतेन दियस पुत्रेण नखसिला केन
: ''योन दूतेन आगतेन महाराज स
: अंतलिकितस''अन्तलिकितस उपता सकारु रजो
: ''कासी पु (त्र)(भा) ग (भ) द्रस त्रातारस
: ''वसेन (चतु) दसेन राजेन वधमानस।
 
देवाधिदेव वासुदेव का यह गरुड़ध्वज (स्तंभ) तक्षशिला निवासी दिय के पुत्र भागवत हेलिओवर ने बनवाया, जो महाराज अंतिलिकित के यवन राजदूत होकर विदिशा में काशी (माता) पुत्र (प्रजा) पालक भागभद्र के समीप उनके राज्यकाल के चौदहवें वर्ष में आये थे।