"पारद (प्राचीन जाति)": अवतरणों में अंतर

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:'पंचनद रमठ पारत तारक्षिति श्रृंग वैश्य कनक शकाः।
 
पुराने शिलालेखों में 'पार्थव' रूप मिलता हैं जिससे युनानी 'पार्थिया' शब्द बना है। युरोपीय विद्वानों ने '[[पह्लव]]' शब्द को इसी 'पार्थिव' का अपभ्रंश या रूपांतक मानकर पह्लव और पारद को एक ही ठहराया है। पर [[संस्कृत साहित्य]] में ये दोनों जातियाँ भिन्न लिखी गई हैं। मनुस्मृति के समान महाभारत और बृहत्संहिता में भी 'पह्लव' 'पारद' से अलग आया है। अतः 'पारद 'का'पह्लव' से कोई संबंध नहीं प्रतीत होता। [[पारस]] में पह्लव शब्द शाशानवंखी सम्राटों के समय से ही भाषा और लिपि के अर्थ में मिलता है। इससे सिद्ध होता है कि इसका प्रयोग अधिक व्यापक अर्थ में पारसियों को लिये भारतीय ग्रंथों में हुआ है। किसी समय में पारस के सरदार 'पहलवान' कहलाते थे। संभव है, इसी शब्द से 'पह्लव' शब्द बना हो। मनुस्मृति में 'पारदों' और 'पह्लवों' आदि को आदिम क्षत्रिय कहा है जो ब्राह्मणों के अदर्शन से संस्कारभ्रष्ट होकर शूद्रत्व को प्राप्त हो गए और बाद में म्लेच्छ हो गए।
 
[[श्रेणी:प्राचीन जातियाँ]]