"द्वितीय पुलकेशी": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
No edit summary टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
||
पंक्ति 1:
<nowiki>{}}
सत्याश्रय, श्रीपृथ्वीवल्लभ , परमेश्वर परमभट्टारक जैसी उपाधियाँ पाने वाले यह
इतिहासकारो का मानना है कि हूण गुर्जरो के विखण्डन से चालुक्य, प्रतिहार, चौहान, तंवर,चेची,सोलंकी,चप या चपराणा, चावडा आदि राजवंश व गुर्जर कुषाण साम्राज्य के विखण्डन से मैत्रक, गहलोत,परमार,हिन्दुशाही खटाणा, भाटी आदि नये राजवंश जन्म लेते हैं।
पंक्ति 13:
पुलकेशिन व हर्षवर्धन दोनो समकालीन थे, महान सम्राट थे, यौद्धा थे, न्यायप्रिय,उदारशील,प्रजावत्सल शासक थे। दोनो को ही बराबर माना जाता है।
जहाँ हर्षवर्धन उत्तर भारत के एकछत्र राजा थे वहीं पश्चिमोत्तर व दक्षिणी भारत के
राजा तो ये आन्ध्र प्रदेश के थे तो आन्ध्रपति या आन्ध्र नरेश लिख सकते थे।
पुलकेशिन का वास्तविक नाम ऐरेया था,राज्यरोहण के समय पुलकेशिन द्वितीय नाम रखा गया। इनका शासनकाल 609ई० से 642 ई० माना जाता है।
इन्होने लाट,सौराष्ट्र जीतकर
इस युद्ध के बाद
हर्षवर्धन को उत्तरपथ का स्वामी होने के कारण उत्तरपथेश्वर कहा जाता था व हर्षवर्धन को पराजित करके पुलकेशिन को दक्षिणपथ का स्वामी होने के कारण दक्षिणपथेश्वर कहा गया।
इसी समय चीनी यात्री हवेनसांग भारत आता है वह
पुलकेशिन की मृत्यु पल्लव नरेश नरसिहँवर्मन से युद्ध करते हुए ६४२ ई० में होती है। इनके बाद इनका तीसरा पुत्र विक्रमादित्य प्रथम राजसिँहासन पर बैठता है।{{चालुक्य|बादामी}}
|