"वसन्त पञ्चमी": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Mustard Fields.jpg|right|thumb|450px|वसन्त पञ्चमी के समय सरसो के पीले-पीले फूलों से आच्छादित धरती की छटा देखते ही बनती है।]]
=== पौराणिक महत्व ===
इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें [[त्रेता युग]] से जोड़ती है। [[रावण]] द्वारा [[सीता]] के हरण के बाद [[श्रीराम]] उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें [[दण्डकारण्य]] भी था। यहीं [[शबरी]] नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे [[बेर]] राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे जूठे बेरों वाली इस घटना को [[रामकथा]] के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया।<ref>{{Cite web|url=https://hindi.news18.com/news/dharm/basant-panchami-2021-date-mythological-significance-puja-muhurat-astrosage-bgys-3465354.html|title=Basant panchami 2021: बसंत पंचमी कब है? जानें तिथि, पौराणिक महत्व एवं शुभ मुहूर्त|website=News18 Hindi|language=hi|access-date=2021-02-14}}</ref>
 
दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।