"मेवाड़ की शासक वंशावली": अवतरणों में अंतर

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|11 || [[अल्लात]] ||– 951 – 971 ई० ||इन्होंने हूण राजकुमारी हरिया देवी से शादी की और मेवाड़ मे सर्वप्रथम नोकरशाही को लागू किया। इसने दूसरी राजधानी आहड़(उदयपुर) बनायी। {{cn}}
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|12 || [[नरवाहन]] ||– 971 – 973 ई० ||
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|13 || [[शालिवाहन]] ||– 973 – 977 ई० ||
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|14 || [[शक्ति कुमार]] ||– 977 – 993 ई० ||
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|15 || [[अम्बा प्रसाद]] ||– 993 – 1007 ई० ||
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|16 || [[शुची वरमा]] ||– 1007 1021 ई० ||
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|17 || [[नर वर्मा]] ||– 1021 – 1035 ई० ||
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|18 || [[कीर्ति वर्मा]] || – 1035 – 1051 ई० ||
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|19 || [[योगराज]] ||– 1051 – 1068 ई० ||
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|20 || [[वैरठ सिंह]] ||– 1068 – 1088 ई० ||
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|21 || [[हंस पाल]] ||– 1088 – 1103 ई० ||
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|22 || [[वैरी सिंह]] ||– 1103 – 1107 ई० ||
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|23 || [[विजय सिंह]] ||– 1107 – 1127 ई० ||
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|24 || [[अरि सिंह]] ||– 1127 – 1138 ई० ||
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|25 || [[चौड सिंह]] ||– 1138 – 1148 ई० ||
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|26 || [[विक्रम सिंह]] ||– 1148 – 1158 ई० ||
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|27 || [[रण सिंह ( कर्ण सिंह )]] ||– 1158 – 1168 ई० ||
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|28 || [[क्षेम सिंह]] ||– 1168 – 1172 ई० ||
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|29 || [[सामंत सिंह]] ||– 1172 – 1179 ई० || (क्षेम सिंह के दो पुत्र सामंत और कुमार सिंह। ज्येष्ठ पुत्र सामंत मेवाड की गद्दी पर सात वर्ष रहे क्योंकि जालौर के कीतू चौहान मेवाड पर अधिकार कर लिया। सामंत सिंह अहाड की पहाडियों पर चले गये। इन्होने बडौदे पर आक्रमण कर वहां का राज्य हस्तगत कर लिया। लेकिन इसी समय इनके भाई कुमार सिंह पुनः मेवाड पर अधिकार कर लिया। )
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| 30|| [[कुमार सिंह]] ||– 1179 – 1191 ई० ||
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| 31|| [[[मंथन सिंह]] ||– 1191 – 1211 ई० ||
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|32 || [[पद्म सिंह]] ||– 1211 – 1213 ई० ||
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|33 || [[जैत्र सिंह]] ||– 1213 – 1250 ई० || भुताला का युद्ध जीता। चितौड़ को नयी राजधानी बनायीं।
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|34 || [[तेज सिंह]]|| -1261 – 1273 ई० ||2. MEWAR FIRST PICTURIZED BOOK WRITTEN BY KAMALCHANFD - SHRAWAK-PRATIKAMAN- SUTRA CHURNI
 
# UMAPATIWARLABDH KI UDADHI MILI
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|35 || [[समर सिंह]] ||– 1273 – 1301 ई० || (समर सिंह का एक पुत्र रत्नसेन मेवाड राज्य का उत्तराधिकारी हुआ और दूसरा पुत्र कुम्भकरण नेपाल चला गया। नेपाल के राज वंश के शासक कुम्भकरण के ही वंशज हैं। )
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| 36 || [[रत्नसेन]]||( 1302-1303 ई० ) || इनके कार्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौडगढ पर अधिकार कर लिया। प्रथम जौहर पद्मावती रानी ने सैकडों महिलाओं के साथ किया। गोरा – बादल का प्रतिरोध और युद्ध भी प्रसिद्ध रहा। धन्य है यह धरा जिसे ऐसे वीर प्राप्त हुए
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| 37. || [[अजय सिंह]] || ( 1303 – 1326 ई० ) || हमीर राज्य के उत्तराधिकारी थे किन्तु अवयस्क थे। इसलिए अजय सिंह गद्दी पर बैठे.
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| 38. || [[महाराणा हमीर सिंह]] || ( 1326 – 1364 ई० ) || हमीर ने अपनी शौर्य, पराक्रम एवं कूटनीति से मेवाड राज्य को बनवीर सोनगरा जो खिलजियो द्वारा नियुक्त था से छीन कर उसकी खोई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की और अपना नाम अमर किया महाराणा की उपाधि धारण की। इसी समय से ही मेवाड नरेश महाराणा उपाधि धारण करते आ रहे हैं।
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| 39. || [[महाराणा क्षेत्र सिंह]] || ( 1364 – 1382 ई० ) ||
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| 40 || [[महाराणा लाखासिंह]] || ( 1382 – 1421 ई० ) || योग्य शासक तथा राज्य के विस्तार करने में अहम योगदान। इनके पक्ष में ज्येष्ठ पुत्र चुडा ने स्वय व उसके वंशजो द्वारा राजगद्दी त्यागने की भीष्म प्रतिज्ञा की और पिता से हुई संतान मोकल को राज्य का उत्तराधिकारी मानकर जीवन भर उसकी रक्षा की।
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| 41. || [[महाराणा मोकल]] || ( 1421 – 1433 ई० ) ||
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| 43. || [[महाराणा उदा ( उदय सिंह )]]|| ( 1468 – 1473 ई० ) || महाराणा कुम्भा के द्वितीय पुत्र रायमल, जो ईडर में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे थे, आक्रमण करके उदय सिंह को पराजित कर सिंहासन की प्रतिष्ठा बचा ली। अन्यथा उदा पांच वर्षों तक मेवाड का विनाश करता रहा।
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| 44. || [[महाराणा रायमल]] || ( 1473 – 1509 ई० ) || सबसे पहले महाराणा रायमल के मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन को पराजित किया और पानगढ, चित्तौड्गढ और कुम्भलगढ किलों पर पुनः अधिकार कर लिया पूरे मेवाड को पुनर्स्थापित कर लिया। इसे इतना शक्तिशाली बना दिया कि कुछ समय के लिये बाह्य आक्रमण के लिये सुरक्षित हो गया। लेकिन इनके पुत्र संग्राम सिंह, पृथ्वीराज और जयमल में उत्तराधिकारी हेतु कलह हुआ और अंततः दो पुत्र मारे गये। अन्त में संग्राम सिंह गद्दी पर गये।
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| 46. || [[महाराणा रतन सिंह]] || ( 1528 – 1531 ई० ) ||
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| 47. || [[महाराणा विक्रमादित्य]] || ( 1531 – 1536 ई० ) || यह अयोग्य सिद्ध हुआ और गुजरात के बहादुर शाह ने दो बार आक्रमण कर मेवाड को नुकसान पहुंचाया इस दौरान 1300 महारानियों के साथ कर्मावती सती हो गई। विक्रमादित्य की हत्या दासीपुत्र बनवीर ने करके 1534 – 1537 तक मेवाड पर शासन किया। लेकिन इसे मान्यता नहीं मिली। इसी समय सिसोदिया वंश के उदय सिंह को पन्नाधाय ने अपने पुत्र की जान देकर भी बचा लिया और मेवाड के इतिहास में प्रसिद्ध हो गई।
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|48. || [[महाराणा उदय सिंह]] || ( 1537 – 1572 ई० ) || मेवाड़ की राजधानी चित्तोड़गढ़ से उदयपुर लेकर आये. गिर्वा की पहाड़ियों के बीच [[उदयपुर]] शहर इन्ही की देन है. इन्होने अपने जीते जी गद्दी छोटे पुत्र जगमाल को दे दी, किन्तु उसे सरदारों ने नहीं माना, फलस्वरूप जेष्ट बेटे प्रताप को गद्दी मिली.
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|50. || [[महाराणा अमर सिंह]] || (1597 – 1620 ई० ) || प्रारम्भ में मुगल सेना के आक्रमण न होने से अमर सिंह ने राज्य में सुव्यवस्था बनाया। जहांगीर के द्वारा करवाये गयें कई आक्रमण विफ़ल हुए। अंत में खुर्रम ने मेवाड पर अधिकार कर लिया। हारकर बाद में इन्होनें अपमानजनक संधि की जो उनके चरित्र पर बहुत बडा दाग है। वे मेवाड के अंतिम स्वतन्त्र शासक है।
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| 51. || [[महाराणा कर्ण सिंह]] || ( 1620 – 1628 ई० ) || इन्होनें मुगल शासकों से संबंध बनाये रखा और आन्तरिक व्यवस्था सुधारने तथा निर्माण पर ध्यान दिया।
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| 52 || [[महाराणा जगत सिंह]] || ( 1628 – 1652 ई० ) ||
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| 53. || [[महाराणा राजसिंह]] || ( 1652 – 1680 ई० ) || यह मेवाड के उत्थान का काल था। इन्होने औरंगजेब से कई बार लोहा लेकर युद्ध में मात दी। इनका शौर्य पराक्रम और स्वाभिमान * महाराणा प्रताप जैसे था। इनकों राजस्थान के राजपूतों का एक गठबंधन, राजनितिक एवं सामाजिक स्तर पर बनाने में सफ़लता अर्जित हुई। जिससे मुगल संगठित लोहा लिया जा सके। महाराणा के प्रयास से अंबेर, मारवाड और मेवाड में गठबंधन बन गया। वे मानते हैं कि बिना सामाजिक गठबंधन के राजनीतिक गठबंधन अपूर्ण और अधूरा रहेगा। अतः इन्होने मारवाह और आमेर से खानपान एवं वैवाहिक संबंध जोडने का निर्णय ले लिया। राजसमन्द झील एवं राजनगर इन्होने ही बसाया.
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|* 54. || [[महाराणा जय सिंह]] || ( 1680 – 1698 ई० ) || जयसमंद झील का निर्माण करवाया.
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|* 56. || [[महाराणा संग्राम सिंह]] || ( 1710 – 1734 ई० )|| महाराणा संग्राम सिंह दृढ और अडिग, न्यायप्रिय, निष्पक्ष, सिद्धांतप्रिय, अनुशासित, आदर्शवादी थे। इन्होने 18 बार युद्ध किया तथा मेवाड राज्य की प्रतिष्ठा और सीमाओं को न केवल सुरक्षित रखा वरन उनमें वृध्दि भी की।
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|* 57. || [[महाराणा जगत सिंह द्वितीय]] || ( 1734 – 1751 ई० ) || ये एक अदूरदर्शी और विलासी शासक थे। इन्होने जलमहल बनवाया।
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|* 59. || [[महाराणा राजसिंह द्वितीय]] || ( 1754 – 1761 ई० ) ||
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|* 60 || [[महाराणा अरिसिंह द्वितीय]] || ( 1761 – 1773 ई० ) ||
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|* 61. || [[महाराणा हमीर सिंह द्वितीय]] || ( 1773 – 1778 ई० ) || इनके कार्यकाल में सिंधिया और होल्कर ने मेवाड राज्य को लूटपाट करके तहस – नहस कर दिया।
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| 62. || [[महाराणा भीमसिंह]] || ( 1778 – 1828 ई० ) || इनके कार्यकाल में भी मेवाड आपसी गृहकलह से दुर्बल होता चला गया। 13 जनवरी 1818 को ईस्ट इंडिया कम्पनी और मेवाड राज्य में समझौता हो गया। अर्थात मेवाड राज्य ईस्ट इंडिया के साथ चला गया। मेवाड के पूर्वजों की पीढी में बप्पारावल, कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप जैसे तेजस्वी, वीर पुरुषों का प्रशासन मेवाड राज्य को मिल चुका था। प्रताप के बाद अधिकांश पीढियों
में वह क्षमता नहीं थी जिसकी अपेक्षा मेवाड को थी। महाराजा भीमसिंह योग्य व्यक्ति थे निर्णय भी अच्छा लेते थे परन्तु उनके क्रियान्वयन पर ध्यान नही देते थे। इनमें व्यवहारिकता का आभाव था।ब्रिटिश एजेन्ट के मार्गदर्शन, निर्देशन एवं सघन पर्यवेक्षण से मेवाड राज्य प्रगति पथ पर अग्रसर होता चला गया।
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