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श्री लक्ष्मी पुराण
 
नमस्ते कमला मागो सागर दुल्लणी । नमस्ते नमस्ते लक्ष्मी बिष्णुङ्क घरणि ।१।
नमस्ते कमला मागो अति दय़ाबती । स्थाबर जङ्गम कीट आदि पालु निति ।२।
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दिनके नारद पराशर मुनि दुइ । भ्रमि भ्रमि एक ग्रामे प्रबेशिले जाइँ ।९।
सेहिदिन मार्गशीर मास गुरुवार । पर्ब पड़िथिला सर्ब पुरबासीङ्कर ।१०।
प्रति घरद्वार गोमय़रे लिपा होइ । लक्ष्मी पादपद्म चिता प्ड़िथिला तहिँ ।११।
नारीमाने स्नान सारि पिन्धा झीनबास । लक्ष्मींक पूजारे सर्बे होइछन्ति बश ।१२।
ब्राह्मणंक ठारु जे चण्डाल परियन्ते । लक्ष्मींक पूजारे रत अछन्ति समस्त ।१३।
हुल हुली शबदरे पुरिछि गगन । देखि ए उत्सब रीति बिधाता नन्दन ।१४।
पछरन्ति पराशर मुनिङ्कु उदन्त । कह कह तपीबर ए किस चरित ।१५।
ब्रह्मण चण्डाल आदि समस्त जातिरे । करुछन्ति कि उत्सब आनन्द मतिरे ।१६।
केउँ ब्रत कि उपास अटे एहा नाम । काहाकु करन्ति पूजा तार कि निय़म ।१७।
एहा शुणि पराशर होइ हस हस । कहन्ति बचन धीरे शुण बिधिशिष्य़ ।१८।
ए धान माणिका गुरुवार जे अटइ । लक्ष्मी देवींकर पूजा ए ब्रत अटइ ।१९।
सबु मास मानंकरे मार्गशिर सार । तहिँरे पड़इ जेउँ जेउँ गुरुवार ।२०।
लक्ष्मींकर प्रिय़ सेहि बारमान जाण । सबुठारु आद्य गुरुवारटि प्रधान ।२१।
एक दिने शुक्ल दशमी गुरुवार । पड़िले सुदशाब्रत हुए से दिनर ।२२।
लक्ष्मींकर अतिप्रिय़ अटइ से ब्रत । एहा कहि पराशर हेले मौनब्रत ।२३।
पुणि ताहाङ्कु पुछिले ब्रह्माङ्क कुमर । लक्ष्मीब्रत करिथिले मर्त्य केउँ नर ।२४।
तहिँरु से केउँ शुभफल लभिअछि । लक्ष्मी द्रोही होइकरि के दुःख पाइछि ।२५।
एहा सबु मो आगरे कहतपी साइँ । शुणिबाकु ताहा चित्ते श्रद्धा उपुजइ ।२६।
नारद बचन शुणि पराशर मुनि । कहन्ति हरष चित्ते सुमधुर बाणी ।२७।
धन्य़ हे नारद तुम्भे पबित्र चरित्र । लक्ष्मीब्रत कथारे जे होइअछ रत ।२८।
कहुअछि पुरातन कथा अछि जाहा । होइब आनन्द जात शुणिलेटि ताहा ।२९।
एकदिने जगन्नाथ पाशे लक्ष्मी थिले । करपत्र योड़िण ताहाङ्कु जणाइले ।३०।
आजि मो बारर ब्रत पड़िला गोसाइँ । तुम्भे आज्ञा देले नग्र बुलिजिबि मुहिँ ।३१।
गोविन्द बोइले लक्ष्मी नग्रहिँ बुलिब । दशमी पालना अन्न बेगे रान्धि देब ।३२।
प्रभुंक मुखरु मात एमन्त शुणिले । बस्त्र अलंकारमान यतने पिन्धिले ।३३।
नासिकारे नबरत्न बसणि खंजिले । चउसरी रत्नमाला कण्ठे लम्बाइले ।३४।
कररे बाहुटि रम्य़ बलय़ कंकण । सुना सुता माणिक्य़ पदक आभरण ।३५।
बाजेणि नूपुर माता पय़रे खंजिले । एपरि नाना भूषणे सुबेश होइले ।३६।
जेबण मातांक अधिकार तिनिपुर । आभरण केते मात्र देबे पट्टान्तर ।३७।
शुण हे नारद एहा होइ एक चित्त । बुढ़ी ब्राह्मणी रूपकु धरि जगन्मात ।३८।
प्रबेश होइले जाइँ साधुर दुआरे । साधबाणी उभा होइथिला सेहिठारे ।३९।
ताकु देखि महालक्ष्मी कहन्ति बचन । शुण शुण साधबाणि होइ स्थिरमन ।४०।
आजि परा महालक्ष्मी ब्रत गुरुवार । लिपा पोछा करिनाहुँ किम्पा घर द्वार ।४१।
साधबाणी एहा शुणि बेलोइ सेक्षणि । कि रूपे ए ब्रत हुए काहा पूजा पुणि ।४२।
बुझाइ ता सबु कह हे नानी गोसाइँ । अइले मनकु से ब्रत मुँ करिबइँ ।४३।
एहा शुणि पद्मालय़ा कहन्ति सधीरे । शुण साधबाणी ब्रत हुए ए बिधिरे ।४४।
मार्गशिर मासे जेउँ आद्य गुरुवार । सेदिन उषारु शेय छाड़ि तत् पर ।४५।
गोमय़ जलरे घर दुआर लिपिब । लक्ष्मीदेबी पादपद्म चिताकु लेखिब ।४६।
नूआ माण गोटिए अणाइ यत्ने बेगे । धोइ धाइ करि ताकु शुखाइब आगे ।४७।
ताहाकु करिब नाना चित्र जे बिचित्र । चाउलकु बाटि चिता लेखिब समस्त ।४८।
तहिँ स्नान करि आसि होइ शुचिमन्त । चड़कि बा खटुलिए आणिब त्वरित ।४९।
ताकु धोइ ता उपरे देबे नूआधान । रंगकला नोहि होइथिब शुक्लबर्ण ।५०।
तहुँ किछि कुढ़ाइ जे से नूआ माणरे । धानमाण जे पुराइ रखिब तापरे ।५१।
से धान माण उपरे गुआ तिनिगाटि । हलदी पाणिरे ताहा धोइ थोइबटि ।५२।
शुक्ल धानर शिखा रखि बेण्टि करि । माण उपरे ताहाकु थोइब बिचारि ।५३।
गुआ आखु मूला कदलीरे सजाड़िब । पट्टादिरंग बसन पुष्पे मण्डाइब ।५४।
तहुँ आबाहन महालक्ष्मींकु करिब । गन्धपुष्प धूपदीप आदि समर्पिब ।५५।
प्रथमरे बालधूप तापरे शङ्खुड़ि । एपरि करिब तिनि धूपकु सजड़ि ।५६।
महालक्ष्मींकर आउ एक ब्रत अछि । सुदशा बोलि ता नाम प्रकटिछि ।५७।
शुक्लदशमी हेले गुरुवार दिन । हुअइ सुदशाब्रत शुण देइ मन ।५८।
सेदिन उषारु उठि लिपि घरद्वार । झोटि आदि चिता देब पूर्ब परकार ।५९।
स्नान सारि गृहे पद्ममण्डल लेखिब । तहिँपरे धोइ एक खटुलि रखिब ।६०।
तहिँपरे लक्ष्मीपूजा गुआकु थोइब । पञ्चामृत शुद्धजले स्नान कराइब ।६१।
दशखिअ सूतारे जे ब्रतेक करिब । लक्ष्मींक नामरे दशगोटि गण्ठिदेब ।६२।
दशकेरा दूबरे से ब्रत गुड़ाइब । महालक्ष्मी गुआ पाशे ताहाकु थोइब ।६३।
करुथिले पूर्बरु से ब्रत पुरातन । ब्रतडोर आणि तहिँ थोइब बहन ।६४।
प्रथमरे बालधूप नइबेद्य करि । तापरे जा भोग देब शुण हेतु करि ।६५।
अरुआ चाउल एकमाण तिन्ताइब । ताकु कुटि चूना करि यतने रखिब ।६६।
कदली नड़िआ छेना आदि दशपुर । देइ दशगोटि मण्डा करिब सत्वर ।६७।
महालक्ष्मींकु ता पूजा करि भक्ति चित्ते । से प्रसाद खाइ दिन बञ्चिब जे सुस्थ ।६८।
महालक्ष्मी प्रसाद जे परकु न देब । बिभा होइथिबा झिअ सुद्धा न खाइब ।६९।
ए उत्तारु कथा एक मनदेइ शुण । गुरुवार दिन जेउँ कथा निबारण ।७०।
से कथा कहुछि एबे साधबाणी शुण । केबे न भाजिब खइ गुरुवार दिन ।७१।
जेउँ नारी गुरुवार दिनरे आमिष । भुञ्जइ लोभरे किबा न पखाले केश ।७२।
भुञ्जइ उच्छिष्ट किबा लगाइ जे तेल । महालक्षी तार निश्चे भाङ्गिद्यन्ति गेल ।७३।
गुरुबारे जेउँ नारी तुलाकु भिणइ । लाउरे आमिष देइ जे ग्रास करइ ।७४।
खटर छाय़ारे जेहु करइ शय़न । रात्रकाले दधिअन्न जे करे भोजन ।७५।
क्षौर हुए जेहु जाइ नापितर द्वारे । भोजन समय़े अन्न पकाए भूमिरे ।७६।
भुञ्जि न पारिण अन्न फोपाड़िण दिए । एड़े कर्म करे जिए लक्ष्मींकु न पाए ।७७।
गुरुवार दिन सकालरु गोमय़रे । दुआर जे न लिपइ अलस पणरे ।७८।
चुलिरु न काढ़े पांश भक्षे जे आमिष । एमानंकठारे लक्ष्मी करन्ति जे रोष ।७९।
धन जन सबु तार हरण करन्ति । मागिगले अन्नबस्त्र केहि न दिअन्ति ।८०।
गुरुबारे जेउँ नारी पिन्धे शुक्ल लुगा । ऐश्वर्य सम्पद पाए हुअइ सुभगा ।८१।
गुरुबारे जेउँ नारी पिलाङ्कु मारइ । किबा पाकहांडि धोइ कला न छाड़इ ।८२।
संध्यागड़िगले जिए दिए सन्ध्याबती । पुत्रधन हानी हुए सदा बहु क्षति ।८३।
गुरुवारे जेउँ नारी पोड़ा द्रव्य खाए । शोइबारे शय्य़ बंका करिण बिछाए ।८४।
शाशु श्वशुरंकु न मानइ जे रमणी । उलग्न होइ शयन करे जेउँ प्राणी ।८५।
अमावस्या संक्रान्तिरे बुलाए जे हल । एहि दिनमानंकरे घेनइ तइल ।८६।
सभामानंकरे बसि मिछ जे कहइ । आलस्य़े पाद न धोइ जे भुञ्जइ ।८७।
कुष्माण्ड फलकु जेहु रमणी काटइ । ऋतुमती नारीकु जे रमण करइ ।८८।
कन्य़ा तुला मासे पितृश्राद्ध न करइ । कथा कहु कहु सबुबेले जे हसइ ।८९।
एमन्त मनुष्य़ सदा बहु कष्ट पाइ । आय़ बुद्धि नाशय़ाए अन्न न मिलइ ।९०।
गुरुवार संक्रांति अमावस्या दिन । रजनीरे स्त्री पुरुष कलेक भोजन ।९१।
किबा एहि तिनि दिन जेउँ नारी मोहे । पुरुष संगरे माति धर्मकु न चाहेँ ।९२।
प्राणे नाश न करिण ताकु दुःख देइ । बुलान्ति जे अन्न बस्त्र काहिँ न मिलइ ।९३।
एहि तिनि देने जेहु तिक्त द्रव्य खान्ति । अन्तः काले यम द्वारे बहु कष्ट पान्ति ।९४।
ए तिनि दिन जे नारी करइ हविष्य । दुःखी रङ्कि देखि दान करइ बिशेष ।९५।
करे लक्ष्मीब्रत लक्ष्मीबारे उपबास । बढ़िब ताहा धन जन आय़ु यश ।९६।
सकालु शेयरु उठि जे मुख न धुए । ता मुख जे जन देखे तार शुभ नुहेँ ।९७।
रात्रशेषे बासि शेजे जे करे शय़न । ता गृहकु लक्ष्मी त्य़ाग करन्ति बहन ।९८।
आसन बिना जे भूमिपरे बसि खाए । किबा जे कुमारी संगतरे काममोहे ।९९।
दक्षिण पश्चिम मुख जे भुञ्जि बसइ । एमानंक पाशु लक्ष्मी जान्ति दूर होइ ।१००।
सन्ध्यारे कुण्डाइ केश बान्धे जेउँ नारी । केभे न देखन्ति लक्ष्मी ताहार जे शिरी ।१०१।
भोजन करि जे मुख शोधन न करे । भोजन करइ जेहु अन्धकार घरे ।१०२।
जेउँ नारी निज पतिठारे रोष बहे । स्वामी जाहा बोले ताहा न करे केबेहेँ ।१०३।
पर पुरुषरे जेहु होइथाए रत । परिष्कृत नोहि हुए जे नारी कुत्सित ।१०४।
एमन्त नारींक मुख लक्ष्मी न देखन्ति । कांगालिनी परि बारद्वारे से बुलान्ति ।१०५।
कलही अलसी अति अप्रिय़ा साहसी । देब बिप्र अतिथिरे नुहँइ बिश्वासी ।१०६।
एहिपरि नारी थिले से गृह श्मशान । लक्ष्मी से स्थानकु सदा करन्ति बर्जन ।१०७।
जेउँ नारी भक्ति चित्ते स्वामीकि न सेबे । जन्मे जन्मे स्वामी दुःखे दुःखी हुए भबे ।१०८।
जेउँ नारी स्वामीकु जे देब सम मणि । सेबाकरि तोषुथाए तार मत चिह्नि ।१०९।
निज अंग परिष्कार करि शुचि हुए । सान बड़ समस्तंकु समभाबे चाहेँ ।११०।
परषिबा बेले पक्षपात जे न करे । स्वामी पुत्र समस्तंकु बाण्टे समानरे ।१११।
पतिर आज्ञाकु केबे न पकाए तले । स्वामी दुःखे दुःखी सुखे सुखी होइ चले ।११२।
एमन्त नारीर गृह लक्ष्मी न छाड़न्ति । तार दुःख नय़नरे केबे न देखन्ति ।११३।
ए मर्त्त्य़ मण्डले सेहि नारी सुख पाए । पति पुत्र कन्य़ा अइश्वर्य सुख पाए ।१०४।
अन्तकाले बइकुण्ठे लक्ष्मींक संगरे । अनुक्षणे मजि रहे प्रमोद रंगरे ।१०५।
सधबा नारीर पति बिना नाहिँ गति । तप जप देब पूजा ताहार अनीति ।१०६।
पति सेब छाड़ि बृथा ब्रत जे करइ । जन्म जन्मान्तरे बाल्य़ बिधबा हुअइ ।१०७।
जेउँ नारी आनन्दरे अतिथि सेबइ । पुण्यवती बोलि ताकु पुराणरे कहि ।१०८।
एमन्त प्रकारे जेउँ नारी बा पुरुष । आपणार कुलधर्म न छाड़न्ति लेश ।१०९।
सदाबेले करन्ति उत्तम आचरण । श्रीलक्ष्मी ताहाङ्क पादे मिलन्ति तक्षण ।११०।
पति सेबा बिना नाहिँ नारींकर गति । पतिप्राणा नारी करे देबलोक गति ।१११।
नारींकर लक्ष्मीब्रत पतिसेबा बिना । अन्य़ देब पूजातीर्थ यात्रा बिड़म्बना ।११२।
पति सेबा बरजि जे मात गरबरे । गुरुबारे लक्ष्मीब्रत सेहु यदि करे ।११३।
ताहार नुहइ भल जनमे जनमे । दुःख शोक रोग भोग संसारे से भ्रमे ।११४।
एमन्त तिआरि साधबाणीकि बोइले । आजिठारु लक्ष्मीब्रत कर जा बोइले ।११५।
न कले सर्ब सम्पद तोर क्षय़ जिब । अन्न बस्त्र अभाबरे दुःख भोग हेब ।११६।
शुण हे नारद ठाकुराणी एहा कहि । सेठाबरु केतेदूर पथ गले बाहि ।११७।
घरे घरे पुरे पुरे लक्ष्मी बिजे कले । काहारि दुआरे सेहि शुचि न देखिले ।११८।
केबण युबती निदे होइ अचेतन । काहर फिटिजाइचछि पिन्धिला बसन ।११९।
काहार शिररे केश मुकुलित होइ । भूमिपरे पड़िअछि केरि केरि होइ ।१२०।
एहि रुपे महालक्ष्मी देखिकरि गले । चण्डाल साहिरे जाइ प्रबेश होइले ।१२०
श्रिय़ा चण्डालुणी नग्र बाहारे ता घर । ताहार महिमा देवंकु जे अगोचर ।१२१।
प्रतिदिन खरकइ गुण्डिचा नगर । बिष्णु भकतिरे से जे अति ततपर ।१२२।
रात्र बेनि घड़ि थाइ चण्डालुणी गला । एक बर्ण्णि गाईर जे गोबर आणिला ।१२३।
उत्तम करिण घरद्वारकु लिपिला । अरुआ चाउल बाटि घरे झोटि देला ।
षोलकोठि करि दिब्य़ पद्मेक काटिला ।१२५।
दशमुखी दीपाबली मण्डले थोइला । दशबर्ण फलमूल मण्डले बाढ़िला ।१२६।
सूता दशखिअ नेइ मण्डले थोइला । मनर चंचले पुणि बेगे चलगला ।१२७।
अरुआ चाउल आउ दुब दशकेरा । ताहा नेइ चण्डालुणी मण्डले थोइला ।१२८।
धूपदीप नइबेद्य गन्धपुष्प देला । लक्ष्मी नाराय़ण बोलि सुमरणा कला ।१२९।
नमस्ते नमस्ते मागो हरिंक घरणी । मुहिँ छार हीनजाति न जाणइ पुणि ।१३०।
चण्डाल साहिरे घर पुणि चण्डालुणी । किञ्चिते भकति मोर घेन कमलिनी ।१३१।
दाण्डे दाण्डे जाउथिले बिष्णु पाटराणी । सहि न पारिले चण्डालुणीर दय़िनी ।१३२।
पद्म फुल देखि तांक बलिला शरधा । दुइपाद देइ माता पद्मे हेले उभा ।१३३।
चण्डालुणी घरगोटि पाइलाक शोभा । लक्ष्मी बिजे करिछन्ति कि उपमा देबा ।१३४।
बोइलेक चण्डालुणी मागि घेन बर । प्रसन्न होइलि दुःख नाशिबि तोहर ।१३५।
चण्डालुणी कहुअछि शिरे कर देइ । कि बर मागिबि मागो मागि न जाणइ ।१३६।
गो-गोष्ठकु देब मोर लक्षे पद्म गाई । कुबेर समान धन देबु मागो तुहि ।१३७।
कोलकु नन्दन जे हस्तकु सुनाबाहि । चारियुगे बसिबि अमर बर पाइ ।१३८।
लक्ष्मी शुणि होइले तु होइछु कि बाइ । ए समस्त बर तोते देइ त पारइ ।१३९।
अमर बर देबाकु शक्ति नाहिँ मोर । ए बर मागिलु तु केमन्त प्रकार ।१४०।
जेते दिन जिइँथिबु ऐश्वर्य भुञ्जिबु । अन्तकाले जाइ बष्णु पञ्जरे पशिबु ।१४१।
मोहर ए ब्रत करुथिबु सबुदिन । लक्ष्मी-नाराय़ण पादे थिब तोर मन ।१४२।
शुण हे नारद एणे हरि बलराम । मृगय़ा बिनोदे जाइथिले घोरबन ।१४३।
योगबले बलराम ए कथा जाणिले । डाकिकरि श्रीहरिङ्कु एमन्त कहिले ।१४४।
देख देख कह्नाइ तो भारिजा आचार । उभा होइ अछन्त जे चण्डालुणी घर ।१४५।
हाड़ि घरे थिब लक्ष्मी पाण घरे थिब । स्नान न करिण बड़ देउले पशिब ।१४६।
एहि रुपे सबुदेन देउले पशुछि । दुइगोटि भाइंकु बिटाल कराउछि ।१४७।
दरिद्र भञ्जनी नाम जेणु अछि बहि । दरिद्रमानङ्क कष्ट न पारइ सहि ।१४८।
सुदशा नामक एक ब्रत जे ताहार । एहि ब्रते चण्डालुणी पुजइ पय़र ।१४९।
भारिजारे कार्य जेबे अछिरे कह्नाइ । चण्डाल साहिरे नग्र तोल बेगे जाइ ।१५०।
आम्भ बाक्य़ मानि ताकु दिअ घउड़ाइ । एपरि घरणि थिले भल गति नाहिँ ।१५१।
गोविन्द बोइले भाइ घउड़ाइ देबा । लक्ष्मी परा भारिजाकु आउ न पाइबा ।१५२
से दोष करिछि जेबे एमन्त करिबा । स्वर्गपुर लोकंकु डकाइ अणाइबा ।१५३।
पाञ्च लक्ष टङ्का देइ जाति कराइबा । आउ बेले तार यदि अनीति देखिबा ।१५४।
देउल भितरु ताकु देबा घउड़ाइ । ए कथा प्रमाण तमे शुण ज्य़ोष्ठ भाइ ।१५५।
न जाणि जे दोष कले सिन्धु राजजेमा । बारे मात्र भाइ तांक दोष कर क्षमा ।१५६।
बलराम बोलुछन्ति शुण भाबग्राही । तोर लक्ष्मी थिले मुहिँ रहिबइ नाहिँ ।१५७।
भारिजा अटइ सिना पादर पाण्डोइ । भाइ थिले कोटि भार्या मिलि जे पारइ ।१५८।
भार्याठारे लोभ जेबे अछिरे कह्नाइ । चण्डाल साहिरे तु नबर तोल जाइ ।१५९।
मोर बड़ देउलकु आउ न आसिबु । माइपकु नेइ दाण्ड बाहारे रहिबु ।१६०।
धिक्कार बचन प्रभु शुणि न पारिले । छाड़िलि बोलिण रंग अधरे कहिले ।१६१।
देउलर सिंहद्वारे प्रबेश होइले। उर्द्ध्ॱमुख होइ प्रभु निःश्वास छाड़िले ।१६२।
शुण हे नारद तेणे श्रीय़ा चण्डालुणी । पूजा करुथिला लक्ष्मींकर पादबेनि ।१६३।
ताहार पूजारे लक्ष्मी सन्तुष्ट होइले । जाचिण अनेक बर प्रदान करिले ।१६४।
कुटीर खण्डिक थिला बलुरिर दास । लक्ष्मी दय़ाकले ताकु चन्दन उआस ।१६५।
जेउँ चण्डालुणी घरे न थिलाक पुत्र । लक्ष्मी दय़ा कले तार हेला पाञ्च सुत ।१६६।
धन पुत्रबती हुअ बोलिण बोइले । बरदेइ से ठाबरु बिजे करिगले ।१६७।
लक्ष्मी हेतु चण्डालुणी हेले भाग्य़बती । एबे शुण हे नारद अपूर्ब भारती ।१६८।
सिंहद्वारे बिजय़ लक्ष्मी जे महामाय़ी । देखिले दुआरे बसिछन्ति बेनि भाइ ।१६९।
बोइले ले बाट छाड़ भितरकु जिबि । दशनी योगाड़ मुहिँ मणिही रान्धिबि ।१७०।
गोविन्द बोइले लक्ष्मी होइल कि बाइ । चण्डाल साहिकि जाइथिल काहिँ पाइँ ।१७१।
आम्भे न देखुणि देखिले जे बड़भाइ । आम्भे देखुथिले सिना दिअन्तु घोड़ाइ ।१७२।
जाअ लक्ष्मी तुम्भठारे आउ कार्य नाहिँ । धिक्कार बहुत मोते कले बड़ भाइ ।१७३।
हाड़ि घरे थिब लक्षी थिब पाण घरे । स्नान न करि पशुछि देउल भितरे ।१७४।
ताठारु पापिनी नाहिँ संसाररे नाहिँ । मोहर बचन एबे शुण प्राणसही ।१७५।
जगते बोलन्ति तोते बाइ ठाकुराणी । बाइ प्राय़े बुलुथाउ होइ मो घरणी ।१७६।
एक घर कराउ सहस्र घर भाङ्गि । सहस्र घर कराउ एक घर भाङ्गि ।१६८।
एमन्त प्रकार लक्ष्मी महिमा तोहर । जाअ लक्ष्मी बाहारि गो न रह मो पुर ।१६९।
तोहठारे कोप करिछन्ति बड़ भाइ । लक्ष्मीदेबी कहुछन्ति ठाकुरंकु चाहिँ ।१७०।
छाड़ पत्र देइ मोते दिअ घउड़ाइ । जगन्नाथ कहुछन्ति लक्ष्मी मुख चाहिँ ।१७१।
आम जातिरे त छाड़ पत्र चले नाहिँ । छाड़िबा भारिजा मुख चाहिँ न योगाइ ।१७२।
लक्ष्मी देबी कहुछन्ति ठाकुरंकु चाहिँ । जेतेबेले सागर मन्थिले देबे जाइँ ।१७३।
बेद मन्त्रादि सह मोते पाइथिल । सेतेबेल कथा तुमे पाशोरि जे देल ।१७४।
मोर पिता बरुण जे तुम्भंकु बरिले । कनक बेदीरे नेइ बिभा कराइले ।१७५।
झिअ देइ शरण पशिले तुम्भठाइँ । दशदोष मोर क्षमा करिबार पाइँ ।१७६।
दशगोटि दोषरु गोटिए न सहिल । प्रथमरे चण्डालुणी बोलि गालिदेल ।१७७।
बिभा बासी दिन जुआ खेलिबार बेले । सातकड़ा कउड़ि जे पातिलइँ तले ।१७८।
तुम्भे ढ़ालिदिअ नाथ मोहरि हस्तरे । सुबर्ण कउड़ि मुहिँ जाकिलइँ करे ।१७९।
छड़ाइ न पारि तुम्भे ब्रह्माण्ड ठाकुर । मोते बोइल जा' इच्छा मागि घेन बर ।१८०।
जाहा मन बाञ्छा गो करिबु बइदेही । ताहा मुँ अबश्य़ देबि शुण प्राणसही ।१८१।
करपत्र योड़िण मुँ बोइलि उत्तर । साबधान होइ शुण ब्रह्माण्ड ठाकुर ।१८२।
अष्टदिने पड़िब मोहर गुरुवार । पड़ि चरचिबि मुहिँ सभिङ्कर घर ।१८३।
पड़ि चरचिबि कीटु ब्रह्म परियन्ते । एहि दोष मोर प्रभु न धरिब चित्ते ।१८४।
हेउ बोलि श्रीमुखरे आज्ञा अछ देइ । एबे किम्पा सत्य़ भग्न हेउछ गोसाइँ ।१८५।
जगन्नाथ कहुछन्ति कोपभर होइ । बाप तो लुणिअ जे गरजि मरुथाइ ।१८६।
झिअ टेरी तो दुर्गुण कहिले न सरे । बापर गर्ज्जन शब्दे किए रहिपारे ।१८७।
चारिपाखे मेघनाद पाचेरी तोलाइ । बड़ देउलरे रहिअछ दुइ भाइ ।१८८।
महालक्ष्मी बोलुछन्ति ठाकुरंकु चाहिँ । अछबर घरे दण्डे थिले उभाहोइ ।१८९।
अछब बिटाल बोलि दिअ घउड़ाइ । पुणि जाति कुल गोत्र कहिल गोसाइँ ।१९०।
प्रभु हेतु जाउछन्ति सबु गोप्य़ होइ । तुम जाति कूलर त ठिकणा न थाइ ।१९१।
तुम्भ जाति कूल जे कहिले न सरइ । गउड़ घरे रहिल दुइगोटि भाइ ।१९२।
निमा नामे सपुटि जे जातिरे गोलक । ताहा घरे जगन्नाथ कल अन्न भक्ष ।१९३।
दूत पणे जाइथिल हस्तिना भुबन । बिदुर घरे जे पुणि करिल भोजन ।१९४।
जारा नामे शबर जे अरण्य़रे घर । से तुम्भंकु पूजिला बरष दश बार ।१९५।
अरण्य़र फलमूल खोजिण आणइ । बसिण प्रथमे भलमन्द से खाअइ ।१९६।
पिता कषा सबु प्रभु आड़ करिदेइ । जे फल सुआद ताहा तुम्भंकु भुञ्जइ ।१९७।
शबर बिटाल तुम्भे बेनिगोटि भाइ । ए कथा कि तुम्भ मनु गला भुलि होइ ।१९८।
आपणे पातकी किम्पा पर निन्दा कर । पाप पूण्य़ दुइ कथा बिचार न कर ।१९९।
भारिजा जे दोष कले पति ता सहइ । एक अपराधे प्रभु भृत्य़े कि तेजइ ।२००।
किम्पा न कर प्रभु एमन्त बिचार । जाअ जाअ बोलुअछ मोते बारम्बार ।२०१।
जगन्नाथ कहुछन्ति एमन्त करिबा । माणे माणे पड़ि तोते नित्य़ देउथिबा ।२०२।
भाइकु बुझाइ पछे तुम्भंकु आणिबु । भाइङ्क आज्ञा अबज्ञा केबे न करिबु ।२०३।
लक्ष्मीदेबी कहन्ति पड़िरे कार्य नाहिँ । अनाथ अरक्ष प्राय़े जाउअछि मुहिँ ।२०४।
राण्डी अलक्षणी झिअ मुहिँ जे नुहँइ । पितार घरकु मुँ जे बाहारि जिबइ ।२०५।
तुम्भ अलंकारमान प्रभु काढ़िनिअ । पछरे मोते जे आउ बोलणा न दिअ ।२०६।
गोनिन्द बोलन्ति लक्ष्मी होइल कि बाई । अंग अलंकार आम्भे नेबु काहिँ पाइँ ।२०७।
भारिजा देहरे जेउँ अलंकार थाए । स्वामी होइ ताहाठारु काढ़ि किए निए ।२०८।
ठाकुराणी कहुछन्ति श्रीमुखकु चाहिँ । तुम्भर अटइ मुँ जे प्रथम बिबाही २०९।
पछरे कहिब लक्ष्मी आम घरे थिला । सहस्र टङ्कार अलंकार घेनि गला ।२१०।
एमन्त अख्य़ाति मोते न दिअ गोसाइँ । तुम्भ अलंकारमान निअ बाहुड़ाइ ।२११।
शिररु काढ़िले लक्ष्मी मुकुतार जालि । हृदरु काढ़िले इन्द्र गोविन्द कञ्चुलि ।२१२।
अण्टारु काढ़िले माए रत्न ओड़िआणी । नासिकारु काढ़िले जे मुकुता बसणी ।२१३।
कर्णद्ॱय़रु काढ़ले हीरार कुण्डल । गलारु काढ़िले जे दोषरी चिनामाल ।२१४।
पादरु काढ़िले देबी बाजेणी नुपूर । अङ्गुष्ठिरु काढ़िले जे झुण्टिआ सत्वर ।२१५।
अन्य़ अलंकारमान कि कहिबि आउ । रुण्ड कलारु दिशिला सबु दाउ दाउ ।२१६।
सबु अलंकारमान एकठाब कले । रख दीनबन्धु एहा बोलि समर्पिले ।२१७।
गोविन्द कहन्ति एहा कि करिबु नेइ । आम्भर ए अलंकारे प्रय़ोजन नाहिँ ।२१७।
गृहस्थ होइण जेबे भार्याकु तेजइ । छ' मास हात लुगा लेखिण दिअइ ।२१८।
एहि अलंकार सबु तुम्भे घेनिजाअ । बिकि भाङ्गिकरि भात लुगा करुथाअ ।२१९।
लक्ष्मीदेबी कहुछन्ति प्रभु मुख चाहिँ । साबधान होइ शुण ब्रह्माण्ड गोसाइँ ।२२०।
मोर तुले आउ जेउँ भारिजा आणिब । एहिसबु अलंकार ताहांकु जे देब ।२२१।
मुहिँ जाउअछि हीन अरक्षित होइ । मोग अभिशाप घेन प्रभु भाबग्राही ।२२२।
सते यदि चन्द्र सूर्य होन्ति आतजात । तुम्भंकु अन्न न मिलु आहे जगन्नाथ ।२२३।
बारबर्ष जाए तुम्भे दरिद्र होइब । अन्न बस्त्र जल जे तुम्भंकु न मिलिब ।२२४।
मुहिँ चण्डालुणी जेबे टेकिदेबि अन्न । भोजन करिबे तेबे कालीय़ गञ्जन ।२२५।
एते बोलि लक्ष्मी देबी शाप देइगले । देउलु बाहार होइ केतेदूर गले ।२२६।
एहा देखि दासीमाने सङ्गे गोड़ाअन्ति । दासींकु अनाइ लक्ष्मीदेवी बोलुछन्ति ।२२७।
मुहिँ जाउअछि हीन अलक्षणी होइ । मोर पछे तुम्भेमाने आसुछ किम्पाइँ ।२२८।
एहि परि होइ जेबे पिताघर जि वी । चारिदिन मात्र तहिँ रहि न पारिबि ।२२९।
जगन्नाथ प्राय़ बन्धु पिताघर जिबे । तांकु देखि पिता मोते समर्पिण देबे ।२३०।
शाप देबा फल मोर हेब अकारण । दरिद्र नोहिबे प्रभु देव भगबान ।२३१।
एते बोलि लक्ष्मीदेबी मने चिन्ताकले । बिश्वकर्माकु जे माए मने सुमरिले ।२३२।
बैकुण्ठपुररे बिश्वकर्मा रहिथिला । स्मरण मात्रके लक्ष्मी छामुरे मिलिला ।२३३।
किस आज्ञा हेउ मोते लक्ष्मी महामाय़ी । शुणि आज्ञा देले बिश्वकर्माकु जे चाहिँ ।२३४।
चण्डालुणी कहि प्रभु देले घउड़ाइ । पारिबुकि खण्डिए कुड़िआ तोलिदेइ ।२३५।
आज्ञामात्रे बिश्वकर्मा बेगे चलिगले । तिनि कोश प्रमाणे उआस तोलाइले ।२३६।
सुवर्णर कान्थमान सबुघरे कले । हीरे नीला माणिक्य़ादि तहिँ खञ्जाइले ।२३७।
गण्ठिस्थले अनेक मुकुता लगाइले । प्रबालर स्तम्भमान तहिँरे रचिले ।२३८।
पुर देखि कमलिनी सन्तुष्ट होइले । बिश्वकर्माकु बहुत प्रशंसा जे कले ।२३९।
बैकुण्ठ पुरकु बिश्वकर्मा चलिगले । अष्ट बेतालकु डाकि देबी आज्ञा देले ।२४०।
अष्ट बेतालरे तुम्भे एमन्त करिब । प्रथमे रोषाइ शाले जाइण पशिब ।२४१।
षाठिए पउटि भोग भुञ्जिब जे तहिँ । तेर पौटि ब्य़ञ्जन खाइब हर्ष होइ ।२४२।
शागमुग मधुरुचि तिक्त काञ्जिराइ । आम्बिल खाइब खण्ड शाकर मिशाइ ।२४३।
अमृत मणोहिमान भोजन करिब । हांडिमान नेइ एकठाबे कचाड़िब ।२४४।
तहुँ जाइण भण्डार मध्य़रे पशिब । बाउन कोटि भण्डार बोहिण आणिब ।२४५।
काणि कउड़ि कड़ाकर द्रव्य न रखिब । सबु बोहि आणि मोर पाशे समर्पिब ।२४६।
बेताल बोइले महालक्ष्मी मुख चाहिँ । केमन्त करिण तहुँ आणिबु बुहाइ ।२४७।
जगन्नाथ महाप्रभु तहिँ चाहिँ थिबे । आम्भंकु देखिण काले पराभब देबे ।२४८।
शुणि कमलिनी निद्राबतीकि राइले । बहन मो बोलकर बोलिण बोइले ।२४९।
रामकृष्ण नय़नरे निद्रा जे घारिबु । कालि बेल दुइ घड़िजाए न छाड़िबु ।२५०।
आज्ञा पाइ निद्राबती शीघ्र चलिगले । रामकृष्ण नय़नरे निद्रा जे घारिले ।२५१।
पाकशालारे बेताल प्रबेश होइले । तहिँ थिबा पाकद्रव्य समस्त खाइले ।२५२।
हांडिमान सबु एक स्थाने कचाड़िले । भण्डार घररे अष्ट बेताल पशिले ।२५३।
जेते द्रव्य पूर्ण होइ रहिथिला तहिँ । बाउन कोटि भण्डार आणिले बुहाइ ।२५४।
रात्र षोल घड़िजाक बेताल जे तहिँ । कुलारु छाञ्चुणि जाए सबु नेले बोहि ।२५५।
देखिकरि महालक्ष्मी सन्तुष्ट होइले । तुम्भे आजि पुत्रपण करिल बोइले ।२५६।
प्रशंसा करिण माए बचन जे कहि । सबु द्रव्य आणिल त रत्न खट नाहिँ ।२५७।
पाञ्च लक्ष मूल्य़ सेहि खट त अटइ । जाअरे बेताल सेहि खट आण बोहि ।२५८।
जेतेबेले जगन्नाथ दरिद्र होइबे । रत्न खट बिकिकरि दिन चलाइबे ।२५८।
जेबे प्रभु जगन्नाथ मोते न खोजिबे । नारींकु परुषमाने आउ न लोड़िबे ।२५९।
मोते घेनि प्रभु जेबे न करिबे घर । कलियुगे नारींकु जे न खोजिबे नर ।२६०।
बेतालि बोलुछन्ति रमा मुख चाहिँ । रत्न खटे शोइछन्ति बेनि दुइ भाइ ।२६१।
कोटि सिंह पराक्रम प्रभु बलराम । पुणि तहिँ शोइछन्ति कालीय़ गञ्जन ।२६२।
सातगोटि पर्बतरु अटइ जे गरु । नाम बहि अछन्ति अचल महामेरु ।२६३।
महालक्ष्मी बोइलेरे एमन्त करिब । दउड़िआ खट एक गोटि जे आणिब ।२६४।
रामकृष्ण दुहिँङ्कु जे गड़ाइण देब । शोइबार रत्न खट बोहिण आणिब ।२६५।
एहा शुणि बेतेल जे शीघ्र चलिगले । रत्नखट पाशै दउड़िआ खट देले ।२६६।
बलरामङ्कु प्रथमे धइलेक जाइ । दउड़िआ खटकु जे देले गड़िआइ ।२६७।
ए उत्तारु जगन्नाथ प्रभुंकु धइले । दउड़िआ खट उपरकु गड़ाइले ।२६८।
शोइबार रत्नखट आणिलेक बोहि । महालक्ष्मी आगे देले आनन्दरे नेइ ।२६९।
बलराम पिन्धिबार पाट बोहि नेले । जगन्नाथ पिन्धिबार नेत घेनिगले ।२७०।
देखिकरि महालक्ष्मी सन्तुष्ट होइले । अष्ट बेतालकु बर जाचिण जे देले ।२७१।
आरे अष्ट बेतालरे एमन्त करिब । बैकुण्ठ पुररे जाइ सुखरे रहिब ।२७२।
आज्ञा पाइण बेतालगण बेगे गले । बैकुण्ठपुररे जाइ प्रबेश होइले ।२७३।
महालक्ष्मी तहुँ एक कथा बिचारिले । सरस्वती देबीङ्कु जे हृदे सुमरिले ।२७४।
बोइले गो सरस्वती एमन्त करिब । राज्य़ राज्य़ होइ घरे घरे बुलुथिब ।२७५।
सर्बद्वारे जगन्नाथ बुलिबेटि जाइँ । सर्बकण्ठे सरस्वती बिजे कर तुहि ।२७६।
अन्न पाणि केहि तांकु किछिहिँ न देबे । एते दुःख पाइले से मोते सुमरिबे ।२७८।
आराम दाय़िनी रात्र सुखरे पाहिला । दिन दुइ घड़िकरे निद्रा जे भांगिला ।२७९।
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । गहल चहल आजि किछि शुभुनाहिँ ।२८०।
मुदिरथ पण्डार त तुण्ड शुभुनाहिँ । दासी परबारी जे परिचा गले काहिँ ।२८१।
श्रीमुख पखालिबाकु जल न मिलइ । कि बुद्धि करिबा एबे कहरे कह्नाइ ।२८२।
जगन्नाथ कहुछन्ति शुण ज्य़ेष्ठ भाइ । लक्ष्मी छाड़िगलारु जे एमन्त हुअइ ।२८३।
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । भार्या छार एमन्तकु कहुअछु तुहि ।२८४।
काहार भारिजा जेबे ऋषि हजिजाए । तार गृहस्थ इ भात रान्धिण न खाए ।२८५।
भण्डार घरकु बिजे कले दुइभाइ । भण्डारे देखिले किछि पदार्थ जे नाहिँ ।२८६।
बलराम कहुछन्ति काहिँ किस हेला । बाउन कोटि भण्डार के घेनिण गला ।२८७।
लक्षे जीब खाइले बोहिले न सरइ । क्षणक भितरे किए घेनिगला बोहि ।२८८।
सुबर्ण मुदिए बलराम जे पाइले । सात गोटि गण्ठिदेइ कानिरे बान्धिले ।२८९।
जगन्नाथ कहन्ति जे पाइलकि भाइ । बलराम कहुछन्ति धन पाइलइँ ।२९०।
जगन्नाथ कहुछन्ति बलराम भाइ । बेङ्गि पित्तल खण्डिक रख काहिँ पाइँ ।२९१।
बलराम कहुछन्ति कि कथा घटिला । पाइथिबा स्वर्ण बेङ्गि पित्तल होइला ।२९२।
शुद्ध सुबर्णरु जेउँ धन धन होइथिला । काणि कउड़ि जड़ाकु समान नोहिला २९३।
सेठारु बाहारि गले दुइगोटि भाइ । पाकशाल दुआरे जे प्रबेशिले जाइ ।२९४।
बलराम ठिआहेले दुआर मुहँकु । जगन्नाथ पशिगले रोषाइ घरकु ।२९५।
देहरे लागिला कला मुहँरे लागिला । कला श्रीमुख गोटक झटकि दिशिला ।२९६।
बलराम कहुछन्ति शुण जगन्नाथ । बड़ खिआ बोल तोते कहन्ति जगत ।२९७।
मोते अन्न न देइण सबु खाउ तुहि । जगन्नाथ कहुछन्ति शुण ज्य़ेष्ठ भाइ ।२९८।
अन्न काहिँ मिलिब जे चुलि सुद्धा नाहिँ । न बुझि एपरि किम्पा कहुछ गोसाइँ ।२९०।
देखिले अगाड़ि तहिँ गोटिए जे नाहिँ । तहुँ गले दुइभाइ निराश जे होइ ।२९१।
इन्द्रद्य़ुम्न कूले जाइ प्रबेश होइले । टोपाए टोपाए पाणि तहिँ न देखिले ।२९२।
बड़ देउलरे जाइ प्रबेश होइले । सेहिदिन उपबास करिण रहिले ।२९३।
बेल दुइ घड़िलरे निद्रा जे भांगिला । मुख प्रक्षालन अर्थे पाणि न मिलिला ।२९४।
कि बुद्धि करिबा एबे बुद्धि दिशुनाहिँ । बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ ।२९५।
कालि उपबासरे रहिले दुइ भाइ । आउ पादे जिबाकु त बल पाउनाहिँ ।२९६।
केउँठारे आजि यदि न मिलिब अन्न । केमन्त प्रकारे आम्भे धरिबा जीबन ।२९७।
बलराम कहुछन्ति शुण आरे बाबा । नगररे भिक्षा मागि जीबन पोषिबा ।२९८।
कान्धरे पकाइ छिण्डा उत्तरी पइता । हस्तरे धइले दुइभाइ भङ्गाछता ।२९९।
चिता घेनिबाकु जल काहिँ न पाआन्ति । जाहा घरठाकु पाणि मागिबाकु जान्ति ।३००।
चोर खण्ट बोलि मारि घउड़ाइ द्य़न्ति । से ठाबरु दुइ भाइ भय़े पलाअन्ति ।३०१।
जगन्नाथ कहुछन्ति शुण ज्य़ेष्ठ भाइ । बड़पण्डा घरकु हे चाल ज्य़ेष्ठ भाइ ।३०२।
हस्त धरा धरि होइ दुइ भाइ गले । बड़पण्डा घरे जाइ प्रबेश होइले ।३०३।
बधु तार कहइ जे शाशु आगे जाइ । ब्रह्मण जे दुइगोटि आसिछन्ति धाइँ ।३०४।
शाशु राण्डि राहाङ्कु जे चिह्नि न पारिला । धाइँ जाइ बेगे तांकु कबाट किलिला ।३०५।
आस आस बोहुए लो ठेङ्गा बाड़ि धरि । चोर कि खण्ट ए दुहेँ देबा आड़करि ।३०५।
एहा शुणि दुइ भाइ तहुँ पलाइले । सामबेद यजुरबेद दूरे उच्चारिले ।३०६।
शुणि शष्क तरुगण पल्लबी उठिले । भिक्षुक ब्राह्मण बोलि ब्राह्मणी चिह्निले ३०७।
दुइ भाइंकु से डाकि तहिँ बसाइला । खुद मलुख मिशाइ सत्वर रान्धिला ।३०८।
अफिटा कदलीमञ्ज दुइखण्ड आणि । बेनि भाइ पकाइण सिञ्चिलेक पाणि ।३०९।
कंसा घेनि ब्राह्मणी जे अन्न आणिगला । आउ कि बाढ़िब तार हांडि उभा हेला ।३१०।
लक्ष्मी द्रोही पुरुष ए बोलिण जाणिला । पाकशालरु लेउटि पाशरे मिलिला ।३११।
दुइगोटि भाइंकर हस्तकु धइला । कटु कथा कहि तांकु दाण्डरे छाड़िला ।३१२।
तहुँ दुइजण जे निराश होइगले । कबीर साहिरे जाइ प्रबेश होइले ।३१३।
क्षुधार्थ ब्राह्मण बोलि कबीर जाणिले । खइ चारि पाञ्च माण आणि बेगे देले ।३१४।
अन्तर्गते जाणिले जा देबी कमलिनी । पबनकु डाकि आज्ञा देले सेहिक्षणि ।३१५।
आरे पबन तुहि त बेगे चलिजिबु । खइ चारि पाञ्च माण उड़ाइण देबु ।३१६।
आज्ञा पाइ पबन जे बेगे चलिगला । प्रभुंक आगरु खइ उड़ाइण नेला ।३१७।
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । प्राण गलाबेले जाति कूल लोड़ु काहिँ ।३१८।
पद्म पोखरीकु चाल जिबा दुइ भाइ । पद्म मूल खाइ प्राण बञ्चाइबा तहिँ ।३१९।
फल पुष्प करि तहुँ गुड़ाए आणिबा । अधिक मिलिले किछि सञ्चिण रखिबा ।३२०।
एमन्त बिचार करि दुइ भाइ गले । पद्म पुष्करिणीरे जे प्रबेश होइले ।३२१।
पद्म पोखरीरे सात ताल पाणि थिला । लक्ष्मी आज्ञा मात्रे सबु पङ्क होइगला ।३२२।
जगन्नाथ कहुछन्ति कि बुद्धि करिबा । जल नाहिँ फल एथि काहुँ बा पाइबा ।३२३।
एहा कहि दुइजण तहुँ चलिगले । जाउ जाउ बाटे एक योगीकि भेटिले ।३२४।
जगन्नाथ कहुछन्ति शुण आहे नाथ । तुम्भर थालरु जे आम्भकु दिअ भात ।३२५।
सत्य़ानन्द बोले रामकृष्ण मुख चाहिँ । लक्ष्मी द्रोहि होइअछ तुम्भे दुइ भाइ ।३२६।
दुध अन्नरे जे मोर थाल पुरिथिला । तुम्भे मागन्तेण अन्न शून्य़ होइगला ।३२७।
अन्न जल न मिलिब तुम्भंकु जे काहिँ । समुद्र कूलकु बेगे जाअ दुइ भाइ ।३२८।
मुहिँ जाइथिलि मोते अन्न थिले देइ । खाइले बोहिले सेहि अन्न न सरइ ।३२९।
एहि रूपे सत्य़ानन्द बाट कहिदेले । जिबा बोलि दुइ भाइ कमर बान्धिले ।३३०।
हटि कमलिनी तहुँ बाट भिआइले । सूर्यंकु राइण देबी बेगे आज्ञा देले ।३३१।
अतिशीघ्र टाण खरा कर तुम्भे जाइ । बालि माटि तातु बेगे डह डह होइ ।३३२।
तातिब खरारे जेह्ने भाजिबार बालि । पादे मात्र केहि तहिँ न पारिबे चालि ।३३३।
जगन्नाथ कहुछन्ति शुण ज्य़ेष्ठ भाइ । एड़े बड़ खरारे मुँ चालि न पारइ ।३३४।
बेग बेग होइ तुम्भे जाउअछ धाइँ । बुद्धि दिशुनाहिँ एबे किस करिबइँ ।३३५।
शुणि न शुणिला परि बलराम गले । कमलांक सिंहद्वारे प्रबेश होइले ।३३६।
सिंहद्वारे प्रबेशिण डाकिलेक तहुँ । डाक शुणि दासीमाने अइलेक तहुँ ।३३७।
केउँ दासी कहुअछि शुण आगो सहि । एपरि कांगाल मुँ जे काहिँ देखिनाहिँ ।३३८।
एहिपरि मोटा होइ गोटाएक थिला । आम्भ ठाकुराणींकु जे घरु तड़िदेला ।३३९।
एहि रूपे दासीमाने कुहाकुहि हेले । बेकरे हात देइण दाण्डरे छाड़िले ।३४०।
बलराम प्रभु तहिँ लेउटि अइले । जगन्नाथ ठाकुरंकु बाटरे देखिले ।३४१।
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । दासीमाने आसि मोते देले घउड़ाइ ।३४२।
जगन्नाथ कहुछन्ति कि बुद्धि करिबा । केमन्त प्रकारे आम्भे जीबन धरिबा ।३४३।
आउथरे चाल बेनि भाइ फेरिजिबा । बिनय़ करिण अन्न दासींकु मागिबा ।३४४।
बलराम कहुछन्ति पछे आम्भे थिबु । आगरे थाइण अन्न तुहि जे मागिबु ।३४५।
एते कहि सिंहद्वारे प्रभु बिजेकले । मन्दिर शोभा देखि आश्चर्य होइले ।३४६।
जगन्नाथ प्रभु यहुँ एमन्त शुणिले । ओँकार शबद करि बेदध्ॱनि कले ।३४७।
ऋक्, शाम, यजुः जे अथर्ब चारि बेद । ब्रह्माण्ड पुरिउठिला गहगह नाद ।३४८।
पलङ्क उपरे कमला जे शोइथिले । निस्तरिलि निस्तरिलि बोलिण बोइले ।३४९।
कोटि कोटि जन्मर पातक हेले क्षय़ । मोर घरे बिजे कले प्रभु देबराय़ ।३५०।
पचार पचार दासी पचार लो जाइ । किस मागुछन्ति जे ब्राह्मण बेनिभाइ ।३५१।
चालिजाइ मुदु्सुलि तांकु पचारिले । कि मागुछ पण्डामाने कह तुम्भे भले ।३५२।
जगन्नाथ कहुछन्ति दासीमुख चाहिँ । अन्न गण्डाएक तुम्भे पारिबकि देइ ।३५३।
एमन्त शुणिण दासीमाने चलिगले । लक्ष्मी ठाकुराणी आगे बेगे से बोइले ।३५४।
दासीङ्क मुखरु जे एमन्त बाक्य़ शुणि । मने बिचार करन्ति लक्ष्मी ठाकुराणी ।३५५।
ए कथा अरजि अछि चण्डालुणी मुहिँ । एबे दासीमाने लो पचार बेगे जाइ ।३५६।
ब्राह्मण होइ मो घरे कि खाइबे । चण्डालुणी अन्न खाइ अपबाद नेबे ।३५७।
ए मोहर द्रव्य तांकु छुइँ न योगाइ । जाणु जाणु मुँ केमन्त प्रकारे देबइँ ।३५८।
ठाकुराणी समीपरु दासीमाने गले । ब्राह्मणंक आगे जाइ एमन्त कहिले ।३५९।
दासीङ्क मुखरु जे एमन्त बाक्य़ शुणि । क्षुधातुर होइ कहन्ति हलपाणि ।३६०।
नूआ हांडि नूआ सञ्चा देइ कि पारिबु । एमन्त बोइले आम्भेमाने जे खाइबु ।३६१।
दासीमाने कहन्ति लक्ष्मींक आगे जाइ । हाते रान्धि भोजन करिबे दुइ भाइ ।३६२।
एहा शुणि महालक्ष्मी सन्तोष होइले । दासीङ्क हस्तरे हांडि दशगोटि देले ।३६३।
चाउल पउटिए नेइ छामुरे रखिले । लेउटिआ शाग नेइ छामुरे रखिले ।३६४।
आलु सारु कदली जे बड़ि बाइगण । दुध दहि छेना शर्करी जे देले पुण ।३६५।
एबे जेते इच्छा तेते भुञ्ज होइ बोइले । गृहे महालक्ष्मी थाइ बिचार जे कले ।३६६।
रान्धणा भुञ्जिबे यदि हाते दुइ भाइ । नारींकु पुरुष आउ लोड़िबे किम्पाइँ ।३६७।
लक्ष्मीदेबी काष्ठ खण्डे हातरे धरिले । अग्निर स्तम्भन मन्त्र देबी पाठा कले ।३६८।
कदापि अग्नि देबता तेज न होइब । हांडि न तातिबा आउ पाणि न तातिब ।३६९।
जेते काठ जलुथिबा भष्म होइजिब । कुहुलि करिण तहुँ धुआँ हेउथिब ।३७०।
एमन्त बोलिण कमला जे आज्ञा देले । सेहि प्रकारेण अग्नि देबता जे कले ।३७१।
सबु काठजाक तहिँ अंगार अङ्गार जे हेला । तेबे सुद्धा किञ्चिते जे पाणि न तातिला ।३७२।
हटि कमलिनी हट भिआइले जेणु । हांडितले कला टिके न पड़िला तेणु ।३७३।
सुगन्ध तइल देबी देले पठिआइ । दासीमाने कहुछन्ति ब्राह्मणङ्कु जाइ ।३७४।
पाकसिद्धि हेला कि ब हेला हे गोसाइँ । तइल लगाइ स्नान कर बेगे जाइ ।३७५।
जगन्नाथ कहुछन्ति पाणि न तातिला । कि पाक करिबु बेल उछुर होइला ।३७६।
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । अन्न होइलाकि नाहिँ कह बेगे तुहि ।३७७।
जगन्नाथ कहुछन्ति शुण आहे भाइ । अन्न कि होइब टिके पाणि ताति नाहिँ ।३७८।
बलराम कहुछन्तिरे अधुआ मुहाँ । रान्धि न जाणि होइअछु रान्धुणिआ ।३७९।
तुहि आड़ हुअ मुहिँ रान्धुअछि जाइँ । अन्न रान्धिबाकु गले ब्राह्मण गोसाइँ ।३८०।
फुङ्कि फुङ्कि बलराम बिरक्त होइले । काठ खण्डे घेनिण जे हांडि पिटिदेले ।३८१।
क्षुधातुर दुइभाइ आकुल होइले । कि बुद्धि करिबा जगन्नाथङ्कु बोइले ।३८२।
जगन्नाथ बोइले त बुद्धि दिशुनाहिँ । क्षुधारे आतुर हेउअछि मोर देही ।३८३।
बलराम कहुछन्ति शुण जगन्नाथ । जाति पछे जाउ तार घरे खाउ भात ।३८४।
जेबे एहा घरु भात आम्भकु न देब । आम्भ दुइ भाइंकर मरण होइब ।३८५।
लेउटिण दासी जाइ लक्ष्मींकु कहिले । ब्राह्मण त हांडि भाङ्गि फोपड़ाइ देले ।३८६।
एहा शुणि महालक्ष्मी मने चिन्ता कले । केते दुःख दीनबन्धु दुहेँ जे पाइले ।३८७।
सुबर्णर चटु गोटि हातरे धइले । रोषेइ शालकु लक्ष्मी निजे बिजे कले ।३८८।
प्रथमे रान्धिले माए बगड़ा जे अन्न । मुग मधुरुचि क्षीर नानादि ब्य़ञ्जन ।३८९।
आम्बिल शाकर कले कदलीर भजा । अति यत्ने कले माए तिअण जे मञ्जा ।३९०।
षाठिए पउटि से रन्धन कले जाइ । बगड़ा भात महिमा कलना न जाइ ।३९१।
दुधपुलि कले मात घृतपुलि कले । अति यतनरे माए सरपुलि कले ।३९२।
जेते द्रव्य रान्धिछन्ति ब्राह्मणंक रुचि । बड़िर महुर कले पकाइण साचि ।३९३।
सहस्र आटिका रान्धि द्रव्य सजाड़िले । जे जाहा स्थानरे यत्ने रखाइण देले ।३९४।
कर्पूर छेना शर्करा मरिच गोलाइ । षाठिए नउति पणा रखिले त तहिँ ।३९५।
रंगबाण पइड़ संगरे छेनापणा । अदा मिशा करि जे नबात खण्डछेना ।३९६।
लक्ष्मींकर पाकगुण के कहि पारिब । क्षणक मध्य़रे माए सजाड़िले सर्ब ।३९७।
सबुथिरु खण्डिए खण्डिए रखिथिले । भोजन शेषकु पोड़पिठाए रखिले ।३९८।
बोइले दासीङ्कि कर अंग मरदन । ब्राह्मण बोलिण मने न पाञ्चिब भिन्न।३९९।
ब्राह्मणमानङ्क मुहिँ अटे निज दासी । शुणिण आनन्दे चलिगले सबु दासी ।४००।
दासीमाने कहुछन्ति सुबेदी गोसाइँ । स्नान कर बेगे अंग मरदन होइ ।४०१।
तहुँ सुबास जलरे दुहेँ स्नान कले । अंग पोछिबाकु दासी गामुछाए देले ।४०२।
पिताम्बर पाट आणि पिन्धिबाकु देले । सुबेश होइण दुइ भाइ जे बसिले ।४०३।
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । एमन्त प्रकारे मान्य़ करे किस पाइँ ।४०४।
एहा घरे पुरुष त जणे दिशुनाहिँ । शूलि देबा प्राय़े एहि बिचार दिशइ ।४०५।
चाल एबे पलाइण एहिठारु यिबा । क्षणक मध्य़रे आउ प्राण ब पाइबा ।४०६।
जगन्नाथ कहुछन्ति ज्य़ेष्ठ भाइ शुण । ए घरर कर्त्ता आजि होइबे आपण ।४०७।
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । एमन्त कहिबा तोर उचित नुहइँ ।४०८।
गृह परिष्कार देबी स्वहस्तरे कले । गन्ध चन्दन जे माए छड़ा पकाइले ।४०९।
सुबर्णर थालि सुबर्णर गिनाझरि । हातधूआ पादधूआ सुसज्जित करि ।४१०।
मणोहि करिबा बिधि जेमन्त भिआण । सुबर्णर पीठ तहिँ कलेक निर्माण ।४११।
महालक्ष्मी कहुछन्ति दासी मुख चाहिँ । बेग प्रभुंकु लो घेनिआस जाइ ।४१२।
एहा शुणि दासीमाने बेगे चलिगले । ब्राह्मणंक पाशे जाइ प्रबेश होइले ।४१३।
बिनय़रे कहुछन्ति ब्राह्मण गोसाइँ । भोजन करिब चाल स्थान अछि होइ ।४१४।
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । नारीए जणे पुरुष केहि एथि नाहिँ ।४१५।
भितरकु जिबा आम्भ उचित नुहँइ । पत्र दुइखण्ड तुम्भे आण बेगे जाइ ।४१६।
जगन्नाथ कहुछन्ति शुण भाइ तुम्भे । ए घरर कर्त्ता आज होइबा जे आम्भे ।४१७।
किम्पा तुम्भे भय़ करुअछ ज्य़ेष्ठ भाइ । दाता देउअछि आम्भे छाड़िबा कम्पाइ ।४१८।
भय़े बलराम से ठाबरु न उठन्ति । हस्त धरि घेनिगले कमलांक पति ।४१९।
ठाब सञ्चारे जे बलराम न बसन्ति । हस्त धरि बसाइले देब शिरीपति ।४२०।
कमलिनी कहुछन्ति तुलसी ब्राह्मणी । देढ़शूर अटन्ति जे मोर हलपाणि ।४२१।
ताहाङ्कु केमन्ते अन्न मुहिँ देबि नेइ । भितरे थाइण मुँ जे देबइँ बढ़ाइ ।४२२।
सान किए बोलि आग पचारिबु जाइ । बड़ठारे आग अन्न परशिबु नेइ ।४२३।
अन्नथालि नेइ आग ब्राह्मणी अइला । बड़ सान केउँ पण्डा बोलि पचारिला ।४२४।
बलराम बोलुछन्ति होइलुकि काणी । बड़ सान किए तोते न दिशइ पुणि ।४२५।
आम्भे बड़ बोलिण जे बलराम कहि । ब्राह्मणी बोइले कोप कल कि गोसाइँ ।४२६।
प्रथम थालिर अन्न बलरामे देला । भितरकु आउ अन्न आणिबाकु गला ।४२७।
आउ एक थालि अन्न आणिला बेलकु । चारि ग्रासरे बलराम खाइले ताहाकु ।४२८।
अन्न थालि घेनि करि ब्राह्मणी अइला । ए पण्डार अन्नजाक किए घेनिगला ।४२९।
बलराम बोइले क्षुधार्त्त होइथिलु । आग करि चारि ग्रास बेगे खाइदेलु ।४३०।
हसिला ब्राह्मणी दुइभाइंकु अनाइ । कुटुम्भ मारिबा प्राय़ दिशुछ गोसाइँ ।४३१।
पुत्र भारिजाकि तुम्भ दुहिङ्कर नाहिँ । पेट लागि बुलुअछ देश देश होइ ।४३२।
सहस्र कान्दि कदली रखिदेले नेइ । षाठिए नउति पणा रखिदेले थोइइ ।४३३।
जेउँपरि प्रभुंकर मनकु रुचइ । सेहिपरि कमलिनी दिअन्ति पठाइ ।४३४।
भोजान शेषकु जे कहन्ति बलराम । लक्ष्मींक रान्धणा परि लागुछि उत्तम ।४३५।
जगन्नाथ कहुछन्ति बलराम भाइ । लक्ष्मीपरा भार्याकु पाइबा आउ काहिँ ।४३६।
लक्ष्मींकु भर्त्सना करि देले घउड़ाइ । बाहारि गले से तांक इच्छा हेला नाहिँ ।४३७।
एमन्त समय़े पोड़पिठा देले नेइ । जगन्नाथ कहुछन्ति बलराम भाइ ।४३८।
मोर मन कथाकु जे लक्ष्मी जाणिथाइ । भोजन शेषकु पोड़पिठाए दिअइ ।४३९।
भोजन सारिण प्रभु आचमन कले । कर्पुर ताम्बूल दुइ भाइ जे भुञ्जिले ।४४०।
बाहार मेलारे जाइ प्रभु बिजेकले जाइँ । गबाक्ष द्वाररे लक्ष्मी अछन्ति अनाइ ।४४१।
पचार पचार दासी पचारलो जाइ । बिभा होइ अछन्ति कि पण्डा दुइ भाइ ।४४२।
एहा शुणि दासीमाने बेगे चलिगले । ब्राह्मणंक निकटरे प्रबेश होइले ।४४३।
पुत्र भार्या अछन्ति कि काहिँ तुम्भ घर । केउँ राज्य़े बाड़ि बृत्ति शासन तुम्भर ।४४४।
जगन्नाथ कहुछन्ति शुण दासी तुहि । बिबाह हेबाकु द्रव्य आम्भर जे नाहिँ ।४४५।
गुआ बाड़ि शासन पाइबु आम्भे काहिँ । लक्ष्मी परा भार्याकु जे देलु घउड़ाइ ।४४६।
कपाल मन्दा आम्भर दुइ भाइ बुलु । लक्ष्मी घउड़ाइ आम्भे ए दुःख पाइलु ।४४७।
दासीए बोइले पण्डा होइल कि बाइ । नारीकि छाड़ि पुरुष दरिद्र कि होइ ।४४८।
गोविन्द बोलन्ति आम्भे कहुअछु शुण । केउँ नारी थिले हुए ऐश्वर्य बर्द्धन ।४४८।
केउँ नारी थिले बंश निपात हुअइ । केउँ नारी थिले बासि पेज न मिलइ ।४४९।
केउँ नारी थिले सुना बला जे मिलइ । केउँ नारी अलक्षणी घररे भाङ्गइ ।४५०।
तुम्भ साआन्ताणींकु जे पचार बोलइ । दासी कहे बातुल कि होइल गोसाइँ ।४५१।
क्षुधा लागुथिला एबे भात जे खाइल । आम्भ साआन्ताणिङ्कु जे पचार बोइल ।४५२।
बलराम बोइले ए मोर पिला भाइ । तुम्भ साआन्ताणी आगे जणाइब नाहिँ ।४५३।
जगन्नाथ कहुछन्ति भय़ काहिँपाइँ । किछि न बिचार आहे बलराम भाइ ।४५४।
लक्ष्मींकर गृह सिना अटइ जे एहि । एठारे आपण भय़ कर किस पाइँ ।४५५।
बलराम बोलुछन्ति बाबु चक्रधर । तुम्भे जाइँ हस्तधरि महालक्ष्मींकर ।४५६।
आम्भ दोष कलु बोलि कह तांकु जाइ । जहिँ इच्छा तहिँ रह आम्भ मना नाहिँ ।४५७।
जेतेबेले बलराम एमन्त कहिले । भितर पुरकु प्रभु निजे बिजे कले ।४५८।
धीरे धीरे भितरकु गले पीतबास । प्रबेश होइले जाइ कमलांक पाश ।४५९।
पाणिझरि घेनिकरि कमला अइले । दरहासे प्रभुंकर मुखकु चाहिँले ।४६०।
अति यतनरे देले पादपद्म धोइ । थोपाए पाद उदक मस्तके लगाइ ।४६१।
किछि पादोदक लक्ष्मी गर्भकु खेपिले । पञ्चबर्ण पुष्पे पादपद्म पूजाकले ।४६२।
महालक्ष्मी कहुछन्ति प्रभुंकु अनाइ । चण्डालुणी बोलि मोते देल घउड़ाइ ।४६३।
चण्डालुणी घरे एबे भुञ्जिल गोसाइँ । चण्डाल बिटाल हेल दुइगोटि भाइ ।४६४।
धिक तुम बड़पण धिक तुम कथा । पोड़ु तुम्भर प्रतिज्ञा धिक तुम्भ भ्राता ।४६५।
महालक्ष्मी ए प्रकारे बहु धिकारिला । कालीय़ गञ्जन शुणि किछि न कहिले ।४६६।
महामय़ी बोइले हे शुण मो बचन । मोर किस कार्य तुम्भे कह हे बहन ।४६७।
किछि क्षण उत्तारे बोइले जगन्नाथ । एबे मनु मान तेज जगतर मात ।४६८।
अकारणे एते कथा कह प्राणसहि । आम्भर प्रार्थना आम्भ सङ्गे जिबापाइँ ।४६९।
बड़ हेले किस हेला गरब गञ्जिल । रबि तले सबु युगे यश रखिगल ।४७०।
तुम्भ योगे आम्भे कष्ट पाइलु बहुत । आम्भे भिक्षा मागिबार जाणिले जगत ।४७१।
तुम्भ यश किर्त्ती एबे जगते रहिला । आम्भंकु अन्न देबार जगत शुणिला ।४७२।
गुरुवार दिन ए पुराण जे शुणिब । जन्म जन्मान्तर पाप तार क्षय़ हेब ।४७३।
लक्ष्मीपूजा दिन एहा जे नारी गाइब । इह जन्मे पतिब्रता बैकुण्ठकु जिब ।४७४।
यद्यपि नारीकु केहि मुखे बुझाइब । ताहार सुकृत आउ के कहि पारिब ।४७५।
एते कहि गोविन्द धइले लक्ष्मी हस्त । जगत मात कहिले कर तुम्भे सत्य़ ।४७६।
चण्डालु ब्राह्मण जाए खुआखोइ हेबे । समस्ते खाइण हस्त जले न धोइबे ।४७७।
हाड़िर हस्तु ब्राह्मण छड़ाइ खाइबे । ब्राह्मणे खाइ हस्तकु मुण्डरे पोछिबे ।४७८।
अन्न खाइ सर्बे मुण्डे पोछुथिबे हस्त । तेबे बड़ देउलकु जिबि जगन्नाथ ।४७९।
हेउ हेउ बोलि आज्ञा देले महाबाहु । युगे युगे लक्ष्मी गो तुम्भर यश रहु ।४८०।
लक्ष्मींक हस्त धरिण जगन्नाथ नेले । बड़ देउलकु प्रभु बिजे करिगले ।४८१।
लक्षे चन्द्र उदिआजे छामुरे जलइ । देउलकु बिजे कले ब्रह्माण्ड गोसाइँ ।४८२।
इन्द्र डाकुछन्ति देब मणिमा मणिमा । ब्रह्मा डाकुछन्त देब गुहारि शुणिमा ।४८३।
बरुण कुबेर जे हस्तरे बेत धरि । नृत्य करुथिले जहिँ स्वर्ग अपशरि ।४८४।
रम्भा जे मेनका आदि आउ चित्रलेखा । तुलसी मालति आउ अन्य़ान्य़ रसिका ।४८५।
चञ्चला जे मदालसी आबर सुशीला । नृत्य आरम्भन्ति तुष्ट होइ से अबला ।४८६।
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्ना इ । घरकु घरणी सिना सुन्दर दिशइ ।४८७।
जेतेबेले दाण्डे जाउथिलु दुइ भाइ । चोर खण्ट बोलि देउथिले घउड़ाइ ।४८८।
आहुरि कथाए शुण जगन्नाथ भाइ । लक्ष्मी एते बड़ बोलि एबे जाणिलइँ ।४८९।
लक्ष्मी देबी बिजे कले तांक देउलकु । दुइ भाइ बिजे कले तांक देउलकु ।४९०।
दासी परचारि आदिकरि जेते थिले । लक्ष्मी आसिलारु से समस्त जे अइले ।४९१।
लक्ष्मींकु पाइण देब गोविन्द आनन्द । संसाररे सेहि मते कलेक गोविन्द ।४९२।
शुणिले नारद एहि पुरातन आख्य़ा । जाहा प्रसन्नरे प्रभु मागिले जे भिक्षा ।४९३।
छार चण्डालुणी अइश्वर्य भोग कला । लक्ष्मींकर सुदय़ारे एमन्त होइला ।४९४।
ए पुराण पढ़िले जे सर्ब सिद्धि हुए । सूर्योदय सम तम पाप क्षय़ हुए ।४९५।
ए पुराण जेउँमाने पढ़न्ति शुणन्ति । लक्षे कोटि गोदानर फल जे लभन्ति ।४९६।
ए पुराण अटइ जे मुकतिर पथ । एहा फल कथनरे के हेब समर्थ ।४९७।
लक्ष्मींक पुराण एहु समाप्त होइला । भाबे '''बलराम दास''' गीतरे कहिला ।४९८।
 
:॥ इति श्री लक्ष्मी पुराण समाप्त ॥:
 
बळराम > बलराम
चाउळ > चाउल
कमळा >कमला
कदळी> कदली
कमळाङ्क, कदळीरे, येउँ
अलंकार, बंचित, अंगार, मंडल