"आज्ञा चक्र": अवतरणों में अंतर

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हिन्दू परम्परा के अनुसार '''आज्ञा चक्र''' छठा मूल चक्र है। ध्यान करने से आज्ञा चक्र होने का अभास होता है
आज्ञा का अर्थ है आदेश। सर्वप्रथम साधना के लिए साधक को इस चक्र पर ध्यान लगाने का अभ्यास करना चाहिए, क्योंकि जब शक्ति का जागरण होता है तो वह नियंत्रित नहीं हो पाती और स्थुल शरीर के तल पर विकार आने की संभावना से नकारा नहीं जा सकता है। अतः ध्यान लगाने की शुरुआत इसी चक्र से करना आध्यात्मिक जगत में श्रेष्ठ अनुभूति माना जाता है , इस चक्र पर ध्यान से सांसारिक जीवन में भी व्यक्ति अपार सफलता प्राप्त कर सकता है चाहे वह विधार्थी हो , उद्यमी या नौकरी पेशा वाला हो। इस चक्र पर ध्यान से मन इन्द्रियों का राजा हो जाता है अर्थात इन्द्रियों की विषयों में लिप्तता नहीं रहती हैं और विवेक का जागरण होकर व्यक्ति मन का राजा होकर 'राजयोग'सिद्ध हो जाता हैं।
आग्या का अर्थ है आदेश।
 
आज्ञाचक्र भौंहों के बीच माथे के केंद्र में स्थित होता है।<ref>{{Cite web|url=https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE_%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0|title=आज्ञा चक्र - विकिपीडिया|website=hi.m.wikipedia.org|access-date=2020-01-09}}</ref> यह भौतिक शरीर का हिस्सा नहीं है लेकिन इसे प्राणिक प्रणाली का हिस्सा माना जाता है। स्थान इसे एक पवित्र स्थान बनाता है जहां हिंदू इसके लिए श्रद्धा दिखाने के लिए सिंदूर लगाते हैं । अजना चक्र पीनियल ग्रंथि के अनुरूप है।