"राजा महेन्द्र प्रताप सिंह": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Raja-mahendra-pratap.png|right|thumb|150px|क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी राजा महेन्द्र प्रताप सिंह]]
 
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'''राजा महेन्द्र प्रताप सिंह''' (1 दिसम्बर 1886 – 29 अप्रैल 1979) [[भारत]] के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, [[पत्रकार]], लेखक, क्रांतिकारी और समाज सुधारक थे। वे 'आर्यन पेशवा' के नाम से प्रसिद्ध थे।
| name = महेन्द्र प्रताप
| image = Mahendra Pratap 1979 stamp of India.jpg
| caption = सन् 1979 के एक भारतीय डाकटिकट पर राजा महेन्द्र सिंह
| office1 = [[भारत की अस्थायी सरकार]] के अध्यक्ष
| term1 = 1 दिसम्बर 1915 - जनवरी 1919
| office2 = [[सांसद]] ([[लोकसभा]])
| nationality = [[भारतीय]]
| term2 = 1957–1962
| birth_date = 1 दिसम्बर 1886 [[हाथरस जिला]], [[संयुक्त प्रान्त]]
| death_date = 29 अप्रैल 1979 (92 वर्ष की आयु में)
| alma_mater = [[मिन्टो सर्कल]]
}}
'''राजा महेन्द्र प्रताप सिंह''' (1 दिसम्बर 1886 – 29 अप्रैल 1979) [[भारत]] के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, [[पत्रकार]], लेखक, क्रांतिकारी और समाज सुधारक थे। वे 'आर्यन पेशवा' के नाम से प्रसिद्ध थे और [[भारत की अनंतिम सरकार]] के अध्यक्ष थे। यह सरकार [[प्रथम विश्वयुद्ध]] के दौरान बनी थी और भारत के बाहर से संचालित हुई थी। उन्होने [[द्वितीय विश्वयुद्ध]] के दौरान १९४० में [[जापान]] में 'भारतीय कार्यकारी बोर्ड' (Executive Board of India) की स्थापना की थी। अपने कॉलेज के साथियों के साथ मिलकर उन्होने सन १९११ में [[बाल्कन युद्ध]] में भी भाग लिया। उनकी सेवाओं को याद करते हुए [[भारत सरकार]] ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया है।
 
== जीवन परिचय ==
महेन्द्र प्रताप का जन्म १ दिसम्बर १८८६ को एक [[जाट]] परिवार में हुआ था जो [[मुरसान रियासत]] के शासक थे। यह रियासत वर्तमान [[उत्तर प्रदेश]] के [[हाथरस जिला|हाथरस जिले]] में थी। वे राजा घनश्याम सिंह के तृतीय पुत्र थे। जब वे ३ वर्ष के थे तब हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने उन्हें पुत्र के रूप में गोद ले लिया। १९०२ में उनका विवाह बलवीर कौर से हुआ था जो [[जिन्द रियासत]] के सिद्धू जाट परिवार की थीं। विवाह के समय वे कॉलेज की शिक्षा ले रहे थे।
 
[[हाथरस]] के [[जाट]] राजा दयाराम ने 1817 में अंग्रेजों से भीषण युध्द किया। [[मुरसान]] के [[जाट]] राजा ने भी युद्ध में जमकर साथ दिया। अंग्रेजों ने दयाराम को बंदी बना लिया। 1841 में दयाराम का देहान्त हो गया। उनके पुत्र गोविन्दसिंह गद्दी पर बैठे। 1857 में गोविन्दसिंह ने अंग्रेजों का साथ दिया फिर भी अंग्रेजों ने गोविन्दसिंह का राज्य लौटाया नहीं - कुछ गाँव, 50 हजार रुपये नकद और राजा की पदवी देकर हाथरस राज्य पर पूरा अधिकार छीन लिया। राजा गोविन्दसिंह की 1861 में मृत्यु हुई। संतान न होने पर अपनी पत्नी को पुत्र गोद लेने का अधिकार दे गये। अत: रानी साहबकुँवरि ने जटोई के ठाकुर रूपसिंह के पुत्र हरनारायण सिंह को गोद ले लिया। अपने दत्तक पुत्र के साथ रानी अपने महल वृन्दावन में रहने लगी। राजा हरनारायन को कोई पुत्र नहीं था। अत: उन्होंने मुरसान के राजा घनष्यामसिंह के तीसरे पुत्र महेन्द्र प्रताप को गोद ले लिया। इस प्रकार महेन्द्र प्रताप मुरसान राज्य को छोड़कर हाथरस राज्य के राजा बने। हाथरस राज्य का वृन्दावन में विशाल महल है उसमें ही महेन्द्र प्रताप का षैशव काल बीता। बड़ी सुख सुविधाएँ मिली। महेन्द्र प्रताप का जन्म 1 दिसम्बर 1886 को हुआ। [[अलीगढ़]] में सैयद खाँ द्वारा स्थापित स्कूल में बी. ए. तक शिक्षा ली लेकिन बी. ए. की परीक्षा में पारिवारिक संकटों के कारण बैठ न सके।
 
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[[पहला विश्व युद्ध|प्रथम विश्वयुद्ध]] से लाभ उठाकर भारत को आजादी दिलवाने के पक्के इरादे से वे विदेश गये। इसके पहले '[[निर्बल सेवक]]' समाचार-पत्र [[देहरादून]] से राजा साहेब निकालते थे। उसमें जर्मन के पक्ष में लिखे लेख के कारण उन पर 500 रुपये का दण्ड किया गया जिसे उन्होंने भर तो दिया लेकिन देश को आजाद कराने की उनकी इच्छा प्रबलतम हो गई। विदेश जाने के लिए पासपोर्ट नहीं मिला। मैसर्स थौमस कुक एण्ड संस के मालिक बिना पासपोर्ट के अपनी कम्पनी के पी. एण्ड ओ स्टीमर द्वारा इंगलैण्ड राजा महेन्द्र प्रताप और [[स्वामी श्रद्धानन्द|स्वामी श्रद्धानंद]] के ज्येष्ठ पुत्र हरिचंद्र को ले गया। उसके बाद जर्मनी के शसक [[कैसर]] से भेंट की। उन्हें आजादी में हर संभव सहाय देने का वचन दिया। वहाँ से वह [[अफ़ग़ानिस्तान|अफगानिस्तान]] गये। [[बुडापेस्ट]], बल्गारिया, टर्की होकर हैरत पहुँचे। अफगान के बादशाह से मुलाकात की और वहीं से 1 दिसम्बर 1915 में [[काबुल]] से '''भारत के लिए अस्थाई सरकार''' की घोषणा की जिसके राष्ट्रपति स्वयं तथा प्रधानमंत्री [[मौलाना बरकतुल्ला खाँ]] बने। स्वर्ण-पट्टी पर लिखा सूचनापत्र [[रूस]] भेजा गया। अफगानिस्तान ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया तभी वे [[रूस]] गये और [[व्लादिमीर लेनिन|लेनिन]] से मिले। परंतु लेनिन ने कोई सहायता नहीं की। 1920 से 1946 विदेशों में भ्रमण करते रहे। [[विश्व मैत्री संघ]] की स्थापना की। 1946 में भारत लौटे। [[वल्लभ भाई पटेल|सरदार पटेल]] की बेटी [[मणिबेन पटेल|मणिबेन]] उनको लेने कलकत्ता हवाई अड्डे गईं। वे संसद-सदस्य भी रहे।
 
26 अप्रैल 1979 में वेउनका चलदेहान्त बसे।हो गया।
 
==इन्हें भी देखें==