"मेवाड़ की शासक वंशावली": अवतरणों में अंतर

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| 49. || [[महाराणा प्रताप]] || ( 1572 -1597 ई० ) || इनका जन्म 9 मई 1540 ई० को अमरकोट मे वीरसाल के यहाँ हुआ था। इनके पिता का नाम महाराणा उदयसिंह था| राज्य की बागडोर संभालते समय उनके पास न राजधानी थी न राजा का वैभव, बस था तो स्वाभिमान, गौरव, साहस और पुरुषार्थ। उन्होने तय किया कि सोने चांदी की थाली में नहीं खाऐंगे, कोमल शैया पर नही सोयेंगे, अर्थात हर तरह विलासिता का त्याग करेंगें। धीरे–धीरे प्रताप ने अपनी स्थिति सुधारना प्रारम्भ किया। इस दौरान मान सिंह अकबर का संधि प्रस्ताव लेकर आये जिसमें उन्हे प्रताप के द्वारा अपमानित होना पडा। परिणाम यह हुआ कि 21 जून 1576 ई० को हल्दीघाटी नामक स्थान पर अकबर और प्रताप का भीषण युद्ध हुआ। जिसमें 14 हजार राजपूत मारे गये , इस युद्ध में भोमट के राजा राणा पूंजा भील ने महाराणा प्रताप का साथ दिया । इस युद्ध का परिणाम यह हुआ कि वर्षों प्रताप जंगल की खाक छानते रहे, जहां घास की रोटी खाई और निरन्तर अकबर सैनिको का आक्रमण झेला, लेकिन हार नहीं मानी। ऐसे समय भीलों ने इनकी बहुत सहायता की।अन्त में भामा शाह ने अपने जीवन में अर्जित पूरी सम्पत्ति प्रताप को देदी। जिसकी सहायता से प्रताप चित्तौडगढ को छोडकर अपने सारे किले 1588 ई० में मुगलों से छिन लिया। 19 जनवरी 1597 में [[चावंड]] में 57 वर्ष की आयु में एक सख्त धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते समय अंदरूनी चोट लग जाने से प्रताप का निधन हो गया। कहते है कि राणा प्रताप की मृत्यु की खबर सुनकर अकबर के भी आंखों में आंसू आ गए। महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार ना करते हुए जंगलों में घूमते घास की रोटी खाई महाराणा प्रताप ने बूंदी राज्य के शासक राव सुरतन सिंह के अन्याय से बूंदी की प्रजा को बचाने के लिए सखा वीर का वेश धारण किया 29 जनवरी 1597 मे भारत माता के वीर सपूत ज्योति ज्योत समा गया बोलो हिंदू पति महाराणा प्रताप की जय
महाराणा प्रताप ने अपने पिताजी के साहित्य संस्थान से युद्ध कर उस अफगानी शम्स खान को परास्त किया था और अपने किले पर मेवाड़ी
केसरिया ध्वज लहराया था अब अफगानि ध्वज को हटाकर प्रताप ने अपनी पूरी जिंदगी दोस्तों के लिए संघर्ष करके खत्म कर दी इसलिए आज मैं परम पूज्य महाराणा प्रताप राष्ट्र गौरव महाराणा प्रताप है जय हिंद जय भारत सभी बोलो हिंदू पति महाराणा प्रताप की जय ,जय मेवाड़ जय आयरवर्त|-
 
|50. || महाराणा अमर सिंह || (1597 – 1620 ई० ) || प्रारम्भ में मुगल सेना के आक्रमण न होने से अमर सिंह ने राज्य में सुव्यवस्था बनाया। जहांगीर के द्वारा करवाये गयें कई आक्रमण विफ़ल हुए। अंत में खुर्रम ने मेवाड पर अधिकार कर लिया। हारकर बाद में इन्होनें अपमानजनक संधि की जो उनके चरित्र पर बहुत बडा दाग है। वे मेवाड के अंतिम स्वतन्त्र शासक है।