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'''ब्रजबुलि''' उस काव्यभाषा का नाम है जिसका उपयोग उत्तर भारत के पूर्वी प्रदेशों अर्थात् [[मिथिला]], [[बंगाल]], [[आसाम]] तथा [[उड़ीसा]] के भक्त कवि प्रधान रूप से कृष्ण की लीलाओं के वर्णन के लिए करते रहे हैं। [[नेपाल]] में भी ब्रजबुलि में लिखे कुछ काव्य तथा नाटकग्रंथ मिले हैं। इस काव्यभाषा का उपयोग शताब्दियों तक होता रहा है। ईसवी सन् की 15वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक इस काव्यभाषा में लिखे पद मिलते हैं।
 
यद्यपि "ब्रजबुलि साहित्य" की लंबी परंपरा रही हैं, फिर भी "ब्रजबुलि" शब्द का प्रयोग ईसवी सन् की 19वीं शताब्दी में मिलता है। इस शब्द का प्रयोग अभी तक केवल [[बंगाली]] कवि [[ईश्वरचंद्र गुप्त]] की रचना में ही मिला है। कविंंद्र रविन्द्र ने भी "भानुसिंह ठाकुर" नाम से ब्रजबुली में कविता की है। कलकत्ता विश्वविद्यालय के डॉ सुकुमार सेन ने 'ब्रजबुली' साहित्य का इतिहास अंग्रेजी में प्रकाशित किया है।
 
== व्युत्पत्ति ==