"सवैया": अवतरणों में अंतर

मत्तगयंद सवैया
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पंक्ति 35:
:टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहैं।
:माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहैं, न जैहैं, न जैहैं॥
 
 
 
मत्तगयंद सवैया छन्द का उदाहरण:
 
(मालती) 7भ गग  ( 211 x 7 + 22 )
 
राग बिहाग सुहाग छुड़ाकर ,
 
माथ सजी अब राख व चूनी ।
 
रुप सरुप कुरूप किया सब ,
 
केश  तजे  धर  चूनर  सूनी ।।
 
नैनन  के  रसराज  रुसाकर,
 
धार  बही  जमुना जल  दूनी।
 
पागल के सम पागल होकर ,
 
खूब  रमी  रमणा  अब  धूनी ।।
 
-- पवन पागल
 
==बाहरी कड़ियाँ==
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