"अल-क़सस": अवतरणों में अंतर

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हज़रत इब्ने अब्बास (रजि.) और हज़रत जाबिर-बिन-जैद (रजि.) का कथन है हम कि सूरा 26 (अशुअरा) , सूरा 27 (नम्ल) और सूरा क़सस क्रमशः अवतरित हुई हैं। भाषा , वर्णन शैली और विषय - वस्तुओं से भी यही महसूस होता है कि इन तीनों सूरतों का अवतरणकाल लगभग एक ही है। और इस दृष्टि से भी इन तीनों में निकटवर्ती सम्बन्ध है कि हज़रत मूसा (अलै.) के वृत्तान्त के विभिन्न अंश जो इनमें वर्णित हुए हैं वे परस्पर मिलकर एक पूरा क़िस्सा बन जाते हैं।
==विषय और वार्ताएँ==
[[मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी]] लिखते हैं कि इसका विषय उन सन्देहों और आक्षेपों का निवारण करना है जो नबी (सल्ल.) की पैग़म्बरी पर किए जा रहे थे, और उन आपत्तियों और विवशताओं को रद्द करना है जो आपपर ईमान न लाने के लिए प्रस्तुत की जाती थीं। इस उद्देश्य के लिए सबसे पहले हज़रत मूसा (अलै.) का क़िस्सा बयान किया गया है, जो अवतरण काल की परिस्थितियों से मिलकर स्वतः कुछ तथ्य सुननेवालों के मन में बिठा देता है :
 
प्रथम यह कि अल्लाह जो कुछ करना चाहता है उसके लिए वह गैरमहसूस ढंग से संसाधन जुटा देता है। जिस बच्चे के हाथों अन्ततः फ़िरऔन का तख़्ला उलटना था , उसे अल्लाह ने स्वयं फ़िरऔन ही के घर में उसके अपने हाथों पालन-पोषण करा दिया। दूसरे यह कि पैग़म्बरी किसी व्यक्ति को किसी बड़े समारोह और धरती और आकाश से किसी भारी उद्घोषणा के साथ नहीं दी जाती। तुमको आश्चर्य है कि मुहम्मद (सल्ल . ) को चुपके से यह पैग़म्बरी कहाँ से मिल गई और बैठे बिठाए ये नबी कैसे बन गए। किन्तु जिन मूसा (अलै.) का तुम हवाला देते हो कि “क्यों न दिया गया इसको वही कुछ जो मूसा को दिया गया था" ( आयत 48 ) उन्हें भी इसी तरह राह चलते पैग़म्बरी मिल गई थी ।
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“ यह नबी वह चमत्कार क्यों न लाया , जो इससे पहले मूसा (अलै.) लाए थे। " उनसे कहा जाता है कि मूसा (अलै.) ही को तुमने कब माना है कि अब इस नबी से चमत्कार की माँग करते हो? अन्त में मक्का के काफ़िरों की उस मूल आपत्ति को लिया जाता है जो नबी (सल्ल.) की बात न मानने के लिए वे प्रस्तुत करते थे। उनका कहना यह था कि यदि हम अरबवालों के बहुदेववादी धर्म को छोड़कर इस नए एकेश्वरवादी धर्म को स्वीकार कर ले तो सहसा इस देश से हमारी धार्मिक , राजनैतिक और आर्थिक चौधराहट समाप्त हो जाएगी। यह चूँकि कुरैश के सरदारों का सत्य से वैर रखने का वास्तविक प्रेरक था , इसलिए अल्लाह ने इसपर सूरा के अनत तक विस्तृत वार्तालाप किया है।
 
==सूरह अल-क़सस का अनुवाद==
'''अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।'''