"जरासन्ध": अवतरणों में अंतर
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[[अंग]] प्रदेश का राजा बनने के पश्चात , [[ कर्ण]] अंग की प्रजा को मगध नरेश के अन्याय से मुक्त करने के लिए जरासंध से युद्ध करता है । यह युद्ध लागातार 500 दिनों तक चला था। इसी युद्व के अन्तिम मे कर्ण जरासंध को बताता है कि उसे उसकी कमजोरी का ज्ञान है। उसे बीच से फार कर मारा जा सकता है। तब जरासंध अपनी पराजय स्वीकार कर लेता हैं और यही से उसकी म्रत्यु का रहस्य सबके सामने आ जाता है।
[[इन्द्रप्रस्थ|इंद्रप्रस्थ]] नगरी का निर्माण पूरा होने के पश्चात एक दिन [[नारद मुनि]] ने महाराज [[युधिष्ठिर]] को उनके पिता का यह संदेश सुनाया की अब वे [[राजसूय|राजसूय यज्ञ]] करें। इस विषय पर महाराज ने श्री[[कृष्ण]] से बात की तो उन्होंने भी युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ करने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन महाराज युधिष्ठिर के चक्रवर्ती सम्राट बनने के मार्ग में केवल एक रोड़ा था, मगध नरेश जरासंध, जिसे परास्त किए बिना वह सम्राट नहीं बन सकते थे और ना ही उसे रणभूमि मे परास्त किया जा सकता था। इस समस्या का समाधान करने के लिए श्री[[कृष्ण]], [[भीम]] और [[अर्जुन]] के साथ [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] का भेष बनाकर मगध की ओर चल दिए। वहाँ पहुँच कर जरासंध ने उन्हें ब्राह्मण समझकर कुछ माँग लेने के लिए कहा
तब अर्धरात्रि में वह आया लेकिन उसे उन तीनों पर कुछ संदेह हुआ की वे ब्राह्मण नहीं है क्योंकि वे शरीर से क्षत्रिय जैसे लग रहे थे उसने अपने संदेह को प्रकट किया और उन्हे उनके वास्तविक रूप में आने को कहा एवं उन्हे पहचान लिया। तब श्री[[कृष्ण]] की खरी-खोटी सुनने के बाद उसे क्रोध आ गया और उसने कहा की उन्हें जो भी चाहिए वे माँग ले और यहाँ से चले जाएं। तब उन्होंने ब्राह्मण भेष में ही जरासंध को मल्लयुद्ध करने के लिए कहा और फिर अपना वास्तविक परिचय दिया। जरासन्ध एक वीर योधा था इसलिए उसने मल्ल युद्ध के लिए भीम को ही चुना।
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