"उच्चावच": अवतरणों में अंतर

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[[File:Maps-for-free Sierra Nevada.png|thumb|200px|सिएरा नेवादा के एक क्षेत्र का उच्चावच निरूपण]]
'''उच्चावच''' (terrain) धरातल की ऊँचाई-निचाई से बनने वाले प्रतिरूप या पैटर्न को कहते हैं।<ref>[http://hindi.indiawaterportal.org/%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%9A-relief उच्चावच (Relief)], इण्डिया वाटर पोर्टल पर</ref> क्षेत्रीय स्तर पर उच्चावच भू-आकृतिक प्रदेशों के रूप में व्यक्त होता है और छोटे स्तर पर यह एक [[स्थलरूप]] या स्थलरूपों के एक संयुक्त समूह का प्रतिनिधित्व करता है।
 
किसी क्षेत्र में [[अपरदन]] की प्रक्रिया द्वारा प्रभावित हो सकने वाली उपलब्ध ऊँचाई को '''स्थानीय उच्चावच''' (local relief) कहते हैं।
 
पृथ्वी पर तीन प्रकार के उच्चावच पाये जाते हैं-
 
1- '''प्रथम श्रेणी उच्चावच''':- इसके अन्तर्गत महाद्वीप एवं महासागरीय बेसिन को शामिल किया जाता है।
 
2- '''द्वितीय श्रेणी के उच्चावच''':- पर्वत, पठार, मैदान तथा झील आदि द्वितीय श्रेणी के उच्चावच हैं।
 
3- '''तृतीय श्रेणी उच्चावच''':- सरिता,खाङी, डेल्टा, सागरीय जल, भूमिगत जल, पवन, हिमनद आदि के कारण उत्पन्न स्थलाकृतियों को तृतीय श्रेणी उच्चावच कहते हैं।
 
भू- आकृति विज्ञान के विषयक्षेत्र के अन्तर्गत उपर्युक्त तीन प्रकार के स्थलरूपों को शामिल किया जाता है।
 
==स्थानीय उच्चावच (local relief)==
किसी क्षेत्र में [[अपरदन]] की प्रक्रिया द्वारा प्रभावित हो सकने वाली उपलब्ध ऊँचाई को स्थानीय उच्चावच कहते हैं।
 
==उच्चावच प्रदर्शन की विधियां==
धरातल पर अनेकानेक स्थलाकृत्तियाँ पाई जाती हैं। धरातल पर सर्वत्र ढाल एक सा नहीं है । कहीं पर हिमालय जैसे ऊँचे-ऊँचे पर्वतों पर तीव्र ढाल
तो कहीं गंगा-सतलज जैसे समतल मैदान हैं, कहीं गहरी घाटियों के खड़े एवं तीव्र ढाल तो कहीं ऊबड़-खाबड़ धरातल के असमान ढाल भूपटल की विशेषताऐँ
हैं । इन्हें मानचित्र पर प्रदर्शित करने की कई विधियाँ हैं । उच्चावच प्रदर्शन हेतु प्रारम्भ में तकनीकी एवं गणितीय सुविधाओं के
तीव्र ढाल तो कहीं ऊबड़-खाबड़ धरातल के असमान ढाल भूपटल की विशेषताऐँ
अभाव में गुणात्मक विधियों का उपयोग किया जाता था मानचित्रण कला, तकनीकी ज्ञान एवं गणितीय सुविधाओं के विकास के साथ-साथ मात्रात्मक
हैं । इन्हें मानचित्र पर प्रदर्शित करने की कई विधियाँ हैं ।
विधियों का विकास हुआ है । उच्चावच प्रदर्शन की विभिन्न विधियों का निम्नानुसार विकास के क्रम में वर्णन किया गया है -
उच्चावच प्रदर्शन हेतु प्रारम्भ में तकनीकी एवं गणितीय सुविधाओं के
अभाव में गुणात्मक विधियों का उपयोग किया जाता था मानचित्रण कला,
तकनीकी ज्ञान एवं गणितीय सुविधाओं के विकास के साथ-साथ मात्रात्मक
विधियों का विकास हुआ है । उच्चावच प्रदर्शन की विभिन्न विधियों का
निम्नानुसार विकास के क्रम में वर्णन किया गया है -
 
=== दृश्य विधि ===