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{{स्रोतहीन|date=सितंबर 2018}}
'''जाम्बवन्त''' [[रामायण]] के एक प्रमुख पात्र हैं। वे ऋक्ष (रीछ ) प्रजाति के थे।
 
==पौराणिक कथा==
जांबवंत का जन्म ब्रह्मा जी की कृपा से सतयुग में राजा बलि के काल में हुआ था। परशुराम और हनुमान के बाद जामवन्त ही एक ऐसे व्यक्ति थे जिनके तीनों युग में होने का वर्णन मिलता है और कहा जाता है कि वे आज भी जिंदा हैं। माना जाता है कि देवासुर संग्राम में देवताओं की सहायता के लिए जामवन्त का जन्म ‍अग्नि के पुत्र के रूप में हुआ था। उनकी माता एक गंधर्व कन्या थीं।
 
सृष्टि के प्रथम कल्प के सतयुग में जामवन्तजी उत्पन्न हुए थे। सतयुग में भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग धरती मांग कर बलि को चिरंजीवी होने का वरदान देकर पाताल लोक का राजा बना दिया था। वामन अवतार के समय जामवन्तजी अपनी युवावस्था में थे। जामवन्त को चिरं‍जीवियों में शामिल किया गया है जो कलियुग के अंत तक रहेंगे।
 
पुराणों के अध्ययन से पता चलता है कि वशिष्ठ, अत्रि, विश्वामित्र, दुर्वासा, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम, मार्कण्डेय ऋषि, वेद व्यास और जामवन्त आदि कई ऋषि, मुनि और देवता सशरीर आज भी जीवित हैं।
 
पुराणों के अनुसार जामवन्तजी बहुत ही विद्वान् हैं। वेद उपनिषद् उन्हें कण्ठस्थ हैं। वह निरन्तर पढ़ा ही करते थे और इस स्वाध्यायशीलता के कारण ही उन्होंने लम्बा जीवन प्राप्त किया था। जामवन्त को परम ज्ञानी और अनुभवी माना जाता था। उन्होंने ही हनुमानजी से हिमालय में प्राप्त होने वाली चार दुर्लभ औषधियों का वर्णन किया था जिसमें से एक संजीविनी थी।
 
त्रेतायुग में जामवन्त बूढ़े हो चले थे। माना जाता है कि जामवन्तजी समुद्र को लांघने में सक्षम थे लेकिन चूँकि वह बूढ़े हो गये थे, उन्होंने हनुमानजी से विनती थी कि आप ही समुद्र लांघिये। जब हनुमानजी अपनी शक्ति को भूल जाते हैं तो जामवन्तजी ही उनको याद दिलाते हैं।
 
एक मान्यता अनुसार भगवान ब्रह्मा ने एक ऐसा रीछ मानव बनाया था जो दो पैरों से चल सकता था और जो मानवों से संवाद कर सकता था। पुराणों अनुसार वानर और मानवों की तुलना में अधिक विकसित रीछ जनजाति का उल्लेख मिलता है। वानर और किंपुरुष के बीच की यह जनजाति अधिक विकसित थी
 
उनका सन्दर्भ [[महाभारत]] से भी है। स्यमंतक मणि के लिये श्री कृष्ण एवं जामवंत में नंदिवर्धन पर्वत (तत्कालीन नाँदिया, सिरोही, राजस्थान ) पर २८ दिनो तक युध्द चला। जामवंत को श्री कृष्ण के अवतार का पता चलने पर अपनी पुत्री जामवन्ती का विवाह श्री कृष्ण द्वारा स्थापित शिवलिंग ( रिचेश्वर महादेव मंदिर नांदिया ) की शाक्शी में करवाया। युद्ध मे जाम्बवन्त ने यग्यकूप नामक राक्षस का वध किया था। [[हनुमान]] की माता [[अंजना]] ने जाम्बवन्त को अपना बड़ा भ्राता माना था जिससे वह शिवान्श हनुमान के मामा बन गये।
 
== जामवन्त का अहंकार ==
==पौराणिक कथा==
राम-रावण के युद्ध में जामवन्तजी रामसेना के सेनापति थे। युद्ध की समाप्त‌ि के बाद जब भगवान राम विदा होकर अयोध्या लौटने लगे तो जामवन्तजी ने उनसे कहा कि प्रभु इतना बड़ा युद्ध हुआ मगर मुझे पसीने की एक बूंद तक नहीं गिरी। उस समय प्रभु श्रीराम मुस्कुरा दिए और चुप रह गए। श्रीराम समझ गए कि जामवन्तजी के भीतर अहंकार प्रवेश कर गया है।
जांबवंत जी का जन्म ब्रह्मा जी से ही हुआ था उनके पत्नी का नाम जयवंती था। यह जब जवान थे, तब भगवन त्रिविक्रम [[वामनावतार|वामन]] जी का अवतार हुआ। तब भगवन बलि के पास तीन पग भिक्षा मांगने गए और बलि तैयार भी हो गया, भगवान ने अपना स्वरुप बढ़ाया और भगवान ने देख़ते ही देखते दो पग से ही पूरा ब्रह्मण्ड नाप लिआ अब भगवान ने बलि को बांधने लगे तब जामवंत जी ने बलि को बांधते हुए प्रभु की सात प्रदिक्षणा कर ली और तब तक प्रभु पूरा बलि को पूरा बांध भी नहीं पाए थे। जब सुग्रीव जी, बलि के डर से ऋषिमुख गिरी [[पर्वत|पहाड़]] पर था तब भी जामवंत जी उनके साथ थे। अब उनके ज्ञान के बारे में बात बता दू की जब राम जी बाली को मारने जाने वाले थे तब भी जामवंत जी ने बताया था की इन सात पेड़ो को एक बाण से भेदेगा वही बाली को मारेगा और ऐसा ही हुआ। एक कथा यह भी हे जब हनुमान जी लंका को जाने वे थे तब भी वह जामवंत जी की सलाह लेकर गए थे। अब उनके बल की बात जब भगवान राम ने रावण क मारा तो जामवन्तजी ने भगवान से ये वर माँगा की मुझे युद्ध में ललकारने वाला कोई हो तब भगवान ने कहा की द्वापर में मैं ही तुम से युद्ध करूंगा और ऐसा ही हुआ।
 
जामवन्त ने कहा, प्रभु युद्ध में सबको लड़ने का अवसर मिला परंतु मुझे अपनी वीरता दिखाने का कोई अवसर नहीं मिला। मैं युद्ध में भाग नहीं ले सका और युद्ध करने की मेरी इच्छा मेरे मन में ही रह गई। उस समय भगवान ने जामवन्तजी से कहा, तुम्हारी ये इच्छा अवश्य पूर्ण होगी जब मैं अगला अवतार धारण करूंगा। तब तक तुम इसी स्‍थान पर रहकर तपस्या करो।
 
== द्वापर युग में जामवन्त ==
स्यमंतक मणि एक चमत्कारिक मणि है जिसे देवराज इंद्र धारण करते हैं। कुछ स्रोत कहते हैं कि प्राचीनकाल में कोहिनूर को ही स्यमंतक मणि कहा जाता था। कोहिनूर हीरा लगभग 5,000 वर्ष पहले मिला था और यह प्राचीन संस्कृत इतिहास में लिखे अनुसार स्यमंतक मणि नाम से प्रसिद्ध रहा था।
 
स्यमंतक मणि भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के पिता सत्राजित के पास थी। उन्हें यह मणि भगवान सूर्य ने दी थी। सत्राजित ने यह मणि अपने देवघर में रखी थी। वहां से वह मणि पहनकर उनका भाई प्रसेनजित शिकार के लिए चला गया। जंगल में उसे और उसके घोड़े को एक सिंह/शेर ने मार दिया और मणि अपने पास रखी ली।
 
सिंह के पास मणि देखकर जाम्बवंतजी ने सिंह को मारकर मणि उससे ले ली और उस मणि को लेकर वे अपनी गुफा में चले गए, जहां उन्होंने इसको खिलौने के रूप में अपने पुत्र को दे दी। इधर सत्राजित ने श्रीकृष्ण पर आरोप लगा दिया कि यह मणि उन्होंने चुराई है।
 
== स्यमंतक मणि चुराने के आरोप का कारण ==
सत्राजित ने भगवान सूर्य की उपासना की थी जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने अपनी स्यमन्तक नाम की मणि उसे दे दी. एक दिन जब कृष्ण साथियों के साथ चौसर खेल रहे थे तो सत्राजित स्यमन्तक मणि मस्तक पर धारण किए उनसे भेंट के लिए चले आ रहे थे. उनके अद्वितीय तेज को देख कर कृष्ण के मित्रों ने उन्हें कहा,’हे वासुदेव! लगता है आपसे मिलने स्वयं सूर्यदेव आ रहे हैं.’ तब कृष्ण ने उन्हें  सत्राजित के स्यमन्तक के प्राप्ति की कहानी सुनाई, तब तक सत्राजित वहाँ पहुँच चुके थे. कृष्ण के साथियों ने सत्राजित से कहा, ‘अरे मित्र! तुम्हारे पास यह अलौकिक मणि है. इनका वास्तविक अधिकारी तो राजा होता है. इसलिए तुम इस मणि को हमारे राजा उग्रसेन को दे दो"। इसी कारण जब मणि खो गयी तो सत्राजित को लगा कि यह मणि श्री कृष्ण ने चुराई है।
 
== श्रीकृष्ण-जाम्बवंत युद्ध ==
श्रीकृष्ण को यह मणि हासिल करने के लिए जाम्बवंतजी से युद्ध करना पड़ा। बाद में जाम्बवंत जब युद्ध में हारने लगे तब उन्होंने अपने प्रभु श्रीराम को पुकारा और उनकी पुकार सुनकर श्रीकृष्ण को अपने रामस्वरूप में आना पड़ा। तब जाम्बवंत ने समर्पण कर अपनी भूल स्वीकारी और उन्होंने मणि भी दी और श्रीकृष्ण से निवेदन किया कि आप मेरी पुत्री जाम्बवती से विवाह करें। दरअसल जामवंत जी के त्रेता युग में युद्ध के दौरान अहंकार और अधूरी इच्छा का परिणाम था कि उन्हें २८ दिन तक श्री कृष्ण से युद्ध करना पड़ा, और जब वे हारने लगे तो उन्होंने श्री राम को याद किया और समर्पण किया।
 
== जामवंत गुफा ==
गुजरात के पोरबंदर से 17 किलोमीटर दूर राजकोट-पोरबंदर मार्ग पर एक गुफा पाई गई है जिसे जामवन्त की गुफा कहा जाता है। माना जाता है कि यह वही स्थान है जहां भगवान कृष्ण और जामवन्त के बीच युद्ध हुआ था। माना जाता है कि इस गुफा में दो सुरंग हैं। पहली सुरंग जानाघर जो जाती है और दूसरी द्वारिका के लिए।
 
== जामथुन नगरी ==
माना जाता है कि जामथुन नामक नगरी जामवन्त ने बसाई थी। यह प्राचीन नगरी मध्यप्रदेश के रतलाम जिले में उत्तर-पूर्व में स्थित है। यहां एक गुफा मिली है जो जामवन्त का निवास स्थान माना जाता है।
 
== बरेली की गुफा ==
उत्तर प्रदेश के बरेली के पास जामगढ़ में भी एक प्राचीन गुफा है। माना जाता है कि जामवन्तजी यहां हजारों वर्ष रहे थे। बरेली से लगभग सोलह किलोमीटर दूर विंध्याचल की पहाड़ी पर प्राचीन काल से ही गणेश-जामवन्त की प्रतिमा स्थापित हैं, जिनके बारे में मान्यता है कि जामवन्तजी द्वारा स्थापित यह प्रतिमा प्रतिवर्ष एक तिल के बराबर बढ़ती जा रही है।
 
== जामवन्त तपोगुफा ==
जम्मू और कश्मीर के जम्मू नगर के पूर्वी छोर पर एक गुफा मंदिर बना हुआ है जिसे जामवन्त की तपोस्थली माना जाता है। इस गुफा में कई पीर-फकीरों और ऋषियों ने तपस्या की है इसलिए इसका नाम 'पीर खोह्' भी कहा जाता है। डोगरी भाषा में खोह् का अर्थ गुफा होता है।
 
पीर खोह् तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु मुहल्ला पीर मिट्ठा के रास्ते गुफा तक जाते हैं। मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं के मनमोहक चित्र उकेरे गए हैं। आंगन में शिव मंदिर के सामने पीर पूर्णनाथ और पीर सिंधिया की समाधिंया हैं। जामवन्त गुफा के साथ एक साधना कक्ष का निर्माण किया है जो तवी नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।{{श्री राम चरित मानस}}
{{श्री राम चरित मानस}}
 
[[श्रेणी:रामायण के पात्र]]