"रामानन्द": अवतरणों में अंतर
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यह स्वामी रामानंद के ही व्यक्तित्व का प्रभाव था कि हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य, शैव-वैष्णव विवाद, वर्ण-विद्वेष, मत-मतांतर का झगड़ा और परस्पर सामाजिक कटुता बहुत हद तक कम हो गई। उनके ही यौगिक शक्ति के चमत्कार से प्रभावित होकर तत्कालीन मुगल शासक [[मुहम्मद बिन तुग़लक़|मोहम्मद तुगलक]] संत कबीरदास के माध्यम से स्वामी रामानंदाचार्य की शरण में आया और हिंदुओं पर लगे समस्त प्रतिबंध और जजियाकर को हटाने का निर्देश जारी किया। '''बलपूर्वक इस्लाम धर्म में दीक्षित हिंदुओं को फिर से हिंदू धर्म में वापस लाने के लिए परावर्तन संस्कार का महान कार्य सर्वप्रथम स्वामी रामानंदाचार्य ने ही प्रारंभ किया। इतिहास साक्षी है कि [[अयोध्या]] के राजा हरिसिंह के नेतृत्व में चौंतीस हजार राजपूतों को एक ही मंच से स्वामीजी ने स्वधर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया था।''' ऐसे महान संत, परम विचारक, समन्वयी महात्मा का प्रादुर्भाव [[इलाहाबाद|तीर्थराज प्रयाग]] में एक [[कान्यकुब्ज ब्राह्मण]] परिवार में हुआ था। जन्मतिथि को लेकर मतभेद होने के बावजूद रामानंद संप्रदाय में मान्यता है कि आद्य जगद्गुरू का प्राकट्य माघ कृष्ण सप्तमी संवत् 1356 को हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित पुण्य सदन शर्मा और माता का नाम सुशीला देवी था। धार्मिक संस्कारों से संपन्न पिता ने रामानंद को काशी के श्रीमठ में गुरू राघवानंद के सानिध्य में शिक्षा ग्रहण के लिए भेजा. कुशाग्रबुद्धि के रामानंद ने अल्पकाल में ही सभी शास्त्रों, पुराणों का अध्ययन कर प्रवीणता प्राप्त कर ली। गुरू राघवानंद और माता-पिता के दबाव के बावजूद उन्होंने गृहस्थाश्रम स्वीकार नहीं किया और आजीवन विरक्त रहने का संकल्प लिया। ऐसे में स्वामी रामानंद को [[रामतारक मंत्र]] की दीक्षा प्रदान की। रामानंद ने श्रीमठ की गुह्य साधनास्थली में प्रविष्ट हो राममंत्र का अनुष्ठान तथा अन्यान्य तांत्रिक साधनाओं का प्रयोग करते हुए घोर तपश्चर्या की। योगमार्च की तमाम गुत्थियों को सुलझाते हुए उन्होंने अष्टांग योग की साधना पूर्ण की। दीर्घायुष्य प्राप्त करने के कारण जगद्गुरू राघवानंद ने अपने तेजस्वी और प्रिय शिष्ट रामानंद को श्रीमठ पीठ की पावन पीठ पर अभिषिक्त कर दिया। अपने पहले संबोधन में ही जगदगुरू रामानंदाचार्य ने हिंदू समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं अंधविश्वासों को दूर करने तथा परस्पर आत्मीयता एवं स्नेहपूर्ण व्यवहार के बदौलत धर्म रक्षार्थ विराट संगठित शक्ति खड़ा करने के संकल्प व्यक्त किया। काशी के परम पावन पंचगंगा घाट पर अवस्थित श्रीमठ, आचार्यपाद के द्वारा प्रवाहित श्रीराम प्रपत्ति की पावनधारा के मुख्यकेंद्र के रूप में प्रतिष्ठित होकर उसी ओजस्वी परंपरा का अनवरत प्रवर्तन कर रहा है। आज भी '''श्रीमठ''' आचार्यचरण की परिकल्पना के अनुरूप उनके द्वारा प्रज्ज्वलित दीप से जनमानस को आलोकित कर रहा है। यही वह दिव्यस्थल है, जहां विराजमान होकर स्वामीजी ने अपने परमप्रतापी शिष्यों के माध्यम से अपनी अनुग्रहशक्ति का उपयोग किया था।
रामानंदाचार्य पीठ का पवित्र केंद्र सारे देश में फैले रामानंद संप्रदाय का मुख्यालय है। श्रीमठ में अवस्थित रामानंदाचार्च की चरणपादुका दुनियाभर में बिखरे रामानंदी संतों, तपस्वियों एवं अनुयायियों की श्रद्धा का अन्यतम बिंदु है। यह परम सौभाग्य और संतोष का विषय है कि श्रीमठ के वर्तमान पीठासीन आचार्य स्वामी '''रामनरेशाचार्यजी''' भी स्वामी रामानंदाचार्य की प्रतिमूर्ति जान पड़ते हैं। उनकी कल्पनाएं, उनका ज्ञान, उनकी वग्मिता और सबसे अच्छी उनकी उदारता और संयोजन चेतना ऐसी है कि यह विश्वास किया जाता है कि स्वामी रामानंद का व्यक्तित्व कैसा रहा होगा। वर्तमान जगद्गुरू रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज के सत्प्रयासों का नतीजा है कि श्रीमठ से कभी अलग हो चुकी
'''रामनंद: स्वयं राम: प्रादुर्भूतो == रचना संसार ==
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