"उर्दू शायरी": अवतरणों में अंतर
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▲ script.png|thumb|230px|[[मोमिन ख़ान मोमिन]] (१८००-१८५१) की एक प्रसिद्ध ग़ज़ल - मक़ते (अंतिम शेर) में उनका तख़ल्लुस 'मोमिन' है]]
[[चित्र:Mirza Ghalib photograph.jpg|thumb|230px|[[मिर्ज़ा ग़ालिब]]]]
[[चित्र:Ghalibverse.png|thumb|230px|ग़ालिब बुरा न मान जो वाइज़ (मुल्ला/पंडित) बुरा कहे,<br />ऐसा भी है कोई के सब अच्छा कहें जिसे?]]
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== आम प्रयोग में ==
भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति में ऐसा होता आया है कि अगर कोई शेर लोकप्रीय हो जाए तो वह लोक-संस्कृति में एक [[सूत्रवाक्य]] की तरह शामिल हो जाता है। उदाहरण के लिए:
* '''इब्तेदा-ए-इश्क़ है, रोता है क्या''' - इसकी दूसरी पंक्ति है, 'आगे-आगे देखिये होता है क्या'। यह अक्सर किसी मुश्किल काम (जिसमें प्रेम-प्रयास भी है) के करते समय कहा जाता है। इसका अर्थ है कि 'अभी तो मुश्किल काम शुरू हुआ है, अभी और कठिनाई आएगी, अभी से क्या रोना?'<ref name="ref58ciyop">[http://books.google.com/books?id=r3nTDP9CKegC Master couplets of Urdu poetry], K. C. Kanda, Institute of Southeast Asian Studies, 2002, ISBN 978-81-207-2356-6, ''... Ibteda-e-ishq hai rota hai kya, Aage aage dekheye hota hai kya ... Woh jo hum mein tum mein qaraar tha tumhen yaad ho ke na yaad ho, Wohi waada yaani nibah ka, tumhen yaad ho ke na yaad ho ...''</ref>
* '''ख़ुदी को कर बुलन्द इतना''' - यह [[मुहम्मद इक़बाल|इक़बाल]] का शेर है जिसके आगे का भाग है 'के हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बन्दे से ख़ुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है'। इसका अर्थ है कि 'इतने लायक़ बनो कि जीवन के हर मोड़ पर भगवान तुम्हारा भाग्य लिखते हुए तुम्ही से तुम्हारी जो मर्ज़ी हो पूछ कर लिख दे'।
* '''ख़ाक़ हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होने तक''' - इसका पहला जुमला है 'हमने माना के तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन'। इसमें प्रेमी अपनी प्रेमिका से कह रहा है कि वह जानता है कि उसकी व्याकुलता के बारे में सुनकर वो बिना विलम्ब (तग़ाफ़ुल) किये आ जाएगी; लेकिन डर यह है कि उसका दुख इतना भारी है कि वह प्रेमिका को ख़बर मिलने से पहले ही मर जाएगा'। यह भारतीय संसद में एक सांसद ने भूतपूर्व प्रधान मंत्री नरसिंहराव से अपने क्षेत्र के लिए मदद मांगते हुए कहा था। नरसिंहराव का उत्तर था- " घबराइये नहीं! हम आपको ख़ाक़ नहीं होने देंगे।"
* '''और भी ग़म हैं ज़माने में''' - यह फैज़ अहमद फैज़ के एक शेर का हिस्सा है, पूरा शेर है: 'मुझ से पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग और भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा'। इसका अर्थ है कि दुनिया में इतनी मुश्किलें-तकलीफ़ें हैं कि आदमी हर समय आनंद देने वाली चीज़ों पर ध्यान नहीं दे सकता।<ref name="ref11xoyec">[http://books.google.com/books?id=hT3h1mWbjA4C Masterpieces of Urdu nazm], K. C. Kanda, Sterling Publishers Pvt. Ltd, 2009, ISBN 978-81-207-1952-1, ''... Aur bhi dukh hain zamane mein mahabbat ke siwa, Raahaten aur bhi hain wasal ki raahat ke siwa ...''</ref>
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== शायरी से सम्बन्धित शब्द ==
शेर-ओ-
* '''जुमला''' - यह 'पंक्ति' का एक अन्य नाम है, उदाहरण के लिए 'बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे' एक जुमला है (अर्थ: 'मेरे लिए दुनिया एक बच्चों का खेल/बाज़ी है')
* '''मिसरा''' -
* '''शेर''' - यह दो जुमलों (पंक्तियों) से बना कविता का एक अंश होता है जो एक-साथ मिलकर को भाव या अर्थ देती हैं, उदाहरण के लिए 'बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे, होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे' दो जुमलों का एक शेर है (अर्थ: 'दुनिया मेरे लिए बच्चों का खेल है, रात-दिन यही तमाशा देखता हूँ')
* '''मतला''' - किसी ग़ज़ल के पहले शेर को मतला कहते हैं।
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== इन्हें भी देखें ==
* [[उर्दू भाषा|उर्दू]]
*[[उर्दू]]▼
* [[ख़]], [[ग़]], [[ज़]], [[क़]], [[फ़]]
* [[मिर्ज़ा ग़ालिब]]
* [[कवि|शायर]]
*
== सन्दर्भ ==
{{सन्दर्भ}}
[[श्रेणी:शायरी]]
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[[श्रेणी:भारतीय संस्कृति]]
[[श्रेणी:पाकिस्तानी संस्कृति]]
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