"माया": अवतरणों में अंतर

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'''श्वेताश्वतर उपनिषद् (१.१२) ''' तीन तत्व है। अनादि अनंत शाश्वत। एक ब्रह्म, एक जीव, एक माया।" तो ब्रह्म (भगवान) और जीव (आत्मा) के अलावा जो बचा वो माया है, माया अज्ञान का प्रतीक है
 
"सर्वसमर्थ तथा असमर्थ ये दो आजन्म आत्मा है ,भोगने वाले जीवात्मा केलिए उपयुक्त भोज्य सामग्री से युक्त अनादि प्रकृति एक तीसरी सक्ति है। इन तीनो में जो ईश्वर तत्व है,शेष दो से विलछं अनंत सम्पूर्ण करतापन के अभिमान से रहित है ।मनुष्य ,ईश्वर ,जीव ,प्रकृति इन तीनो को ब्रम्ह रूप से प्राप्त करने पर मनुष्य सभी बंधन से मुक्त हो जाता है।
== सन्दर्भ==
यहाँ पर बंधन से मुक्त होने का अर्थ सब प्रकार से मन में उठने वाले भाव से है ,
{{टिप्पणीसूची|२}}
भोग से युक्त सम्पूर्ण विषयों के प्रति अनासक्ति का भाव मोछ के कारण स्वरुप है।
[https://www.dharmendramishra.com/ प्रेरक विचार]धर्मेंद्र मिश्रा
 
==बाहरी कड़ियाँ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/माया" से प्राप्त