"ब्रह्म": अवतरणों में अंतर

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सम्पूर्ण विश्व का परम् सत्य ===
 
मनुष्य का जन्म होता है तो जन्म क्षण में ही उसके ह्रदयहृदय में चैतन्य मन से होते हुऐ अवचेतन मन से होते हुऐ अंतर्मन से होते हुऐ मन से होते हुए मस्तिष्क में चेतना प्रवेश करती हैं वही आत्मा है और ये आत्मा किसी मनुष्य की मृत्यु हुई थी तो उसकी चेतना अर्थात आत्मा अपने मन से होते हुऐ अंतर्मन से होते हुए अवचेतन मन से होते हुऐ चैतन्य मन से होते हुऐ दूसरे शरीर में अवचेतन मन से होते हुऐ अंतर्मन से होते हुऐ मन से होते हुए मस्तिष्क में पहुंचती है यही क्रम हर जन्म में होता है ।
 
जब मनुष्य जागता है तो उसके ह्रदय से ऊर्जाओं का विखण्डन होते जाता है सबसे पहले ह्रदय में प्राण शक्ति जिसे ब्रह्म कहते है उसे अव्याकृत ब्रह्म अर्थात सचेता ऊर्जा बनती है वह सचेता ऊर्जा से नाद ब्रह्म बनता है अर्थात अंतर्मन का निर्माण होता है जिसे ध्वनि उत्पन्न होती है फिर उसे व्याकृत ब्रह्म बनता है मस्तिष्क में चेतना उत्पन्न हो जाती है फिर उस चेतना से पंचमहाभूत बनते है जिसे ज्योति स्वरूप ब्रह्म कहते है सम्पूर्ण शरीर के होने का एहसास होता है फिर मनुष्य कर्म क्रिया प्रतिक्रिया करता है संसार में। अगर सोता है तो मनुष्य ज्योति स्वरूप ब्रह्म चेतना अर्थात व्याकृत ब्रह्म मे समा जाता है फिर वह नाद ब्रह्म में समा जाता है फिर वह नाद ब्रह्म अव्याकृत ब्रह्म समा जाता है वह अव्याकृत ब्रह्म प्राण ऊर्जा अर्थात ब्रह्म में समा जाता है इसलिए मनुष्य ही ब्रह्म है ।