"रामानन्द": अवतरणों में अंतर

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स्वामी रामानंद ने राम भक्ति का द्वार सबके लिए सुलभ कर दिया। साथ ही ग्रहस्तो में वर्णसंकरता ना फैले, इस हेतु विरक्त संन्यासी के लिए कठोर नियम भी बनाए। उन्होंने '''अनंतानंद''', '''भावानंद''', [[पीपाजी|पीपा]], '''सेन नाई''', [[भगत धन्ना|धन्ना]], [[नाभादास|नाभा दास]], '''नरहर्यानंद''', '''सुखानंद''', [[कबीर]], [[रविदास|रैदास]], '''सुरसरी''', '''पदमावती''' जैसे बारह लोगों को अपना प्रमुख शिष्य बनाया, जिन्हे '''द्वादश महाभागवत''' के नाम से जाना जाता है। इन्हें अपने अपने जाति समाज मे, और इनके क्षेत्र में भक्ति का प्रचार करने का दायित्व सौपा, इनमें कबीर दास और रैदास आगे चलकर काफी ख्याति अर्जित किये। कालांतर में कबीर पंथ, रामानंदीय सम्प्रदाय से अलग रास्ते पर चल पड़ा । रामानंदीय सम्प्रदाय सगुण उपासक है और विशिष्टाद्वेत सिद्धान्त को मानते है । कबीर और [[रविदास]] ने [[निर्गुण ब्रह्म|निर्गुण]] राम की उपासना की। इस तरह कहें तो स्वामी रामानंद ऐसे महान संत थे जिसकी छाया तले सगुण और निर्गुण दोनों तरह के संत-उपासक विश्राम पाते थे। जब समाज में चारो ओर आपसी कटूता और वैमनस्य का भाव भरा ङुआ था, वैसे समय में स्वामी रामानंद ने भक्ति करने वालों के लिए नारा दिया '''जात-पात पूछे ना कोई-हरि को भजै सो हरि का होई''' उन्होंने '''सर्वे प्रपत्तेधिकारिणों मताः''' का शंखनाद किया और भक्ति का मार्घ सबके लिए खोल दिया। किन्तु वर्णसंकरता नहीं हो, इसलिये संन्यासी/वैरागी के लिए कठोर नियम बनाए, उन्होंने महिलाओं को भी भक्ति के वितान में समान स्थान दिया।
 
==रामानन्दी द्वारे==
रामानन्दी सम्प्रदाय द्वारा स्थापित [[रामानंदी संप्रदाय|रामानंदी‌ सम्प्रदाय]] या '''रामावत संप्रदाय''' आज वैष्णव संन्यासी/ साधुओं का सबसे बड़ा धार्मिक जमात है। वैष्णवों के 52 द्वारों में 36 द्वारे केवल रामानंदिय सन्यासियों/वैरागियों के हैं। यह सभी द्वारे ब्राह्मण कुल के शिष्यों ने स्थापित किए, इनमे से एक पीपासेन जी क्षत्रिय थे, सम्प्रदाय की शर्त अनुसार यह सभी ब्रह्मचारी हो, यह आवश्यक है । इस संप्रदाय के संन्यासी/साधु बैरागी भी कहे जाते हैं। इनके अपने अखाड़े भी हैं। यूं तो रामानंदी सम्प्रदाय की शाखाएं औऱ उपशाखाएँ देश भर में फैली हैं। लेकिन [[अयोध्या]], [[चित्रकूट धाम|चित्रकूट]], [[नासिक|नाशिक]], [[हरिद्वार]] में इस संप्रदाय के सैकड़ो मठ-मंदिर हैं। काशी के '''पंचगंगा घाट''' पर अवस्थित '''श्रीमठ''', दुनिया भर में फैले रामानंदियों का मूल गुरुस्थान है। दूसरे शब्दों में कहें तो काशी का '''श्रीमठ'' हीं सगुण और निर्गुण रामभक्ति परम्परा और [[रामानंद सम्प्रदाय]] का मूल आचार्यपीठ है। वर्तमान में '''जगदगुरू रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज''', श्रीमठ के गादी पर विराजमान हैं। वे न्याय शास्त्र के प्रकांड विद्वान हैं और संन्यासी जगत में समादृत हैं।