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[[चित्र:Darius I the Great's inscription.jpg|thumb|240px|ईरान के बीसतुन शिलालेख में अहुर माज़्दा का कई बार वर्णन है]]
[[चित्र:Taq-e Bostan - High-relief of Ardeshir II investiture.jpg|thumb|240px|ताक़-ए-बोस्तान की शिलाओं पर - बाएँ पर मित्र (देवता), दाएँ में अहुर माज़्दा और बीच में [[सासानी साम्राज्य|सासानी सम्राट]] शापूर द्वितीय राज्यभार ग्रहण करते हुए]]
'''अहुर मज़्दा'''
देव गणों की पूजा का उल्लेख १५वी शताब्दी ईसा पूर्व में ईरान से लेकर सीरिया और तुर्की में पाया जाता है। इन अभिलेखों में भारत से इन देवताओं के आने का उल्लेख है। इससे पता चलता है कि अगले हजार साल में दक्षिणी इरान में कुछ लोग देवो के बदले असुर को पूजने लगे। पारसी पंथ शुरूआत ५वी शताब्दी से मानता है।
[[आदिम हिन्द-ईरानी भाषा|आदिम हिन्द-ईरानी लोगों]] के पंथ में संसार और ब्रह्माण्ड में अच्छाई और सही व्यवस्था के महत्त्व पर ज़ोर था। जब भारतीय आर्य और ईरानी लोगों का विभाजन हुआ तो इस सही व्यवस्था के लिए [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] में शब्द 'ऋत' बना और [[ईरानी भाषा परिवार|ईरानी भाषाओँ]] में इसका [[सजातीय शब्द|सजातीय]] 'अर्ता' (<small>{{Nastaliq|ur|ارته}}</small>) बना, जिसका एक अन्य रूप 'अशा' है। ध्यान दीजिये कि क्योंकि [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] भी [[हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार|हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार]] की सदस्य है इसलिए उसमें भी सही के लिए इस से मिलता-जुलता 'राईट' (<small>right</small>) शब्द है। इसके विपरीत जाने वाली क्रिया को संस्कृत में 'द्रुह' और फ़ारसी में 'द्रुज' कहा गया, यानि 'झूठा' या 'बुरा'। पारसी धर्म में अहुर मज़्दा अर्ता के लिए और द्रुज के खिलाफ़ हैं जबकि अंगिरा मैन्यु उस से विपरीत है।<ref name="ref72memep">[http://books.google.com/books?id=r4I-FsZCzJEC Asian mythologies] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20130930101633/http://books.google.com/books?id=r4I-FsZCzJEC|date=30 सितंबर 2013}}, Yves Bonnefoy, University of Chicago Press, 1993, ISBN 978-0-226-06456-7, ''... the Good was thus the right adjustment (arta in Iranian, ṛta in Sanskrit) ... Evil was their dissociation (anṛta in Sanskrit) ... Truth, to which is opposed the druj (in Sanskrit: druh), 'deceit, lies, falseness, unreality' ...''</ref>
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