"रामानन्द": अवतरणों में अंतर

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== भक्ति-यात्रा ==
स्वामी रामानंद ने भक्ति मार्ग का प्रचार करने के लिए देश भर की यात्राएं की। वे [[जगन्नाथ मन्दिर, पुरी|पुरी]] और [[दक्षिण भारत]] के कई धर्मस्थानों पर गये और रामभक्ति का प्रचार किया। पहले उन्हें [[रामानुज|स्वामी रामानुज]] का अनुयायी माना जाता था लेकिन [[रामानुज संप्रदाय|श्री सम्प्रदाय]] का आचार्य होने के बावजूद उन्होंने अपनी उपासना पद्धति में राम और सीता को वरीयता दी। उन्हें हीं अपना उपास्य बनाया। राम भक्ति की पावन धारा को हिमालय की पावन ऊंचाईयों से उतारकर [[स्वामी रामानन्दाचार्य|स्वामी रामानंद]] ने गरीबों और वंचितों की झोपड़ी तक पहुंचाया, वे भक्ति मार्ग के ऐसे सोपान थे जिन्होंने भक्ति साधना को नया आयाम दिया। उनकी पवित्र चरण पादुकायें आज भी '''श्रीमठ''', काशी में सुरक्षित हैं, जो करोड़ों रामानंदियों की आस्था का केन्द्र है। स्वामीजी ने भक्ति के प्रचार में संस्कृत की जगह लोकभाषा को प्राथमिकता गी.दी। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिसमें '''आनंद भाष्य''' पर टीका भी शामिल है। '''वैष्णवमताब्ज भास्कर''' भी उनकी प्रमुख रचना है।
 
== चिंतनधारा ==